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Guru Purnima 2023: कौन हैं धूनीवाले बाबा, मध्यप्रदेश के इस ख़ास मंदिर में 93 साल से जारी है गुरु-शिष्य परंपरा

ध्यप्रदेश के खंडवा के दादाजी धूनीवाले (Dhuniwale Dadaji)  के बारे में, आखिर कौन हैं धूनीवाले बाबा (Dhuniwale Baba)

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Preeti Dwivedi
Guru Purnima 2023: कौन हैं धूनीवाले बाबा, मध्यप्रदेश के इस ख़ास मंदिर में 93 साल से जारी है गुरु-शिष्य परंपरा

खंडवा| Guru Purnima 2023 -Dhuniwale Baba:आज देश में गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima)का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. ऐसे में आज हम आपको बताते हैं मध्यप्रदेश के खंडवा के दादाजी धूनीवाले (Dhuniwale Dadaji)  के बारे में, आखिर कौन हैं धूनीवाले बाबा (Dhuniwale Baba)

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इनके मंदिर की ख़ास बात ये है कि यहां भक्तों को टिक्कड़ और चटनी का प्रसाद बांटा जाता है. इतना ही नहीं यहां आज भी 93 साल के लगातार परंपरा जारी है, यहां बस एक धूनी जलती है, इसलिए इसे दादाजी धूनीवाले का धाम, दादाजी धूनीवाले बाबा का मंदिर कहा जाता है.

कौन हैं केशवानंद महाराज बड़े दादाजी यानि धूनीवाले बाबा - Who is Dhuniwale Baba Keshwanand :

मां नर्मदा के अनन्य भक्त केशवानंद महाराज बड़े दादाजी कहलाते हैं. तो उनके शिष्य हरिहरानंद महाराज को भक्त छोटे दादाजी कहते हैं. गुरू-शिष्य की अनोखी परंपरा वाली ये शायद इकलौती जगह होगी. जहां गुरू और शिष्य की समाधि एक ही जगह पर मौजूद है. बड़े दादाजी की समाधि के सामने ही धुनी माई है. जानकारी के अनुसार वर्ष 1930 से यहां लगातार धुनी जल रही है. सबसे खास बात या है की यहां भक्त सूखे नारियल का स्वान करते हैं और नई ऊर्जा के साथ घर लौटते हैं.

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दादाजी धूनीवाले का मंदिर - Dhuniwale Dadaji Temple 

मूलत यह एक अखाड़ा था जो देशाटन करते हुए खंडवा पहुंचा था। यही पड़ाव डाला और  कुछ दिनों बाद ही दादाजी  यहां समाधि लीन हो गए। कालांतर में उनके शिष्यों ने यहां भव्य मंदिर बना दिया। तभी से यह दादाजी धूनीवाले का मंदिर कहलाने लगा। गुरु शिष्य परंपरा की अनोखी मिसाल पेश करने वाले इस मंदिर में देश भर से श्रद्धालु आते हैं इस मंदिर में न तो कोई पंडा पुजारी व्यवस्था है और न ही इस मंदिर के दरवाजे कभी बंद होते हैं।

श्रद्धालु स्वयं चादर चढ़ाते हैं, दर्शन करते हैं और प्रसाद पाकर निकल जाते हैं।दादाजी की समाधि के सामने अनवरत जल रही धूनी ही उनकी शक्ति मानी जाती है। समाधि के सामने जलने वाली धूनी में ही सब कुछ स्वाह किया जाता है।

3 दिन तक चलता है गुरु पूर्णिमा का उत्सव – Guru Purnima Utsav 2023 

गुरू पूर्णिमा का उत्सव 3 दिनों तक चलता है. आपको बता दें खंडवा में लाखों भक्त यहां पहुचते हैं इसलिए यहां पूरा खंडवा शहर भक्तों की मेजबानी करता है. सैंकड़ों किलोमीटर दूर से नंगे पैर आ रहे भक्तों के रहने-खाने के लिए, खंडवा वाले अपने घरों के दरवाजे खोलने से भी परहेज नहीं करते. यहां पूरे शहर में 200 से ज्यादा निशुल्क भंडारे लगते हैं. बुजुर्ग और दिव्यांगों के लिए ट्रांसपोर्ट की सुविधा भी की जाती है.

