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भोपाल। भारत की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां की धरती पर पूरे साल में औसतन 300 दिन धूप आती है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में सौर उर्जा का भविष्य स्वर्णिम है। गौरतलब है कि बिजली उत्पन्न करने के लिए पारम्परिक संसाधनों जैसे कोयला, पेट्रोलियम, जीवाश्म ईंधन आदि का उपयोग करना हर दिन महंगा होता जा रहा है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारें सौर ऊर्जा को बढ़वा दे रही हैं। सौर ऊर्जा की मदद से अब आप घर में उन सभी उपकरणों को चला सकते हैं जिन्हें चलाने के लिए पारंपरिक बिजली की आवश्यकता होती है। आज हम आपको मध्य प्रदेश के एक ऐसे गांव की कहानी बताएंगे, जहां सौर ऊर्जा का उपयोग इस स्तर पर किया जाता है कि इसने पूरे देश में एक अलग पहचान बनाई है।
भारत का पहला धुआं रहित गांव
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मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में बसे इस गांव का नाम है 'बांचा' (Bancha Village)। इसे भारत का पहला धुआं रहित गांव के रूप में जाना जाता है। यहां न किसी घर में चूल्हा है और न ही किसी को रसोई गैस की जरूरत है। आदिवासी बहुल इस गांव के सभी 74 घरों में सौर उर्जा के जरिए खाना बनता है। बता दें कि पहले गांव के लोग खाना बनाने के लिए जंगल से लकड़ियां काट कर लाते थे, इससे पर्यावरण को भी काफी नुकसान होता था और धुएं से लोग बीमार भी होते थे।
पहले लोगों का काफी समय बर्बाद होता था
यहां के लोग खेती-किसानी और मजदूरी करने वाले हैं। ऐसे में जंगल से लकड़ियां लाने में उनका काफी समय बर्बाद होता था। बाद में सरकार की तरफ से गांव के लोगों को गैस कनेक्शन भी मिला, लेकिन पैसे की कमी के कारण लोग गैस नहीं भरवा पाते थे। ऐसे में बांचा गांव के लोगों ने खाना पकाने के लिए सोलर पैनल का इस्तेमाल करना शुरू किया और आज बिजली के मामले में यह गांव बिल्कुल आत्मनिर्भर हो चुका है।
खाना बनाना हुआ आसान
जहां सोलर पैनल के जरिए महिलाओं को खाना बनाने में आसानी हो रही है। वहीं, बच्चों को पढ़ने के लिए रोशनी की कोई समस्या नहीं है। सोलर पैनल लगने से गांव की महिलाओं का काफी समय बच रहा है और वे उस समय का इस्तेमाल दूसरे कामों में कर रही हैं। गांव में बिजली पहले भी थी। पर उसका कोई भरोसा नहीं था कि कब चली जाए। लेकिन अब बिजली की कोई दिक्कत नहीं है।
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कैसे शुरू हुई बदलाव की यह गाथा
इस बदलाव की शुरुआत एक अखबार की टुकड़ी से हुई थी। दरअसल, 2016-17 में भारत सरकार के ओएनसीजी ने एक सोलर चूल्हा चैलेंज प्रतियोगिता का आयोजन किया था। इस दौरान आईआईटी मुंबई के छात्रों ने एक ऐसे चूल्हे को बनाया था, जो सौर ऊर्जा से चल सके। उनके इस डिजाइन को प्रतियोगिता में पहले पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जब यह खबर बांचा (Bancha Village) में शिक्षा, पर्यावरण और जल संरक्षण के दिशा में पहले से ही काम कर रहे एनजीओ “भारत-भारती शिक्षा समिति” के सचिव मोहन नागर को एक स्थानीय अखबार के जरिए मिली, तो उन्होंने गांव में सोलर पैनल लगाने के लिए आईआईटी मुंबई से बातचीत शुरू की।
ONGC ने की मदद
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इस सौर उर्जा के इंडक्शन मॉडल से एक परिवार के लिए दो समय का खाना आसानी से बन सकता है। हालांकि तब इस सोलर पैनल को लगाने में काफी खर्चा आ रहा था।
एक सोलर पैनल की कीमत करीब 70 हजार रुपए थी और इतना खर्च करना यहां के लोगों के लिए मुमकिन नहीं था। ऐसे में एनजीओ ने ONGC से संपर्क किया और बताया कि इसका प्रयोग वे आदिवासी गांव 'बांचा' में करना चाहते हैं। ओएनजीसी इस काम में उनकी मदद करने के लिए तैयार हो गई और सीएसआर के जरिए फंड मिल गया।
क्या हैं विशेषताएं
बांचा में सोलर पैनल लगाने का काम सितंबर 2017 में शुरू हुआ और दिसंबर 2018 तक इसे पूरा कर लिया गया। इस सोलर चूल्हा के लिए एक दिन में तीन यूनिट बिजली तैयार की जाती है, जिससे चार-पांच लोगों के एक परिवार का खाना आसानी से बन जाता है। एक सेटअप में चार पैनल लगे होते हैं। स्टोव का वजन एक किलो का होता है और उसमें ताप बदलने के लिए तीन स्विच होते हैं। इस स्टोव पर दोनों समय का खाना आसानी से बन जाता है। खाना बनाने के अलावा लोगों को टीवी, बल्ब, पंखा चलाने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है।
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