नई दिल्ली। भारतीय रूपया हो या फिर अमेरिकी डॉलर, आमतौर पर हम समझते हैं कि ‘करारे नोट’ कागज से बनते हैं। अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो आप गलत हैं। क्योंकि ये नोट कागज से नहीं बल्कि कपास से बनते हैं। भारत समेत कई देशों में नोट बनाने के लिए कपास को कच्चे माल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन ऐसा क्यों किया जाता है? आइए आज हम आपको बताते हैं।
इस कारण से कपास का किया जाता है इस्तेमाल
बतादें कि, कागज की अपेक्षा कपास ज्यादा मश्किल हालात सह सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कपास के रेशे में लेनिन नामक फाइबर होता है और बाकि के मिश्रण में गैटलिन और आधेसिवेस नामक सोलुशन का इस्तेमाल किया जाता है, जो नोट बनाने वाले कागज़ को उम्रदराज़ बनाता है। नोट बनाने के लिए सबसे पहले कपास को एक खास प्रक्रिया से गुजारा जाता है। कपास की ब्लीचिंग और धुलाई करने के बाद उसकी लुग्दी बनाई जाती है।
हालांकि, इसका असली फॉर्मूला सीक्रेट रखा गया है। इसके बाद सिलेंडर मोल्ड पेपर मशीन उस लुग्दी को एक लंबी शीट में बदल देती है। इसी दौरान नोट में वॉटरमार्क जैसे कई सिक्योरिटी फीचर भी डाले जाते हैं।
नोट के सारे डिजाइन RBI तय करता है
बतादें कि, भारतीय नोट के सारे डिजाइन रिजर्व बैंक तय करता है। यह नोट छापे भी रिजर्व बैंक के प्रेस में ही जाते हैं । लेकिन इन नोटों को जारी करने से पहले भारत सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती है। नोटों की प्रिंटिंग नासिक, देवास, मैसूर और सालबोनी में स्थित चार मुद्रण प्रेसों में की जाती है। जबकि सिक्कों की ढलाई मुंबई, नोएडा, कोलकाता और हैदराबाद में स्थित चार टकसालों में की जाती है।
पाकिस्तान में बंटवारे के बाद भी भारतीय नोटों का इस्तेमाल होता था
गौरतलब है कि महात्मा गांधी वाले कागजी नोटों की श्रंखला की शुरूआत 1996 में हुई, जो आज तक चलन में है। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद भी पाकिस्तान भारतीय नोट इस्तेमाल करता था। बस उस पर पाकिस्तान की स्टाम्प लगी होती थी। यह सिलसिला तब तक चला जब तक पाकिस्तान ने खुद के नोट बनाने शुरू नहीं किए। भारतीय रुपए के नोट के उपर भारत की 22 सरकारी में से 15 भाषाओं असमिया, बंगला, गुजराती,कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और उर्दू में उनका मूल्य मुद्रित है।