Independence Day 2024: 15 अगस्त 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब भोपाल रियासत आजाद नहीं हुई थी। दरअसल, भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान जिन्ना के करीबी दोस्त थे और वे पाकिस्तान में शामिल होने के पक्ष में थे। लेकिन भोपाल की जनता भारत में विलय के पक्ष में थी। भोपाल के नवाब ने जिन्ना के साथ मिलकर भोपाल को पाकिस्तान में शामिल करने की कोशिश की, लेकिन भोपाल की जनता ने इसका विरोध किया। नवाब के खिलाफ आंदोलन हुआ और अंत में भोपाल को भारत में विलय करने का फैसला किया गया। झीलों के शहर को भोपाल में शामिल कराने की कहानी बड़ी दिलचस्प है।
आजादी के समय भोपाल स्वतंत्र रियासत बना
आजादी के बाद भोपाल स्वतंत्र रियासत था। करीब 2 साल बाद भोपाल को भारत गणराज्य में शामिल किया गया इसमें सरदार पटेल की अहम भूमिका रही। आजादी के समय भोपाल, कश्मीर, जूनागढ़, त्रावणकोर, हैदराबाद, जोधपुर ये 6 रियासतें स्वतंत्र रहीं. इनमें से 4 प्रमुख रियासत भोपाल, कश्मीर, जूनागढ़, हैदराबाद 1 से 3 साल बाद भारत में शामिल हुईं। भोपाल की आजादी की कहानी बड़ी रोचक है और यह बताती है कि कैसे एक रियासत की जनता ने अपने नवाब के खिलाफ आंदोलन कर भारत में विलय की मांग की थी और भोपाल को भारत का हिस्सा होना चुना था.
भोपाल की आजादी की कहानी
1947 में भारत आजाद हुआ, लेकिन भोपाल रियासत आजाद नहीं हुई. यहां के नबाब हमीदुल्लाह खान ने रियासत को स्वतंत्र रखने का फैसला किया। भोपाल के नबाब, जिन्ना के करीबी दोस्त थे और पाकिस्तान में शामिल होने के पक्ष में थे। इसके बाद भारत सरकार ने भोपाल की जनता की मांग को देखते हुए नवाब पर दबाव डाला कि वे भोपाल को भारत में विलय करें। इसमें प्रमुख भूमिका सरदार पटेल की रही। आखिरकार नवाब को झुकना पड़ा नवाब ने जनता और भारत सरकार के दबाव में झुकने का फैसला किया और 1 जून 1949 में भोपाल रियासत को भारत में विलय करने का फैसला किया।
नबाब ने बनाया था अलग प्रधानमंत्री
भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की जिन्ना से दोस्ती थी, जिन्होंने उन्हें पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल पद का वादा किया था। नवाब ने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल रियासत का शासक बनने के लिए कहा, ताकि वे पाकिस्तान जा सकें, लेकिन आबिदा ने इनकार कर दिया। इसके बाद नबाब ने भोपाल रियासत के लिए मई 1948 में मंत्रिमंडल का गठन किय और चतुर नारायण मालवीय को प्रधानमंत्री बनाया गया। हालांकि जनता ने विद्रोह शुरू कर दिया और इसपर चतुर नारायण मालवीय ने इस्तीफा देकर विलीनीकरण का समर्थन किया।
इन लोगों की रही महत्वपूर्ण भूमिका
इसी बीच नवाब हज यात्रा पर चले गए इस दौरान भी भोपाल में प्रदर्शन जारी रहा और दिसंबर 1948 में बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हुआ। डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा और भाई रतन कुमार गुप्ता के नेतृत्व में ‘विलीनीकरण आंदोलन’ शुरू हुआ, जिसमें कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया। सरदार वल्लभभाई पटेल ने सख्त रुख अपनाया और नवाब को संदेश भेजा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं बन सकता और इसे मध्य भारत का हिस्सा बनना होगा। इसपर 23 जनवरी 1949 को नवाब ने मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया और सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए, लेकिन आंदोलन जोर पकड़ता रहा, और अंत में 30 अप्रैल 1949 को नबाब ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और 1 जून 1949 को भोपाल भारत का हिस्सा बन गया।