नई दिल्ली। पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से आम आदमी परेशान है। रोजाना तेल के दाम बढ़ रहे हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की बात करें तो यहां सोमवार को पेट्रोल का भाव 116 रुपये पर पहुंच गया। लेकिन अब पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए केंद्र सरकार ने एक नया ऐलान किया है। दरअसल, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने रोटरी जिला सम्मेलन 2020-21 को संबोधित करते हुए बताया कि सरकार जल्द ही ऑटो सेक्टर में फ्लेक्स -फ्यूल इंजन को लाने पर विचार कर रही है। ऐसे में जानना जरूरी हो जाता है कि ये ‘फ्लेक्स-फ्यूल’ क्या है?
इथेनॉल की कीमत पेट्रोल की तुलना में काफी कम है
गडकरी ने बताया कि इस इंजन में हम वैकल्पिक ईधन का प्रयोग कर सकते हैं। जैसे-इथेनॉल, जिसकी कीमत 60-62 रूपए प्रति लीटर है। नितिन गडकरी ने आगे कहा कि मैं परिवहन मंत्री होने के नाते ऑटो इंडस्ट्री को एक आदेश देता हूं कि वे न केवल पेट्रोल से चलने वाले इंजन बल्कि फ्लेक्स-फ्यूल इंजन भी बनाएंगे। ताकि अगर लोग विकल्प के तौर पर पेट्रोल या इथेनॉल में से किसी एक का इस्तेमाल करना चाहें तो आसानी से कर सकें।
फ्लेक्स फ्यूल इंजन क्या है?
बता दें कि इस इंजन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें आप दो तरह के फ्यूल का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह इंजन समान्य इंटर्नल कम्ब्यूशन इंजन (ICE) जैसा ही होता है। हालांकि, आप इसमें एक या एक से अधिक तरह के इंधन का प्रयोग कर सकते हैं। चाहे आप इसमें मिक्स फ्यूल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। वर्तमान में ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में ऑटोमोबाइल कंपनियां फ्लेक्स-फ्यूल इंजन बनाती है। वहीं अब इसे भारत में भी बनाने की तैयारी चल रही है।
फ्लेक्स फ्यूल इंजन का फैसला सरकार ने क्यों लिया?
दरअसल, सबसे बड़ी बात यह है कि पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए देश में वैकल्पिक ईंधन के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। सरकार ने भी अगले दो साल में पेट्रोल में 20 % इथेनॉल ब्लेंडिंग यानी कि मिश्रण का लक्ष्य रखा है। ताकि देश को महंगे कच्चे तेल आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिल सके। बतादें कि वर्तमान में 8.5 % इथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाया जाता है। लेकिन सरकार इसे आने वाले समय में 20 % तक ले जाना चाहती है। इथेनॉल का उत्पादन मुख्य रूप से गन्ने से किया जाता है।
तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है भारत
मालूम हो कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। भारत अपनी मांग का करीब 85 फीसदी हिस्सा विदेशों से आयात करता है। वहीं अगर देश आने वाले समय में ज्यादा से ज्यादा इथेनॉल का इस्तेमाल करता है तो उसे जरूरी लक्ष्य तक पहुंचने में करीब 10 अरब लीटर इथेनॉल की जरूरत पड़ेगी। बतादें कि इथेनॉल के इस्तेमाल से करीब 35 फीसदी तक कम कार्बन मोनाऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। इतना ही नहीं इथेनॉल सल्फर डाइऑक्साइड को भी कम करता है। साथ ही नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन में भी कमी आती है। बता दें कि इथेनॉल में 35 फीसदी ऑक्सीजन होता है।
कैसे बनता है इथेनॉल?
इथेनॉल को आप एक तरह से अल्कोहल मान सकते हैं, जिसे पेट्रोल में मिलाकर गाड़ियों में फ्यूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इसका उत्पादन मुख्य रूप से गन्ने की फसल से किया जाता है। इसे सीधे गन्ने के रस से बनाया जा सकता है। लेकिन शर्करा वाली कई अन्य फसलों से भी इसे तैयार किया जा सकता है। इथेनॉल से खेती और पर्यावरण दोनों को फायदा होता है। भारत में इथेनॉल ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं। क्योंकि यहां गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
ब्राजील के 40% गाड़ियों में 100% इथेनॉल का प्रयोग
वर्तमान में ब्राजील एकमात्र ऐसा देश है जहां करीब 40 फीसदी वाहन 100 फीसदी इथेनॉल पर चलते हैं। इतना ही नहीं बाकी गाड़ियां भी 24 फीसदी इथेनॉल मिले ईंधन का उपयोग कर रही हैं। इसके अलावा कनाडा सरकार इथेनॉल के इस्तेमाल पर सब्सिडी देती है। हालांकि, भारत के लिहाज से देखें तो इसका नुकसान भी है। क्योंकि इथेनॉल की डिमांड बढ़ी तो गन्ने की फसल पर किसान ज्यादा फोकस करेंगे। जबकि गन्ने की खेती में पानी काफी लगता है और फिलहाल देश में सिंचाई की व्यवस्था उतनी बेहतर नहीं है कि इसे बैलेंस बनाकर चला जा सके।