MP Tiger State International Tiger Day 2024: मैं बिल्ली प्रजाति का बड़ा जंगली जानवर हूं। मेरे शारीरिक डील-डौल, रौबीली चाल और कलेजा कंपा देने वाली दहाड़ के कारण आप मुझे जंगल का राजा (Jungle ka Raja) भी कहते हैं।
मुझे घने जंगल के एकांत वातारण में ही रहना और विचरना पसंद है। कुदरत ने मुझे मांसाहारी बनाया है, लेकिन मैं तभी किसी अन्य वन्य प्राणी का शिकार करता हूं, जब मुझे भूख लगती है।
शिकार पर काबू पाने में मेरे नुकीले दांत और पैने नाखून मेरी असल ताकत हैं। इसी से जंगल में सब मुझसे डरते हैं। हालांकि डर मुझे भी लगता है और सबसे ज्यादा दो पैर वाले इंसान से। इसी इंसान के लोभ-लालच की वजह से मैं भी चीते की तरह विलुप्त होने से बाल-बाल बचा हूं।
अब छोटे पड़ने लगे हैं टाइगर रिजर्व, नए की जरूरत
अब मैं और ज्यादा भूमिका बांधे बिना सीधे मुद्दे की बात पर आता हूं। अपनी बढ़ती आबादी के साथ बढ़ती समस्या और चुनौतियां बताता हूं।
आपने मेरी आबादी के संरक्षण और संवर्धन के लिए जो सात टाइगर रिजर्व (पेंच, कान्हा, बांधवगढ़, पन्ना, संजय दुबरी, सतपुड़ा, नौरादेही) विकसित किए थे।
ये अब हमारे सुरक्षित रहवास के लिए छोटे पड़ने लगे हैं। इनमें से ज्यादातर ( पेंच,कान्हा बांधवगढ़ एवं पन्ना) हमारी स्थापित क्षमता तक पहुंच चुके हैं।
इन इलाकों में बढ़ रहा है मेरा संघर्ष
नतीजा ये है कि न चाहते हुए भी मुझे मनुष्य के संघर्ष के द्वंद्व में फंसना पड़ रहा है। पिछले दो सालों में इस बढ़ते संघर्ष में कुछ इंसान और उनके पालतू पशुओं की जान जाने और मुझे इसका जिम्मेदार बताए जाने की खबरें आपने भी मीडिया जगत में देखी और पढ़ीं होंगी।
ऐसी अनहोनी प्रदेश के दक्षिणी इलाके में स्थित सतपुड़ा पर्वत श्रंखला के निचले हिस्से में ज्यादा हो रही हैं। यह वो इलाका है, जो पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र से सटा है। दोनों राज्यों के इस सीमावर्ती क्षेत्र (बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट,गोंदिया, हरदा आदि जिले) में मेरी आबादी और मूवमेंट दोनों ही ज्यादा है।
मप्र मेरा सबसे पसंदीदा रहवास, इसलिए टाइगर स्टेट
29 जुलाई 2024 के दिन फिर मेरी आन-बान-शान में जमकर कसीदे गढ़े जाएंगे। भारत में बड़े-बड़े हुक्मरान और नौकरशाह अपने-अपने फेसबुक पेज और एक्स के हैंडल पर मेरी तस्वीरें चस्पा कर एक दूसरे को बधाई और शुभकामना संदेश जारी करेंगे।
देश के ह्रदय प्रदेश यानी मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा। वजह साफ है, क्योंकि यहां मेरी आबादी पिछले 10 सालों में 257 से बढ़कर 785 जो हो गई है। मेरी प्रजाति की यह संख्या देश में सबसे ज्यादा है। प्रदेश में पिछले चार-पांच सालों में 259 बाघ बढ़े हैं।
बढ़ते संघर्ष के लिए ये विसंगतियां जिम्मेदार
मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के ये वो इलाके हैं, जहां मुझे अपने परिवार और बच्चों के वजूद के लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ा रहा है। इस संघर्ष में किसी जन या पशु हानि होने पर इन इलाकों में रहने वाली आबादी मुझे और मेरे परिजनों को अपना दुश्मन मानकर मेरे प्रति हिंसक होने लगी है। खासकर मध्य प्रदेश के इलाकों की ग्रामीण आबादी।
