नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तख्ता पलट के बाद मंगलवार को आधिकारिक तौर पर भारत ने तालिबान के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू की। भारतीय राजदूत दीपक मित्तल (Deepak Mittal)और तालिबानी नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई (Sher Mohammad Abbas Stanikzai) के बीच ये मुलाकात दोहा में हुई। आपको बता दें कि मोहम्मद अब्बास तालिबान में एक बड़ा चेहरा माना जाता है। तालिबान की नई सरकार में स्टानिकजई के विदेश मंत्री बनने की उम्मीद है। स्टानिकजई पिछले तालिबान सरकार में उप विदेश मंत्री था।
तालिबान का सबसे शिक्षित नेता है
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो तालिबान में वो एक ऐसा नेता है जो सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा है। शेर मोहम्मद अब्बास का भारत से भी गहरा नाता है। अब्बास देहरादून में स्थित भारतीय सैन्य अकादमी से पास आउट है। अस्सी के दशक में वह भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) का कैडेट रहा। उसके बैचमेट उसे शेरू नाम से बुलाते थे। यहां से पासआउट होने के बाद वह अफगान नेशनल आर्मी में शामिल हुआ था। वह अमेरिका और अफगान सरकार के साथ शांति वार्ता में तालिबान का भी प्रतिनिधित्व करता रहा है। इतना ही नहीं, 2016 में वह तालिबान की ओर से बीजिंग भी गया था जहां उसकी मुलाकात चीनी नेतृत्व से हुई थी। अमेरिका और तालिबान के बीच समझौते के बाद वह मास्को, उज्बेकिस्तान, और अन्य कई देशों की यात्रा कर चुका है।
निजी जीवन
मोहम्मद अब्बास के निजी जीवन की बात करें तो उसका जन्म साल 1963 में अफगानिस्तान के लोगार प्रांत के बाराकी बराक जिले में हुआ था। वह जातीय रूप से एक पश्तून है और अफगान सेना में भी रह चुका है। लेकिन 1980 के दशक में उसने अफगान सेना (Afghan Army) को छोड़ दिया और सोवियत सेना (Soviet Army) के खिलाफ हथियार उठाकर जिहाद (Jihad) में शामिल हो गया। उसने नबी मोहम्मदी के हरकत-ए इंकलाब-ए इस्लामी और अब्द उल रसूल सयाफ के इत्तेहाद-ए-इस्लामी के साथ अपने दक्षिण-पश्चिमी मोर्चे के कमांडर के रूप में लड़ाई लड़ी।
बेटी अमेरिका में पढ़ती है
जब 1996 में तालिबान सत्ता में आया, तो स्टानिकजई ने विदेश मामलों के उप मंत्री और बाद में विद्रोही शासन के सार्वजनिक स्वास्थ्य के उप मंत्री के रूप में काम किया था। स्टानिकजई फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है। इसी वजह से अंग्रेजी बोलने वाले अमेरिकी सैनिकों और पश्चिमी सैनिकों के बीच इसकी पैठ अच्छी मानी जाती थी। स्टानिकजई के बारे में एक और दिलचस्प बात यह है कि उसकी बेटी उसी अमेरिका में पढ़ रही है, जिसकी सभ्यता, तौर-तरीके और पूंजीवाद का तालिबान हमेशा विरोधी रहा है।
सत्ता से बेदखल होने के बाद पाकिस्तान चला गया
2001 में तालिबान के सत्ता से बेदखल होने के बाद, वह पाकिस्तान चला गया और फिर वहां से कतर। कतर की सरकार ने उसे शरण दे दी। साल 2015 में उसने दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय में कार्यभार संभाला और यहां वह कई देशों के प्रतिनिधियों से मिलता रहा है।