Hari Singh Gour Jayanti 2024: दानी, शिक्षाविद, दिल्ली विश्वविद्यालय के पहले कुलपति रहे डॉ. हरि सिंह गौर की आज (26 नवंबर) 155वीं जयंती है। उन्होंने 1946 में बुंदेलखंड के बच्चों की शिक्षा के लिए जीवनभर की पूंजी दान कर दी थी। हरि सिंह गौर निजी संपत्ति दान कर सागर यूनिवर्सिटी खोलने वाले मध्यप्रदेश के पहले दानी हैं।
यह यूनिवर्सिटी स्वतंत्रता से पहले 1946 में शुरू हुआ था। सागर यूनिवर्सिटी के लिए हरि सिंह गौर ने दो करोड़ से अधिक की संपत्ति दान कर दी थी। आइए सागर के सपूत हरि सिंह गौर के जन्मदिन पर उनके बारे में जानते हैं।
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— Bansal News (@BansalNewsMPCG) November 26, 2024
डॉ. हरसिंह गौर शिक्षा
हरि सिंह गौर का जन्म 26 नवंबर 1870 को एमपी के सागर में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता एक बढ़ई और किसान थे। दस साल की आयु में हरि ने स्कॉलरशिप जीती, जिससे वे आगे की पढ़ाई के लिए जबलपुर चले गए। उन्होंने हिसलोप कॉलेज, नागपुर से अपनी इंटरमीडिएट परीक्षा पास की।
18 वर्ष की उम्र में हरि कैम्बिज यूनिवर्सिटी गए। उन्होंने स्टेपिंग वेस्टवर्ड एंड अदर पोएम्स नामक कविता की एक बुक लिखी। हरि सिंह गौर को रॉयल सोसाइटी ऑफ लिटरेचर का सदस्य चुना गया। उन्होंने 1892 में बी.ए, 1896 में एम.ए, 1902 में एल.एम.एम और 1908 में एल.एल.डी की डिग्री प्राप्त की।
दिल्ली विश्वविद्यालय के पहले कुलपति
1922 में केंद्र सरकार ने दिल्ली में यूनिवर्सिटी की स्थापना की। डॉ. हरि सिंह गौर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए और 1926 तक अपनी सेवाएं दी। उनके कार्य कौशल से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1925 में सर की उपाधि दी। इसके बाद 1928 से 1936 तक नागपुर विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर रहे।
सागर विश्वविद्यालय की स्थापना
सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद इंग्लैंड से भारत आने पर हरि सिंह गौर ने सागर के प्रमुख नागरिकों से संपर्क किया और यूनिवर्सिटी की स्थापना की। उन्होंने बिना किसी सहायता के 18 जुलाई 1946 में सागर विश्वविद्यालय का शुभारंभ किया।
सुप्रीम कोर्ट की स्थापना का पहला प्रस्ताव
साल 1919 में देश में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट लागू हुआ। साथ ही उपनिवेशीय केंद्रीय विधान सभा का गठन किया गया। हरि सिंह गौर नागपुल सेंट्रल से इलेक्शन जीतकर 16 साल तक सदस्य रहे। पहली बार उपनिवेशीय केंद्रीय विधानसभा पहुंचे और 1921 को भारत में सुप्रीम कोर्ट के गठन का प्रस्ताव पेश किया। उनके प्रस्ताव की जमकर तारीफ हुई। प्रस्ताव को लेकर महात्मा गांधी ने एक लेख भी लिखा था।