- मक्का में बनी थी coffee
- भारत ले कर आए थे सूफी संत
- कैथोलिक चर्च ने लगा दी थी इस पर रोक
- जानिए Coffee को फिर भी क्यों पीते थे पोप
Coffee: पीने की शुरुआत 13वीं सदी में हुई। यमन के लोग इसके बीजों को भूनकर और उबालकर पिया करते थे।
लेकिन, एक दौर ऐसा भी रहा है, जब Coffee की दिवानगी सर चढ़ कर बोल रही थी। ये ऐसा दौर था, जब Coffee न मिलने पर तलाक तक की मांग की जा सकती थी।
असल में, अरब देशों के इतिहास में एक कड़ी ऐसी भी रही है जहां आदमी अपनी पत्नी को Coffee लाकर ना दे तो, वो उसे तलाक तक दे सकती थी।
कहानी जो भी रही हो लेकिन आज दुनिया भर में, हर दिन दो अरब कप से ज्यादा Coffee पी जाती है।
जिस Coffee को कभी जादुई काढ़ा कहा जाता था, कैसे दुनिया भर में रहने वाले लोगों का पसंदीदा पेय बन गई। आप इस आर्टिकल को पढ़ कर जान पाएंगे कि कैसे अरब देशों से Coffee भारत आई।
कहां से मिली Coffee
Coffee अरबी भाषा का शब्द है जिसका संबंध कहवा से है। ऐसा माना जाता है कि Coffee पीने का चलन मध्य पूर्व के देश यमन में शुरू हुआ था।
सबसे पहले इस्लामिक देशों में रहने वाले सूफी संत इसका इस्तेमाल किया करते थे।
इस्लाम में शराब पीने की मनाही ही थी। इसलिए भी सूफियों के बीच इसका चलन ज्यादा था।
माना जाता है कि 900 ईस्वीं के आसपास लाल सागर के दक्षिणी छोर पर स्थित इथियोपिया की पहाड़ियों में Coffee की खोज हुई। ये यमन के पास वाला इलाका है।
कल्दी और बकरी
इस इलाके में Coffee को लेकर एक लोक कथा मशहूर है।
लोक कथाओं के अनुसार कल्दी नाम का गडरिया अपनी बकरियों को चराने जंगल रोज जाया करता था।
एक रोज उसने देखा कि उसकी एक बकरी कुछ ज्यादा ही उचल- कूद कर रही है।
इतनी उत्साहित है कि सारी बकरियों से बार- बार आगे निकल जा रही है। जिस वजह से कल्दी को उसे संभालने में परेशानी हो रही थी।
कल्दी ने जब उस बकरी का पीछा किया तो देखा की एक पेड़ है। जिसके बीज बरकी खा रही थी।
कल्दी उन बीजों को इकट्ठा किया और एक मठ में ले गया।
उसे लगा की उसकी बकरी ने ऐसा कुछ खा लिआ है जिससे वो बीमार हो गई है।
मठ पहुंचते ही एक भिक्षु ने कल्दी से उन बीजों को ले लिया और आग में डाल दिया।
ऐसे तैयार हुआ Coffee का पहला कप
आग से धुआं निकला और उन बीजों की महक पूरे मठ में फैल गई। खुशबू से प्रभावित हो कर कुछ भिक्षुओं ने उन भुने हुए बीजों को लेकर पीसा और पानी में घोल दिया।
फिर क्या था तैयार हो गया Coffee का पहला कप। जिसे पी कर भिक्षु भी तरोताजा रहने लगे।
मक्का में Coffee
Coffee की शुरुआत की एक और कहानी है। 12 वीं सदी में, मोरक्को के एक सूफी संत हुआ करते थे।
माना जाता है कि संत ऐसे की कलमा पढ़ दे तो बड़ी से बड़ी बीमारी ठीक हो जाए।
अल-शदिली उमर नाम का उनका एक शिष्य हुआ करता था।
उमर मक्का में रहता था और प्रार्थना से लोगों के मर्ज दूर करता।
एक बार उमर को मक्का से निकाल दिया गया।
वो जंगलों में भटकने लगा। भटकते – भटकते उसे एक झाड़ी मिली जिसमें कुछ फल उग रहे थे।
