Independence Day 2024: चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) एक महान भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले में हुआ था। आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी एक साधारण ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। मध्य प्रदेश में जन्मे आजाद से अंग्रेज लोग थर थर कांपते थे। कहा ये भी जाता है कि आजाद की मौत के बाद भी अंग्रेज सिपाही उनकी लाश के पास जाने से भी डर रहे थे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
चंद्रशेखर आजाद का बचपन का नाम चंद्रशेखर तिवारी था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भावरा में प्राप्त की, जहाँ उनके पिता एक स्कूल में अध्यापक थे। बाद में वे अपने परिवार के साथ वाराणसी चले गए, जहाँ उन्होंने संस्कृत कॉलेज में दाखिला लिया।
क्रांतिकारी गतिविधियों में प्रवेश
चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारी गतिविधियों में तब शामिल हुए, जब वे केवल 14 साल के थे। उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) में शामिल होकर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया। आजाद के नेतृत्व में एचआरए ने कई महत्वपूर्ण क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया, जिनमें काकोरी कांड और सहारनपुर-लखनऊ एक्सप्रेस लूट शामिल हैं।
आजाद का बमतुल बुखारा
चंद्रशेखर आजाद ने अपनी पिस्तौल को बमतुल बुखारा नाम दिया था। इसका निर्माण अमेरिकन फायर आर्म बनाने वाली कोल्ट्स मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ने 1903 में किया था। आजाद कहते थे जबतक बमतुल बुखारा मेरे साथ है अंग्रेज मुझे छू भी नहीं सकते.
काकोरी कांड में आजादी की भूमिका
काकोरी कांड एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी गतिविधि थी, जिसमें चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों ने सरकारी खजाने को लूटने की कोशिश की। इस घटना में आजाद के साथी अशफाकउल्लाह खान और रामप्रसाद बिस्मिल शामिल थे। हालाँकि इस घटना में आजाद को सफलता नहीं मिली, लेकिन इससे उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों को और अधिक बल मिला। इसके बाद आजाद और उनके साथियों ने सहारनुपर एक्सप्रेस से अंग्रेजों का खजाना लूटा था.
सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन में लूट
सहारनपुर-लखनऊ एक्सप्रेस ट्रेन में लूट एक और महत्वपूर्ण क्रांतिकारी गतिविधि थी, जिसमें आजाद और उनके साथियों ने सरकारी खजाने को लूटने में सफलता प्राप्त की। इस घटना में आजाद के साथी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान, मनमथनाथ गुप्ता और केशव चक्रवर्ती समेत 8 लोग शामिल थे।
‘आजाद था आजाद ही मरूंगा’
चंद्रशेखर आजाद की शहादत की कहानी बहुत प्रेरणादायक है। उन्होंने अपनी जान देकर देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी और उनकी शहादत को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। चंद्रशेखर आजाद की शहादत 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुई थी। उन्हें पुलिस ने घेर लिया था और उन्होंने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया था। आजाद ने अपनी पिस्तौल से खुद को गोली मारकर अपनी जान दे दी। आजाद की शहादत के समय, वे इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में थे, जहां उन्हें पुलिस ने घेर लिया था। पुलिस ने उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए कहा, लेकिन आजाद ने मना कर दिया था। उन्होंने कहा था, “मैं आजाद था, आजाद हूं और आजाद ही मरूंगा।”
आजाद की विरासत
भावरा में चंद्रशेखर आजाद की कुटिया में उनकी मूर्ती स्थापित की गई है। यह कुटिया आजाद के बचपन की यादों को समेटे हुए है, जहाँ उन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक वर्ष बिताए थे। मूर्ती में आजाद को एक क्रांतिकारी के रूप में दिखाया गया है, जो हाथ में बंदूक पकड़े हुए हैं और उनके चेहरे पर देशभक्ति की भावना स्पष्ट दिखाई देती है। चंद्रशेखर आजाद की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक बल दिया। उन्हें भारत के महान क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। आजाद की विरासत ने भारतीय युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उनकी शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा प्रदान की थी।