हाइलाइट्स
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आचार्य विद्यासागर महाराज ने छोटी उम्र में आध्यात्मिकता को अपनाया।
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अब तक दी 505 दीक्षा, 8 मार्च 1980 को पहली दीक्षा
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पहले शिष्य को दीक्षा दी और फिर उन्हीं के मार्गदर्शन में समाधि ली।
Jain Muni Acharya Vidyasagar: छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने 17 फरवरी को देर रात अपना शरीर त्याग दिया। वहीं आज उनके पार्थिव शरीर को दोपहर 1 बजे पंचतत्व में विलीन किया जाएगा।
छोटी उम्र में आध्यात्मिकता को अपनाया
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज एक अत्यंत श्रद्धेय दिगंबर जैन आचार्य (दिगंबर जैन भिक्षु) हैं, जो अपनी असाधारण विद्वता, गहन आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और तपस्या, अनुशासन के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के लिए पहचाने जाते हैं।
कर्नाटक के सदलगा में 10 अक्टूबर, 1946 को जन्मे, मुनि श्री ने छोटी उम्र से ही आध्यात्मिकता को अपना लिया था। 21 साल की उम्र में राजस्थान के अजमेर में दीक्षा लेने के लिए सांसारिक जीवन त्याग दिया।
आचार्य विद्यासागर महाराज जैन शास्त्रों और दर्शन के अध्ययन और अभ्यास में गहराई से डूबे। संस्कृत, प्राकृत और कई भाषाओं में उनकी महारत रही। जिसने महाराज जी को कई व्यावहारिक टिप्पणियाँ, कविताएँ और आध्यात्मिक ग्रंथ लिखने में सक्षम बनाया है।
निरंजना शतक, सुनीति शतक, भावना शतक, परिषह जया शतक और श्रमण शतक सहित उनके कार्यों का जैन समुदाय के भीतर व्यापक रूप से अध्ययन और सम्मान किया जाता है।
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अब तक दी 505 दीक्षा
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज दिगंबर मुनि परंपरा के देश के ऐसे एक मात्र आचार्य थे, जिन्होंने अब तक 505 मुनि, आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक दीक्षा दी।
इनके बाद आचार्य श्री कुन्थु सागर महाराज का नाम दूसरे नंबर पर आता है, उन्होंने अब तक 325 दीक्षा दी हैं। वहीं दमोह के कुंडलपुर में चल रहे महोत्सव में आचार्य श्री अब एक साथ 500 से ज्यादा दीक्षा देने जा रहे हैं।
बात करें वर्तमान की तो आचार्य श्री का देश का सबसे बड़ा ससंघ है। जिसमें 300 से ज्यादा मुनि श्री और आर्यिका हैं। विहार के बीच भी सबसे ज्यादा ससंघ उनके साथ है।
8 मार्च 1980 को पहली दीक्षा
आचार्य श्री ने छतरपुर जिले के दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरी में 8 मार्च 1980 को पहली दीक्षा मुनि श्री समय सागर महाराज को दी थी।
दूसरी दीक्षा 15 अप्रैल 1980 को सागर जिले के मोराजी भवन में दी। जिसमें मुनि श्री योग सागर और मुनि श्री नियम सागर महाराज दीक्षित हुए।
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पहले शिष्य को दीक्षा दी और फिर उन्हीं के मार्गदर्शन में समाधि ली
22 नवंबर 1972 को अजमेर राजस्थान के नसीराबाद में विद्यासागर महाराज को आचार्य पद की दीक्षा आचार्य श्री ज्ञान सागर महाराज ने दी थी। इसके बाद 1 जून 1973 को आचार्य श्री ज्ञान सागर महाराज ने आचार्य श्री के मार्गदर्शन में ही समाधि ली थी।
ऐसा पहली बार हुआ था, जब एक गुरु ने पहले शिष्य को दीक्षा दी और फिर उन्हीं के मार्गदर्शन में समाधि ली।