उमर ने उन्हें खाने की कोशिश की लेकिन वो फल बहुत कड़वे थे। उसने इन बीजों को आग में पकाया लेकिन, फिर भी उनका स्वाद बेहतर नहीं हुआ।
फिर इन बीजों को पानी में उबाला गया जिससे एक काढ़ा तैयार हो गया।
अमर को मिला ताजगी का कढ़ा
जिसको पीने के बाद उमर को अपने शरीर में एक नई ताजगी आ गई और कुछ दिनों में उसकी सेहत बेहतर होने लगी।
ये खबर फैली तो मक्का तक पहुंच गई। लोगों के बीच में हलचल मच गई कि उमर ने कोई जादुई काढ़ा ढूंढ निकाला है।
मक्का में उमर को वापस बुलाया गया और उसे संत की उपाधि से नवाजा गया।
इसके बाद Coffee जिसे कहवा कहा जाता था, पूरी दुनिया में फैल गई।
ऐसे भारत पहुंची Coffee
किस्सा कुछ यूं है कि 16 वीं शताब्दी में कर्नाटक में एक सूफी संत हुआ करते थे। नाम था बाबा बुदन।
एक बार बाबा बुदन हज की यात्रा पर मक्का गए। वहां से लौटे तो अपने कुर्ते में Coffee के सात बीज छुपाकर ले आए। फिर इन बीजों को चंद्रगिरी की पहाड़ियों में अपनी गुफा के बाहर बो दिए।
कुछ दिनों के बाद उनसे पेड़ बन गये और स्थानीय लोगों में Coffee का चलन शुरू हो गया।
मुगल दरबार में Coffee
इसी दौर में मुगल दरबार में भी Coffee का जिक्र मिलता है। मुगल दरबार में जहां इसका सेवन सेहत के लिए किया जाता था, वहीं आम लोग इसे उच्च वर्ग की ड्रिंक मानते थे।
17 वीं शताब्दी के मध्य तक पुरानी दिल्ली में Coffee हाउस खुल गये थे। जिन्हें कहवाखाना बोलते थे। जल्द ही इन जगहों पर शायर और बुद्दिजीवी आने लगे और धीरे- धीरे ये उनकी सिग्नेचर ड्रिंक बन गई।
कहवे की चुस्की मारते हुए कई शायरों ने दिल्ली की आन बान शान में इज़ाफ़ा किया। कई बार तो शायरों ने Coffee का जिक्र करते हुए भी लिखा है।
ये लोग अपनी नजमों और गजलों में कहवाखानों का जिक्र करते रहे हैं।
Coffee को कर दिया बैन
लेकिन, 17 वीं शताब्दी के मध्य तक इटली के हालात कुछ और थे यहां Coffee हाउस को चर्च का विरोध माना जाता था। कैथोलिक चर्च ने इस पर रोक लगा दी थी।
चर्च का मानना था कि Coffee एक मुस्लिम ड्रिंक है। इसलिए ईसाइयों को इसे नहीं पीना चाहिए।
इसे शैतान की पसंदीदा ड्रिंक का नाम तक दे दिया गया पर एक रोज किसी ने उन्हें Coffee दे दी और अनजाने में पोप पी भी गए। पीते ही उनका मन पूरी तरह बदल गया। पोप को ये इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे ईसाई ड्रिंक तक डिक्लेयर कर दिया।
Coffee पर कानून
वहीं इस दौर में अरब में ऐसे कानून बनाये जा रहे थे। जो Coffee के प्रति लोगों की दिवानगी को दिखाते हैं। ये कानून आज भी लागू हैं।
सऊदी अरब में तो, लोगों के लिए इसकी भूमिका इतनी प्रमुख हो गई कि कानून तक पारित किए गए।
इस देश में ये एक विचारशील व्यक्ति का ईधन था। जो दिमाग को जगाए रखता था।
सूफी फकीरों ने इसे देर तक जागने और अनुष्ठान करने के इस्तेमाल भी किया है
यही कारण है कि सऊदी अरब में यदि आप अपनी पत्नी के लिए Coffee नहीं लाते है। तो इसे इतिहास के अनुसार तलाक का एक वैध कारण माना जाता है।