Gwalior BJP President: लंबे इंतजार के बाद बीजेपी ने जिला अध्यक्षों के नामों का ऐलान करना शुरु कर दिया है। हालांकि रविवार को दो और सोमवार रात 18 नामों का ऐलान करने वाली बीजेपी अब तक ग्वालियर जिले में उलझा पेंच नहीं सुलझा पाई है। दरअसल, ग्वालियर जिलाध्यक्ष को लेकर बीजेपी के दिग्गज नेताओं के बीच खींचतान हो रही है।
ग्वालियर में BJP अध्यक्ष पर फंसा पेंच
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा की जोर आजमाइश के चलते यहां मामला अटक गया है। दरअसल, ये तीनों क्षत्रप अपनी-अपनी पसंद के करीबी को जिले की कमान सौंपना चाहते हैं। ऐसे में, ग्वालियर के जिलाध्यक्ष का मामला फिलहाल होल्ड पर चला गया है।
3 क्षत्रपों की जोर आजमाइश से अटका मामला
बीजेपी के अंदरखानों की मानें तो नरेंद्र सिंह तोमर ने रामेश्वर भदौरिया का नाम जिलाध्यक्ष (Gwalior BJP President) के लिए आगे बढ़ाया है। वहीं सिंधिया ने पारस जैन और आशीष अग्रवाल के नाम संगठन को सुझाए हैं। उधर बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा यहां जयप्रकाश राजौरिया को अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इनमें सबसे ज्यादा पलड़ा राजौरिया का ही भारी है। ग्वालियर जिले में संगठन वीडी की पसंद को दरकिनार नहीं कर सकता। वो भी तब, जब वीडी शर्मा की फिर से अध्यक्ष के तौर पर कमान संभालने की चर्चाएं चल रही हो।
कई जिलों के अध्यक्ष किए गए रिपीट
ऐसे में ग्वालियर (Gwalior BJP President) को लेकर सबसे ज्यादा माथापच्ची हो रही है। आपको बता दें, वर्तमान में बीजेपी के 62 संगठनात्मक जिले हैं। इस बार सागर ग्रामीण और धार ग्रामीण दो नए जिलों में भी जिला अध्यक्ष नियुक्त किए जाएंगे। इनमें से कई जिलों के अध्यक्ष रिपीट भी किए जा सकते हैं। सोमवार रात जारी 18 जिलों के जिला अध्यक्षों में 9 जिलों में अध्यक्ष रिपीट किए गए हैं।
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सिंधिया समर्थक को अध्यक्ष बनाने बदला नियम?
बीजेपी का संविधान है कि वही कार्यकर्ता या नेता जिला अध्यक्ष बन सकता है, जिसे पार्टी जॉइन किए 6 साल से ज्यादा का वक्त हो चुका हो। उधर जसमंत जाटव ने साल 2020 में सिंधिया और बाकी समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़ी थी। इसके बाद बीजेपी ने उन्हें 2020 उपचुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया। हालांकि वो ये उपचुनाव हार गए।
फिलहाल, जसमंत जाटव को बीजेपी में शामिल हुए सिर्फ 4 साल ही हुए हैं, लेकिन फिर भी पार्टी ने नियमों का उल्लंघन कर जाटव को शिवपुरी की कमान सौंप दी। सियासी गलियारों की मानें तो सिंधिया की पसंद के चलते जाटव की नियुक्ति हुई है। 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ने की चाह रखने वाले जाटव को पार्टी ने उस वक्त टिकट नहीं दिया था।
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