(सुमीर कौल)
कुपवाड़ा (जम्मू-कश्मीर), 19 जनवरी (भाषा) जम्मू-कश्मीर में मोबाइल फोन सेवा शुरू होने के करीब दो दशक बाद सीमा पर स्थित कुपवाड़ा जिले के तीन सुदूर गांवों में भी अब फोन की घंटी सुनाई देने लगी है। मोबाइल फोन सेवा शुरू होने से इन गांवों के करीब 10,000 लोगों को ना सिर्फ लोगों से जुड़ने का बेहतर साधन मिला है बल्कि उनके मन में अच्छे भविष्य की आशा भी जगी है।
केन्द्र शासित प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी से करीब 100-160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुपवाड़ा के तीन गांवों माछिल, दुदी और पोश वारी में मोबाइल सेवा 2000 में पहुंची।
लेकिन इन गांवों के पाकिस्तान के साथ हमारी नियंत्रण रेखा के बहुत करीब होने और अकसर बिना किसी उकसावे के सीमा पार से होने वाली गोलाबारी के कारण जिला प्रशासन के लिए यहां मोबाइल संपर्क मुहैया कराना मुश्किल हो गया। खास तौर से सेना सहित तमाम तरह की मंजूरी लेना।
माछिल, दुदी और पोश वारी नियंत्रण रेखा से महज आठ से 12 मिनट की हवाई दूरी पर स्थित हैं।
कुपवाड़ा के उपायुक्त अंशुल गर्ग मोबाइल सेवा की मंजूरी लेने के लिए तमाम विभागों के संपर्क में थे, लेकिन अक्टूबर, 2020 में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के माछिल दौरे के बाद इस महत्वाकांक्षी योजना को गति मिली।
सिन्हा ने क्षेत्र में लोगों को मोबाइल संपर्क मुहैया कराने के लिए तुरंत मोबाइल टावर लगाने को कहा।
32 वर्षीय गर्ग ने बताया, ‘‘उससे बहुत लाभ हुआ। दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनी एयरटेल के साथ बातचीत जारी थी और अंतत: सुदूर गांवों में मोबाइल संपर्क सेवा पहुंचाने की प्रक्रिया मिशन मोड में आ गई। काम को तेजी से आगे बढ़ाया जाने लगा क्योंकि सर्दियों का मौसम नजदीक होने के कारण हमारे पास काम पूरा करने के लिए समय की भी कमी थी।’’
दुदी गांव के पूर्व सरपंच मोहम्मद जमाल शेख ने बेहद भावुक होते हुए कहा, ‘‘अब हम शायद बिना इलाज के नहीं मरेंगे।’’
मोबाइल फोन पर पीटीआई-भाषा से बातचीत में शेख याद करते हैं कि कैसे मरीज तड़पते थे क्योंकि मेडिकल सुविधा पाने के लिए उन्हें या तो 20 किलोमीटर पैदल चलकर एसटीडी फोन करने के लिए माछिल जाना पड़ता था या 15 किलोमीटर चलकर जेड-मोड के पीसीओ तक पहुंचना होता था।
कुपवाड़ा शहर से करीब 70 किलोमीटर दूर अपने गांव में दवाई दुकान के मालिक शेख ने बताया, ‘‘मैं उपायुक्त को धन्यवाद देता हूं कि अंतत: यह तकनीक हमारे गांव तक पहुंची है।’’
माछिल गांव के सरपंच हबीबुल्ला भी कुछ ऐसे ही विचार रखते हैं। राहत की सांस लेते हुए उन्होंने कहा कि अब सूचना पाने या मदद मांगने के लिए लंबी दूरी तक पैदल नहीं चलना पड़ेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘अभी तक सभी बहुत दूर लगते थे, लेकिन अब मैं और मेरे गांव के लोग भी दुनिया से जुड़ गए हैं।’’
पेशे से कृषक हबीबुल्ला ने कहा, ‘‘अब मैं अपनी फसल बेचने से पहले स्थानीय मंडी में उनकी कीमत पता कर सकता हूं।’’
आईआईटी दिल्ली से स्नातक गर्ग ने पीटीआई-भाषा को बताया कि देश के सबसे उत्तरी जिले कुपवाड़ा के उपायुक्त का पदभार संभालने के बाद ‘‘मैं हमेशा सुदूर इलाकों, खास तौर से नियंत्रण रेखा के पास स्थित गांवों के लोगों की तकलीफें कम करने की कोशिश कर रहा था।’’
गर्ग ने कहा, ‘‘अगर मैं ऐसी किसी जगह पर रह रहा हूं तो मोबाइल फोन के बगैर मुझे कैसा लगेगा? यह सवाल हमेशा मुझे परेशान करता था। मैंने संबंधित पक्षों के साथ कई बैठकें कीं, खास तौर से सेना के साथ। सौभाग्य की बात है कि पिछले साल अक्टूबर में उपराज्यपाल (मनोज सिन्हा) ने माछिल को दौरे के लिए चुना और उससे मुझे बहुत लाभ मिला।’’ गर्ग जल्दी ही अनंतनाग जिले के उपायुक्त का पद संभालने वाले हैं।
उन्होंने बताया कि इन गांवों में मोबाइल सेवा दिसंबर में ही शुरू हो गई थी लेकिन संपर्क नए साल में जाकर स्थापित हुआ और इसके लिए सभी को धन्यवाद दिया जाना चाहिए।
दुदी, माछिल और पोश वारी गांवों में मोबाइल टावर लगाए गए हैं और बिजली की आपूर्ति भी सुनिश्चित की गई है।
भाषा अर्पणा नरेश
नरेश