हाइलाइट्स
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300 साल पहले हाथी पर बैठकर मनाई जाती थी होली
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20 तोपों की सलामी से होता था गेर का आगाज
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रंग पंचमी पर खिलाए जाते थे सोने की बर्क लगे पान
Indore Rangpanchami 2024: मध्यप्रदेश के इंदौर की गेर देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां रंगपंचमी (Rangpanchami Festival) के अवसर पर निकलने वाली गेर में लाखों लोग शामिल होते हैं। एक साथ मिलकर होली खेलते हुए एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं, चाहे अपना हो या गैर सभी के साथ बिंदास गुलाल होली खेली जाती है। इसीलिए कहा जाता है गैरों को भी अपना बना लेती है इंदौर की गेर।
सोने का पान खिलाने से हुई थी इंदौर गेर की शुरुआत, कितनी बदली गेर, जानें इतिहासhttps://t.co/wiqyht2mom#indore #RangPanchami #indoreger #MPNews pic.twitter.com/N9I158EnFQ
— Bansal News (@BansalNewsMPCG) March 29, 2024
आपको बता दें कि इस गेर का इतिहास कई साल पुराना है। इसमें पहले 20 तोपों की सलामी के साथ गेर का आगाज हुआ करता था और होलकर महाराज प्रजा (Indore Rajbada Festival) के साथ होली खेलते थे। कैसे हुई शुरुआत, पहले से अब कितनी बदली (Indore Ger Holi)गेर आइए जानते हैं इंदौर गेर का इतिहास।
इंदौर गेर की खासियत
इंदौर की गेर (Indore Rangpanchami 2024) की खासियत है कि यहां बिना किसी भेद-भाव के सभी धर्म के लोग और पूरा शहर शामिल होता है। यहां टैंकरों में रंग भरकर मोटर पंपों के जरिए लोगों पर फेंका जाता है। जिससे लोग तर-बतर हो जाते हैं।
यहां तक कई मंजिल ऊपर खड़े लोग भी रंगों से सराबोर हो जातें हैं। साथ में गुलाल भी इसी तरह उड़ाया जाता है। इस गेर (Indore Ger Holi) में बग्घियों और हाथी घोड़ों के साथ आदिवासी नृतकों की टोली दर्शकों का मन मोह लेती हैं।
रंग पंचमी पर खिलाए जाते थे सोने की बर्क लगे पान
होलकर कालीन दस्तावेजों में इसका जिक्र है कि शाही खजाने से होली पर सोने की वर्क लगे 20 हजार पान राजबाड़े भेजता था। इसके साथ ही 200 ग्राम इत्र, 20 सेर केवड़ा जल, 20 सेर गुलाब और 50 सेर गुलाल खरीदी का जिक्र मिलता है।
महाराजा (Indore Rajbada Festival) चांदी के थाल में रखे गुलाल को राज परिवार के सदस्यों पर फेंकते थे। इनके फूटने पर पोषाक गुलाल से सराबोर हो जाती थी। इसके साथ ही राजबाड़ा चौक में दिनभर गायक साजिंदे और नर्तक कला का दिखाते थे।
इंदौरी गेर का इतिहास
एक समय था जह इंदौर में यह महोत्सव (Indore Rangpanchami 2024) 15 दिनों तक मनाया जाता था। ये परंपरा आज भी बकायदा बरकरार है। आज भी लोग इस गेर को बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं। बिना किसी भेदभाव के लाखों लोग इस समारोह में शामिल होते हैं।
आपको बता दें कि इंदौरी गेर की शुरुआत होलकर राजवंश के लोगों ने की थी। इतिहासकार और जानकारों का मानना हैं कि होलकर राजवंश के लोग धुलेंडी और रंगपंचमी (Rangpanchami Festival) पर आम जनता के साथ होली खेलने के लिए सड़कों पर निकलते थे।
इसके साथ ही जुलूस निकालकर पूरे शहर में धूमकर लोगों के साथ होली (Holi 2024) खेला करते थें। इंदौर की ‘गेर’ शुरुआत सबसे पहले झांसी में हुई थी और इस पारंपरिक गेर को इंदौर के लागों ने आज भी बरकरार रखा है।
90 रुपए के मंगवाए जाते थे लकड़ी के ठूंठ
