One Nation One Election: भारत में जल्द ही एक देश एक चुनाव कानून बनने वाला है। पीएम नरेंद्र मोदी की केंद्रीय कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में इस बिल को ला सकती है। अगर एक देश एक चुनाव का कानून बना तो चुनावों में होने वाला खर्च काफी कम हो जाएगा, जानें कैसे…
लोकसभा चुनाव 2024 में कितना खर्च
इस साल की शुरुआत में भारत में हुए लोकसभा चुनाव पर लगभग एक लाख करोड़ रुपए खर्च हुए। ये आंकड़ा चुनाव आयोग का है, इसलिए ये हो सकता है कि खर्च इससे भी ज्यादा हो। 2024 का लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनाव था, जो अमेरिका के 2020 के राष्ट्रपति चुनाव से भी ज्यादा महंगा था।
सबसे बड़े राज्य UP चुनाव में कितना खर्च
भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में 6 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे। यूपी की विधानसभा देश की सबसे बड़ी है, जबकि सबसे छोटी विधानसभा उत्तर पूर्वी राज्यों, गोवा और हरियाणा जैसे छोटे राज्यों में है।
सबसे छोटे राज्य गोवा में कितना खर्च
2022 में गोवा विधानसभा चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक दलों और निर्दलियों ने लगभग 100 करोड़ रुपए खर्च किए। चुनाव आयोग ने भी देश के सबसे छोटे राज्य में चुनाव कराने में लगभग 20-25 करोड़ रुपए खर्च किए होंगे। इस तरह भारत के 28 राज्यों में विधानसभा चुनावों का खर्च अलग-अलग होता है। इसलिए ये अनुमान लगाया जा सकता है कि देशभर में इन विधानसभा चुनावों पर कुल खर्च लगभग एक लाख करोड़ रुपए के आसपास होगा।
दुनिया के सबसे महंगे चुनाव
भारत
भारत में 2024 के लोकसभा चुनाव सबसे महंगे रहे, जिनमें एक लाख करोड़ रुपए का खर्च आया। 2019 में चुनावों पर 55 हजार से 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे।
अमेरिका
चार साल पहले अमेरिका में हुआ राष्ट्रपति चुनाव बहुत महंगा था, जिसमें कुल खर्च करीब 14.4 बिलियन (लगभग 1.2 लाख करोड़) होने का अनुमान लगाया गया था। इसमें उम्मीदवारों के खर्च और अन्य खर्च भी शामिल हैं। 2016 के चुनाव में भी खर्च काफी ज्यादा था, जिसका अनुमान लगभग 6.5 बिलियन डॉलर (55 हजार करोड़ रुपए) था।
ब्राजील
2018 में ब्राजील के आम चुनावों में खूब पैसा खर्च हुआ। ये करीब 2 बिलियन डॉलर (17 हजार करोड़ रुपए) था।
बढ़ता जा रहा है भारत के चुनाव का खर्च
भारतीय चुनाव अब बहुत महंगे होते जा रहे हैं और इनकी अवधि भी बढ़ती जा रही है। जैसे हाल के लोकसभा चुनाव 44 दिनों तक चले। कश्मीर विधानसभा चुनाव भी 4 फेज में हो रहा है।
पहले चुनाव में कितना होता था खर्च
भारत में 1951-52 में पहले आम चुनाव हुए थे, जिसमें लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए। इन चुनावों पर कुल 10.5 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इसे आम चुनाव कहा गया क्योंकि देश और राज्यों के चुनाव एक साथ हो रहे थे।
एक साथ चुनाव कराने से कितना पैसा बचेगा ?
केंद्र सरकार का कहना है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से खर्च में बड़ी बचत हो सकती है। इस बचत के लिए कुछ अलग-अलग अनुमान हैं।
1. भारत के विधि आयोग ने बताया है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव से अलग-अलग चुनावों पर 4500 करोड़ रुपए तक की बचत हो सकती है।
2. नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनावों की संख्या कम करने से 7500 करोड़ रुपए से 12 हजार करोड़ रुपए तक बच सकते हैं।
क्या होगा इसका दूसरा असर ?
1. भारतीय उद्योग परिसंघ का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देरी कम होगी। इससे देश के अन्य कार्यों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और केंद्र और राज्य सरकारों के चुनाव खर्च में लगभग आधी कमी आएगी।
2. प्रत्यक्ष वित्तीय बचत के अलावा, एक देश एक चुनाव प्रशासनिक तंत्र और सुरक्षा बलों पर बोझ को भी कम कर सकता है, जिससे संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा और शासन और सार्वजनिक सेवाओं में रुकावट कम होगी।
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भारत में अलग क्षेत्रों में चुनाव खर्च भी अलग
उत्तर भारत
उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में बड़े मतदाता समूह और प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के बीच ज्यादा मुकाबला होने के कारण खर्च बढ़ जाता है। रैलियों और विज्ञापनों पर खर्च काफी ज्यादा हो जाता है।
पश्चिम भारत
महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में चुनावी खर्च बढ़ जाता है। खासकर शहरों में, जहां मीडिया प्रचार ज्यादा होता है। अमीर उम्मीदवारों की मौजूदगी भी खर्च को और बढ़ा देती है।
दक्षिण भारत
तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में राजनीतिक दलों के पास अच्छी फंडिंग होती है, जो स्थानीय चुनावों में ज्यादा पैसा लगाते हैं। यहां खर्च उत्तरी राज्यों की तुलना में स्थानीय स्तर पर ज्यादा होता है और नेशनल मीडिया पर कम ध्यान दिया जाता है।
पूर्वी भारत
पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में खर्च स्थानीय पार्टी की ताकत पर निर्भर करता है। जैसे पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अपनी प्रभावी प्रचार योजनाओं के लिए फेमस है, जिससे खर्च ज्यादा होता है।
पूर्वोत्तर भारत
इन राज्यों में कम आबादी के कारण प्रचार लागत कम रहती है इसलिए कम खर्च होता है।
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