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24 घंटे खुला रहता है धाम 

दादाजी धूनीवाले का धाम की सबसे ख़ास बात ये है कि ये 24 घंटे खुला रहता है. दादा दरबार के दरवाजे भक्तों के लिए कभी बंद नहीं होते. यानि यहां भक्त कभी भी आकर दर्शन कर सकते हैं. गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima Dhuniwale Dadaji ji) के मौके पर खंडवा के दादाजी धूनीवाले का मंदिर एक बार फिर लाखों भक्तों पहुंचे. गुरु शिष्य की अनूठी मिसाल यहां देखने को मिलती है।

बड़े दादाजी (Bade Dadaji) केशवानंद महाराज ओर उनके शिष्य हरिहरानंद महाराज की समाधि एक जगह मौजूद है। दादा जी के अनुयाई विदेशों में भी हैं। देश-विदेश से आने वाले भक्तों को ध्यान में रखते हुए मंदिर ट्रस्ट 3 दिन तक गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2023)उत्सव मनता है. दो दिन पहले से ही भक्तों का यहां आना शुरू हो गया है।

लगभग 4 लाख लोग यहां दादाजी धूनीवाले की समाधि पर मत्था टेकने आते हैं। खास बात यह है कि इन श्रद्धालुओं के लिए पूरा शहर मेजबानी करता है। जगह जगह निशुल्क भंडारे और सेवा के कार्य खंडवा के लोगों की ओर से किए जाते हैं।

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इसलिए कहते है धूनीवाले बाबा – (Dhuniwale Baba) 

इस मंदिर में दो समाधि एक केशवानंद महाराज की और दूसरी उनके शिष्य और भाई हरिहरानंद महाराज की। दोनों ही अवधूत संत थे ,नग्न अवस्था में रहते थे। पवित्र नदी नर्मदा के किनारे वर्षों तक आराधना की और आध्यात्मिक शक्ति के बल पर ही वह पूजे जाने लगे। वह हमेशा अपने साथ एक जलती हुई धूनी रखते थे। श्रद्धालु भक्ति भाव से जो कुछ भी लाता सब इस धूनी में स्वाहा कर दिया जाता है। इसलिए उन्हें धूनीवाले बाबा (Dhuniwale Baba) कहते हैं.

50 सालों से धूनीवाले बाबा का मंदिर की पदयात्रा –  Dhuniwale Dada ka mandir:c

देश विदेश तक उनके अनुयाई फैले हैं। गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2023) के मौके पर वह अपनी मुरादे लेकर आते हैं। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से कई समूह सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए यहां पहुंचते हैं, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी होते हैं। महाराष्ट्र के पांढुर्ना और बैतूल जिले से अनुयायियों के समूह पिछले 50 सालों से लगातार पैदल यात्रा करते हुए यहां पहुंचते हैं और निशान अर्पित करते हैं। अनुयायियों का मानना है कि इस पैदल यात्रा में उनकी रक्षा दादाजी धूनीवाले (Dhuniwale Dadaji) करते हैं और उनसे जो कुछ भी मांगा जाता है वह मुराद पूरी होती है।

बनता है टिक्कड़ का प्रसाद

दादाजी (Dhuniwale Dadaji)का टिक्कड़ का प्रसाद, भक्त बड़े चाव से खाते हैं. यहां न कोई बड़ा है और न कोई छोटा.अपनी मनोकामना लेकर आने वाला हर भक्त यही कहता है. देने वाले दादाजी.. पाने वाले दादाजी...यहां टिक्कड़ और चटनी का प्रसाद (Tikkad Ka Prasad) मिलता है.

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