होली को रंगपंचमी तक प्रज्वलित रखने के लिए शाही खजाने से 90 रुपए के लकड़ी के ठूंठ मंगवाए जाते थे। तब सोना 5 रुपए तोला था। उस समय 90 रुपए आज के जमाने में 90 लाख बराबर होते थे। होलिका की सुरक्षा के लिए 5 दिन तक सैनिकों को तैनात किया जाता था।
होली पर 5 बकरों का बलि का रिवाज
यहां पहले होलिका को 5 बकरों की बलि का रिवाज था। बाद में जन भावनाओं को देखते हुए भूरा कोला (कद्दू) को काटा जाने लगा।
होली को चंदन की लकड़ी, तुअर की संटी, घास-फूस और गोबर के कंडो से तैयार कर पंचरंगी धागे से बांधा जाता था
1950 में हुई नई शुरुआत
भारत की आजादी के साथ सन् 1950 में एक (Indore Rangpanchami 2024) नई शुरुआत हुई और वह शुरुआत रंग पंचमी पर निकलने वाली गैरों से हुई। उस जमाने में इंदौर का मशहूर इलाका टोरी कॉर्नर था। यहां के श्रमिक नेता और मील मजदूरों ने मिलकर इसकी शुरुआत की थी।
इस मशहूर इलाके में टोरी कॉर्नर पर बड़े-बड़े कड़ावों में केसरिया रंग घोला जाता था। यह रंग लोगों पर डाला जाता था और लोगों को कड़ाव में डाला जाता था।
यह शुरुआत थी इंदौर की (Indore Ger Rangpanchami) नई गेर की और उस जमाने के मशहूर बाबूलाल गिरी, रंगनाथ कार्णिक पहलवान, बिंडी पहलवान ने मिलकर इसकी शुरुआत की थी। शुरुआती दौर में सिर्फ दो बैलगाड़ियों पर यह रंगारंग गेर टोरी कॉर्नर से राजवाड़ा लाई गई।
खेला जाता था आट्या-पाट्या खेल
300 साल पुरानी इस परंपरा को बाखूबी आज भी निभाया जा रहा है। होलकर राजवंश के समय इस महोत्सव को बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता था।
यहां इस कार्यक्रम के दौरान आट्या-पाट्या खेल खेला जाता था। इसके लिए होलकरों की टीम काफी मशहूर थी।
इस खेल में सेना के जवान फुर्तीले दांव-पेंच मारा करते थे। हर जवान को इनाम के साथ रोज भांग और आधा सेर मिठाई दी जाती थी।
यह खेल होली से लेकर रंगपंचमी तक चलता था। इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग शामिल हुआ करते थे।
तोपों से दी जाती थी सलामी
होलकर रियासत में होली शाही अंदाज में मनाई जाती थी। होलिका दहन पर बंदूकधारी 21-21 राउंड फायर के साथ तोपों की सलामी दिया करते थे।
रंगोत्सव में हाथी-घोड़े पर सवार होकर जनता पर रंग-गुलाल उड़ाया जाता था। सड़कों पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी और एक-दूसरे पर गुलाल लगाकर होली का आनंद लिया जाता था।
इत्र से महक उठता था इलाका
होली का त्योहार 5 दिन (रंगपंचमी) तक मनाया जाता था। होली पर मार्तंड मल्हार मंदिर, गणेश हॉल और शाही खजाना समेत पूरा राजबाड़ा गुलाब जल, केवड़ा और इत्र से महक उठता था।
शाम 4 बजे होलिका दहन के लिए चार घोड़ों की बग्घी को सुसज्जित कर महाराजा होलकर की सवारी फौजी दस्ते के साथ पहुंचती थी।
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यूनेस्को की लिस्ट में शामिल होगी इंदौर की गेर
बता दें कि सासंद शंकर लालवानी ने संगीत नाटक आकादमी की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा से मिलकर उनसे इंदौर की रंगपंचमी (Indore Ger Rangpanchami) की गेर के बारे में चर्चा की। इसे लेकर डॉ. पुरेचा ने उन्होंने कुछ आवश्यक डॉक्यूमेंटेशन को पूरा करने को कहा।
पुरेचा ने अधकारियों को निर्देश दिया कि डॉक्युमेंटेशन पूरा होते ही विभाग की तरफ से भी कार्रवाई तुरंत शुरू कर दी जाए। ताकि इंदौरी गेर को यूनेस्को की सूची में सामिल करवाया जा सके।
साथ ही साल 2023 की सूची युनेस्को को भेज दी गई है और 2024 में भी इसे भेजा जाएगा। सांसद लालवानी के मुताबिक डॉक्यूमेंटेशन कलेक्टर कार्यालय और नगर निगम मिलकर करेंगे।