Indian Discoveries: आज हम आपको भारत के 10 ऐसे आविष्कार के बारे में बताएंगे, जिसने देश-दुनिया को बदलकर रख दिया है। जब दुनियाभर के लोग मोतियाबिंद के कारण देख नहीं पाते थे, तब भारत ने ही उन्हें इसका इलाज दिया था। इसके अलावा भारत ने ही उस गणितीय प्रणाली को विकसित किया था, जिसके बिना आज चांद और मंगल तक पहुंचना संभव नहीं था। आइए जानते हैं इन आविष्कारों के बारे में…
1) शन्यू का आविष्कार
शून्य का वैसे तो अकेले कोई मान नहीं होता, लेकिन अगर यह अंक किसी के आग लग जाए तो उसका मान कई गुणा अधिक बढ़ जाता है। इस अंक के बिना शायद गणित की कल्पना ही नहीं की जा सकती। शून्य का आविष्कार महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने किया था।
2) दशमलव प्रणाली
शून्य के अलावा गणित के और भी कई ऐसे आयाम है जिसे भारत ने दुनिया को दिया है। उसी में एक है दशमलव प्रणाली। इस प्रणाली की खोज भी आर्यभट्ट ने ही की थी। यह पूर्णांक और गैर-पूर्णांक संख्याओं को दर्शाने की एक मानक प्रणाली है। इस प्रणाली में दशमलव अंकों और संख्या 10 के आधार का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत हर इकाई अपने से छोटी ईकाई की दस गुनी बड़ी होती है।
3) अंक संकेतन
भारत के गणितज्ञों ने ईसा से करीब 500 वर्ष पूर्व 1 से लेकर 9 तक के अंकों के लिए अलग-अलग संकेत खोजे थे। बाद में, इसे अरब लोगों ने अपनाते हुए ‘हिंद अंक’ नाम दिया था। बाद में इस प्रणाली को पश्चिमी देशों ने भी अपनाया और अरबी अंक नाम रख दिया। क्योंकि पश्चिमी दुनिया तक यह प्रणाली अरब व्यापारियों के जरिए पहुंची थी।
अंक संकेत के अलावा फाइबोनैचि संख्या भी भारत की ही देन है। फाइबोनैचि अनुक्रम संख्याओं का एक अनुक्रम है, जहां प्रत्येक संख्या 2 पिछली संख्याओं का योग है।
4) बाइनरी संख्याएं
बाइनरी प्रणाली भी भारत की ही देन है। इसके आधार पर ही कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग लिखी जाती है। बाइनरी में दो अंक होते हैं- 0 और 1। दोनों के संयोजन को बिट और बाइट कहते हैं। इस प्रणाली का पहला उल्लेख वैदिक विद्वान पिंगल के चंद्रशास्त्र में मिलता है।
5) रैखिक माप
रैखिक माप का इस्तेमाल लंबाई को दर्शाने के लिए किया जाता है। जिसे हम दूरी भी कह सकते हैं। इस प्रणाली के जनक हड़प्पावासी थे। इस काल में घरों को 1:2:4 के अनुपात में बने ईटों से बनाया जाता था। इसे अंगुल प्रणाली भी कहा जाता है।
6) वूट्ज स्टील
वूट्ज स्टील एक खास गुणों वाला इस्पात है। इसे भारत में 300 ईसा पूर्व ही विकसित किया जा चुका था। यह क्रूसिबल स्टील है, जो एक बैंड के पैटर्न पर आधारित होता है। पुरातन काल में इसे उक्कु, हिंदवानी और सेरिक आयरन नामों से जाना जाता था। इस स्टील का उपयोग दमिश्क तलवार बनाने के लिए भी किया जाता था। चेरा राजवंश के दौरान तमिलवासी चारकोल की भट्टी के अंदर मिट्टी के एक बर्तन में ब्लैक मैग्रेटाइल को गर्म पिघलाकार सबसे बेहतरीन स्टील बनाते थे।
7) प्लास्टिक सर्जरी
प्राचीन भारत के महान शल्य चिकित्सक सुश्रुत ने 600 ईसा पूर्व ‘सुश्रुत संहता’ की रचना की थी। इसमें उन्होंने कई साधनों और शस्त्रों के जरिए कई रोगों के इलाज की जानकारी दी थी। यही कारण ही उन्हें सर्जरी का जनक माना जाता है। सुश्रुत संहिता में 125 तरह की सर्जरी के यंत्रों और 300 से अधिक तरह की सर्जरी के बारे में बताया गया है।
8) मोतियाबिंद का ऑपरेशन
मोतियाबिंद की सबसे पहली सर्जरी भी 600 ईसा पूर्व सुश्रुत ने ही किया था। इसके लिए उन्होंने ‘जबामुखी सलका’ का इस्तेमाल किया था, जो एक घुमावदार सई थी। ऑपरेशन के बाद, उन्होंने आंखों पर एक पट्टी बांध दी, ताकि यह पूरी तरह से ठीक हो जाए। सुश्रुत के इन चिकित्सकीय कार्यों को बाद में अरबों ने अपनी भाषा में अनुवाद किया और उनके जरिए यह पश्चिमी देशों तक पहुंची।
9) आयुर्वेद
यूनान के प्राचीन चिकित्सक हिपोक्रेटिस से कहीं पहले चरक ने अपनी ‘चरक संहिता’ के तहत आयुर्वेद की नींव रख दी थी। चरक के अनुसार- कोई रोग पहले से तय नहीं होते हैं, बल्कि यह हमारी जीवनशैली से प्रभावित होती है। उनका कहना था कि संयमित जीवन पद्धति से रोगों से दूर रहना आसान है। उन्होंने अपनी संहिता में पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा की संकल्पना पेश की थी। उनके ग्रंथ के 8 भाग हैं, जिसमें कुल 120 अध्याय हैं। चरक संहिता को बाद में अरबी और लैटिन जैसी कई विदेशी भाषाओं में अनुवादित किया गया।
10) लोहे के रॉकेट
युद्धों में रॉकेट के इस्तेमाल की रूपरेखा सबसे पहले टीपू सुल्तान ने तैयार की थी। उन्होंने 1780 के दौरान एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लोहे के रॉकेट का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया था, जिसकी मारक क्षमता करीब 2 किमी थी। इस वजह से अंग्रेजों को युद्ध में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा।