नई दिल्ली। आप में से कई लोगों ने देखा होगा कि कबूतरों में अपना रास्ता खोजने की अद्भुत क्षमता होती है। वह बदलते परिदृश्य और जटिल रास्तों के बावजूद अपना घर तलाश लेते हैं। कबूतर सदियों से एक स्थान पर ही घर बनाते आए हैं। 2 हजार साल पहले सुरक्षित संचार स्रोत के रूप में उनका उपयोग किया जाता था। कहते हैं कि जूलियस सीजर ने गॉल की अपनी विजय की खबर कबूतरों के जरिए रोम भेजी थी और नेपोलियन बोनापार्ट ने 1815 में वाटरलू की लड़ाई में इंग्लैंड से अपनी हार के बाद भी ऐसा ही किया था।
कबूतर दृश्य संकेत का इस्तेमाल करते हैं
कबूतरों के बारे में कहा जाता है कि वे दृश्य संकेतों का उपयोग करते हैं और लैंडमार्क के आधार पर अपना रास्ता पहचान सकते हैं। इसके अलावा उनके पास एक खास चुंबकीय क्षमता होती है, जो उन्हें पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करके नेविगेट करने में सहायता करती है। लेकिन अभी तक हम ठीक से नहीं जान पाए थे कि वे ऐसा कैसे करते हैं।
शोध में क्या निकला?
लेकिन अब प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ने एक शोध प्रकाशित किया है। जिसमें कहा गया है कि कबूतरों की आंखों के रेटिना में एक खास प्रोटीन होता है। जिसका नाम ‘‘क्रिप्टोक्रोम’’ है। यह एक विद्युत संकेत उत्पन्न करता है। इससे मैग्नेटिक फील्ड उत्पन होता है। कबूतरों के इस गुण को मैग्नेटोरिसेप्शन स्किल कहा जाता है। खास बात यह है कि ये स्किल सिर्फ कबूतरों में ही नहीं पाया जाता बल्कि अन्य पक्षियों में भी पाया जाता है लेकिन कबूतरों में रास्तों की समझ काफी ज्यादा होती है।
कबूतर इस दिशा में ज्यादा लंबी यात्रा करते हैं
यह गुण उन्हें रास्तों का सही पता लगाने में मदद करता है। इस गुण के अलावा कबूतरों के बारे में एक और रोचक तथ्य है। दरअसल, ज्यादातर कबूतर पूर्व-पश्चिम के बजाय उत्तर-दक्षिण दिशा में ज्यादा लंबी दूरी की यात्रा करते हैं। कबूतर ऐसा क्यों करते हैं यह शोध का विषय है। अभी तक इसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है।