इसकी वजह जन या पशु हानि पर पीड़ित परिवार को मिलने वाले आर्थिक मुआवजे में बड़ी विसंगति भी है। यदि मप्र की सीमा में मेरी वजह से कोई जनहानि होती है तो आर्थिक मुआवजा 8 लाख रुपए मिलता है, जबकि ऐसी ही अनहोनी महाराष्ट्र की सीमा में होने पर पीड़ित परिवार को मुआवजा 25 लाख रुपए ( 10 लाख कैश और 15 लाख की एफडी) मिलता है।
“एमपी में बहुत कुछ करना बाकी: जेएस चौहान”
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक जेएस चौहान (IFS) के मुताबिक राज्य में सबसे ज्यादा बाघ (785) होने की उपलब्धि निसंदेह देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले वनों और वन्य जीवों के बेहतर संरक्षण और संवर्धन का नतीजा है। लेकिन हमारे लिए इस खुशी के साथ चिंता के भी पर्याप्त कारण हैं।
ज्यादातर टाइगर रिजर्व बाघों की धारण क्षमता तक पहुंच चुके हैं फलस्वरूप करीब 35 से 40 फीसदी बाघ संरक्षित क्षेत्रों के बाहर के वन क्षेत्रों में और मानवीय आबादी के करीब आने लगे हैं। अतः अब बाघों की बढ़ती संख्या के कारण कुछ क्षेत्रों में मानव वन्यप्राणी द्वंद की संभावना कई गुना बढ़ गई है। इसे रोकने के लिए हमारे नीति नियंताओं को बिना समय गंवाए तत्काल कुछ सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत है।
उदाहरण स्वरूप कुछ नए संरक्षित क्षेत्रों का गठन एवं उनका वैज्ञानिक प्रबंधन, जिन टाइगर रिजर्व ( पेंच, कान्हा, बांधवगढ़, पन्ना) में बाघों की संख्या उनकी क्षमता से ज्यादा हो गई है, वहां से उनके मूवमेंट के लिए आस-पास के सक्रिय कॉरिडोर सुरक्षित करना, प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व के सीमावर्ती टेरिटोरियल फॉरेस्ट के वातावरण को बाघों के रहवास और विचरण के लिए अनुकूल और सुरक्षित बनाने की जरूरत है।
इसके लिए प्रदेश में संरक्षित वन क्षेत्र के बाहरी जंगलों में वन्य प्राणी प्रबंधन के बजट में पर्याप्त धन राशि का प्रावधान करना बेहद जरूरी है। इसके अतिरिक्त प्रदेश में जनहानि, पशुहानि और फसलों की नुकसानी की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा राशि को संतुष्टिदायक बनाने पर ध्यान देना निहायत जरूरी है। बाघों के दीर्घकालिक संरक्षण और संवर्धन के बृहद लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रदेश की जनता का भरपूर सहयोग नितांत आवश्यक है।
मैं इसलिए जंगलों से बाहर आने को मजबूर
हमें आश्रय देने वाले जंगल की भी एक सीमा होती है। नतीजा ये है, कि अब हमारी कुल संख्या (785) के करीब 40 फीसदी यानी 315 बाघ संरक्षित वन क्षेत्र से बाहर निकलकर बाहरी वन क्षेत्र और मानवीय आबादी के करीब आने को मजबूर होने लगे हैं।
इससे संबंधित वन क्षेत्रों में मानव और हमारी प्रजाति के बीच संघर्ष की संभावना कई गुना बढ़ गई है।
कई जगह आधे से भी कम हो गई मेरी टेरेटरी
