गुना। जिले की एक वकील ने राजस्थान के लगभग 140 ग्रामीणों से धोखाधड़ी की है। ग्रमीणों ने वकील पर आरोप लगाया है कि उन्हें जमीन के पट्टे दिलाने का लालच देकर वकील ने हम सभी से 50-50 हजार रुपये जमा करा दिए। इसके अलावा जमीन को ऑनलाइन दर्ज करवाने के नाम पर भी 7-7 हजार रुपये लिए।
घर की संपत्ति गिरवी रखकर दिए पैसे
गांव के लोगों का कहना है कि हम सभी ने वकील को पैसे घर की संपत्ति गिरवी रख कर दिए हैं। वहीं कई ग्रामीणों ने साहूकार से ब्याज पर पैसे भी लिए वकीन को देने के लिए। अब तीन साल बीत चुके है अब भी गांव के लोगों को जमीन उपलब्ध नहीं कराई गई। इस मामले में 27 अगस्त को इकठ्टा होकर ग्रामीण कैंट थाने पहुंचे और पुलिस में वकील के खिलाफ धोखाधड़ी करने का मामला दर्ज करवाया।
पहले मामला जान लीजिए
राजस्थान के बारां, जिले के छीपा बड़ौद तहसील के नागरिक रविवार को शहर के कैंट थाने पहुंचे। उन्होंने बताया कि 2020 में उनके पास बमोरी इलाके के रहने वाले गोरेलाल और काडू आये। उन्होंने कहा कि गुना जिले के बमोरी इलाके में उन्हें 15-15 बीघा जमीन के पट्टे दिलवा देंगे। उसकी किताब भी मिल जाएगी। इसके लिए 50 हजार रुपये लगेंगे।
पूजा शर्मा पल लगे ठगी के आराेप
गुना में एक वकील हैं-पूजा शर्मा। वह जमीन दिलवा देंगी। ग्रामीणों ने यकीन कर लिया और वह गुना में आकर वकील से मिले। वकील पूजा शर्मा ने उन्हें कहा कि पीपलखेड़ी गांव में जमीन का पट्टा दिला देंगे। ग्रामीणों को यकीन हो गया और उन्होंने 50-50 हजार रुपये दे दिए। उन्होंने अपने नाते-रिश्तेदारों को भी इसके बारे में बताया, तो वो भी तैयार हो गए।
140 लोग हुए ठगी का शिकार
धीरे-धीरे कर लगभग 140 लोग इस झांसे में आ गए। उन्होंने वकील को 50-50 हजार रुपये दे दिए। पैसे देने के बदले 15 बीघा जमीन का पट्टा देने की बात हुई थी। किसी ने तो तीन-तीन पट्टे लेने के लिए पैसे दे दिए। किसी ने 50 हजार, किसी ने एक लाख, तो किसी ने डेढ़ लाख रुपये तक दे दिए। दो-चार दिन बाद ही वकील ने उन्हें जमीन की किताब दे दीं।
नकली बही ग्रमीणों को थमाई
इन बही में बाकायदा खसरा नंबर, जमीन का क्षेत्रफल लिखा हुआ था। बही में पटवारी, RI और तहसीलदार के सील-सिक्के और हस्ताक्षर भी थें। जिस तरह असली बही में जमीन, हल्के की जानकारी दी जाती है, उसी तरह नीली और लाल स्याही से बही में भी जानकारी लिखी गयी।
ग्रामीणों को लगवाए गुना के चक्कर
ग्रामीणों ने बताया कि वकील ने उनसे कहा था कि 6 महीने तक किसी से इस बारे में बात न करें। 6 महीने में जमीन ऑनलाइन उनके नाम हो जाएगी। ऑनलाइन के नाम पर उनसे फिर 7-7 हजार रुपये लिए गए। इसके बाद ग्रामीणों को हर दो-तीन महीने में बुलवाया जाता और कोर्ट में पेशी कराई जाती। वहां उनसे किसी कागज पर हस्ताक्षर करा लिए जाते।
हर पेशी पर वकील 500-600 रुपये ले लेती। ग्रामीणों ने कई बार जमीन का कहा लेकिन किसी न किसी बहाने से उन्हें टाल दिया जाता। ग्रामीणों ने जब जोर देकर कहा तो किसी आदमी को पटवारी बताकर जमीन नापने के लिए भेज दिया। वह व्यक्ति भी ग्रामीणों को जमीन दिखाकर वापस आ गया।
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