कारण यह है कि मेरी प्रजाति को फलने-फूलने के लिए हर बाघ को जंगल में एक निश्चित टेरेटरी की जरूरत होती है। जब आपने हमारे संरक्षण और संवर्धन के लिए टाइगर रिजर्व (MP Tiger Reserve ) बनाना शुरू किए थे, तब वहां एक बाघ की टेरेटरी 25-30 वर्ग किलो मीटर हुआ करती थी, लेकिन प्रदेश में समय के साथ बेहतर वन्यप्राणी प्रबंधन और मेरे शिकार पर अंकुश के चलते मेरी आबादी इतनी तेजी से बढ़ी, कि अब कुछ टाइगर रिजर्व में एक बाघ की टेरेटरी घटकर 8-10 वर्ग किलो मीटर तक सिमट गई है।
पेंच, कान्हा, बांधवगढ़ और पन्ना टाइगर रिजर्व (Panna Tiger Reserve ) में तो हमारी आबादी इतनी बढ़ गई है, कि टेरेटरी के आपसी संघर्ष के चलते हमें अपना कोर एरिया छोड़कर बाहर आना पड़ रहा है। भोजन-पानी की तलाश में मुझे इंसानी बसाहट में भी घुसपैठ करनी पड़ रही है।
वन अमले के संकल्प और समर्पण का शुक्रगुजार
हमारी जनसंख्या में यह बढ़ोतरी 2010 में कुल आबादी 257 से भी ज्यादा है। नतीजा 2022 में इस राज्य को फिर से टाइगर स्टेट होने का तमगा मिल गया है। इस नाते मप्र से मेरी प्रजाति का भी विशेष लगाव है।
इसके लिए मैं खासकर प्रदेश के वन विभाग के उन सभी संकल्पित और समर्पित अधिकारियों और मैदानी कर्मचारियों का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने हमारे कुनबे की संख्या को बढ़ाने के लिए तमाम गंभीर चुनौतियां का सामना किया है।
अपनी सुख-सुविधाओं की परवाह किए बिना हमारे सुरक्षित वजूद के लिए संरक्षित वन क्षेत्रों (टाइगर रिजर्व) के कोर और बफर एरिया में दिन-रात अपना खून-पसीना बहाया है। मैं प्रदेश के सात टाइगर रिजर्व (MP Tiger State in hindi news) के आस-पास वन ग्रामों में रहने वाले ग्रामवासियों का भी आभारी हूं, जिनके सहयोग और त्याग के बिना प्रदेश में हमारी आबादी में इजाफा संभव नहीं था।
ऐसे शुरू हुई मुझे विलुप्त होने से बचाने की शुरुआत
भला हो वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में मुझे बचाने के लिए दुनिया के पहले बाघ सम्मेलन की पहल करने वाले लोगों का। 29 जुलाई 2010 के हुए इस सम्मेलन में बाघों की आबादी वाले 13 देशों ने तय किया, कि वे 2022 तक हमारी आबादी दोगुनी कर देंगे।
इस लक्ष्य के लिए दुनियाभर में हर साल 29 जुलाई का दिन अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस(International Tiger Day) के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। यानी पूरी दुनिया में मेरे अस्तित्व के संरक्षण और संवर्धन के प्रति जागरूकता लाने का दिन।
जन-पशु हानि पर मुआवजा राशि बढ़ाए सरकार
मेरे विचरण क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण भाई-बहनों की एक और बड़ी नाराजगी बकरा-बकरी की मौत पर मुआवजा को लेकर है, जिसके लिए मैं नहीं सरकार के नीति नियंता जिम्मेदार हैं।
दरअसल उन्होंने आरबीसी एक्ट (RBC Act) में ऐसे प्रावधान किए हैं कि मुझसे संघर्ष में किसी बकरा-बकरी की जान जाने पर पशुपालक को सिर्फ 3 हजार रुपए का मुआवजा मिलता है, जबकि उसका मुआवजा वर्तमान दरों के अनुसार 8 से 10 हजार रुपए तक होना चाहिए।
हालांकि किसी गाय-बैल की मौत होने पर 30 हजार रुपए तक आर्थिक मुआवजे का प्रावधान है। सरकार को चाहिए कि मेरे और इंसान के बीच वैमनष्य की दरार और चौड़ी और लंबी न हो इसके लिए मुआवजे की इन विसंगतियों को यथाशीघ्र दूर किया जाना चाहिए।
मप्र में आगे और क्या करने की जरूरत है ?
मप्र (MP Tiger News in Hindi) में यथाशीघ्र नए टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क (Tiger Reserves and National Parks) विकसित किए जाने की जरूरत है। इसमें राजधानी भोपाल से सटे रातापानी और शिवपुरी जिले के माधव नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व के रूप में विकसित किया जा सकता है।
1 . नर्मदा पर तीन नए डैम बन गए लेकिन नेशनल पार्क नहीं बना
प्रदेश के पूर्व चीफ वार्डन, वाइल्ड लाइफ जेएस चौहान (Former Chief Warden of the State, Wildlife JS Chauhan) खंडवा जिले में ओंकारेश्वर (Omkareshwar) के पास एक नया टाइगर रिजर्व (Tiger Reserves ) विकसित किए जाने की भरपूर संभवनाएं हैं। वे बताते हैं कि 1990 के दशक में नर्मदा नदी के ऊपर सरदार सरोवर, इंदिरा सागर (Indira Sagar Dam) और ओंकारेश्वर डैम (Omkareshwar DAn) बनने पर केंद्र सरकार (Kendra Sarkar) की शर्त के अनुसार ओंकारेश्वर के पास नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर बसे घने जंगल के करीब 650 वर्ग किलोमीटर एरिया में नया टाइगर रिजर्व (New Tiger Reserves) या नेशनल पार्क (National Park) डेवलप किया जाना था जो अब तक आकार नहीं ले सका है।
2. सुरक्षित कॉरिडोर विकसित किए जाएं
प्रदेश के जिन टाइगर रिजर्व ( पेंच, कान्हा, बांधवगढ़ और पन्ना) में बाघों की संख्या भरपूर हो गई है वहां से उनके सुरक्षित मूवमेंट के लिए माकूल फॉरेस्ट कॉरिडोर विकसित किए जाने की जरूरत हैे। चूंकि अब करीब 315 बाघ उनके कोर एरिया के बाहर सीमावर्ती जंगल में विचरण या नई टेरेटरी बनाने को विवश हैं।
3.सीमावर्ती जंगलों का वातावरण बाघों के अनुकूल बनाया जाए
प्रदेश में सभी टाइगर रिजर्व (Tiger Reserves) के कोर एरिया के सीमावर्ती वन क्षेत्रों को बाघ के सुरक्षित विचरण और रहवास के लिहाज से विकसित करना चाहिए। ऐसे जंगलों में उनके भोजन-पानी का पर्याप्त इंतजाम सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
4. बाघों की दूसरे टाइगर रिजर्व में शिफ्टिंग की जाए
पूर्व वन्य प्राणी अभिरक्षक एचएस पाबला की राय में बाघों की ज्यादा संख्या वाले टाइगर रिजर्व से उन्हें दूबरी, सतपुड़ा और दमोह-नरसिंहपुर के नौरादेही टाइगर रिजर्व में भी शिफ्ट किया जा सकता है। जिन जंगलों में बाघों की आबादी बढ़ रही है वहां से उन्हें आस-पास की इंसानी बसाहट में जाने से रोकने के लिए मजबूत और प्रभावी फैंसिंग लगाई जानी चाहिए।
5. बाहरी जंगलों में वन्य प्राणी प्रबंधन के लिए ज्यादा राशि जरूरी
मप्र देश का पहला राज्य है जहां संरक्षित वन क्षेत्र के बाहरी इलाकों में भी वन्य प्राणी प्रबंधन के लिए अलग बजट का प्रावधान किया गया है। अब जरूरत इस बात की है कि सरकार इसमें अपेक्षित राशि का प्रावधान करे तभी जो 35 से 40 फीसदी टाइगर बाहरी जंगलों में विचरण कर रहे हैं, उनकी सही देखभाल हो पाएगी।
( लेखक बंसल न्यूज डिजिटल के एडिटर हैं )