अहमदाबाद। गुजरात में आरक्षण आंदोलन की पृष्ठभूमि में 2017 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ मतदान करने वाला पाटीदार समुदाय 2022 के चुनावों में सत्ताधारी दल के साथ लौट आया और इस समुदाय के प्रभुत्व वाली अधिकांश सीटों को जीतने में मदद की।भाजपा ने राज्य के पाटीदार बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है, लगभग हर सीट पर जीत हासिल की है जहां पटेलों की अच्छी खासी आबादी है।गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतदान 1 और 5 दिसंबर को हुआ था और वोटों की गिनती 8 दिसंबर को हुई ।
सौराष्ट्र क्षेत्र में कांग्रेस ने 2017 में मोरबी, टंकरा, धोराजी और अमरेली की पाटीदार बहुल सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, ये सभी विधानसभा क्षेत्र इस बार भाजपा की झोली में गए।पाटीदार बहुल सूरत में, जहां आम आदमी पार्टी कुछ सीटों को हासिल करने के लिए समुदाय पर निर्भर थी, वहां इस समुदाय ने बड़े पैमाने पर सत्ताधारी दल का समर्थन किया। पार्टी ने वराछा रोड, कटारगाम और ओलपाड की पाटीदार सीटों पर बड़े अंतर से जीत हासिल की।उत्तर गुजरात में, कांग्रेस ने पांच साल पहले पाटीदार बहुल उंझा सीट जीती थी, लेकिन इस बार वह भाजपा से हार गई।
भाजपा ने 2022 के चुनाव से पहले पटेल समुदाय तक पहुंच बनाई। सितंबर 2021 में पार्टी ने अपने मुख्यमंत्री विजय रूपानी की जगह भूपेंद्र पटेल को नियुक्त किया।सत्तारूढ़ दल पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल को कांग्रेस से अपने पाले में ले आया और उन्हें वीरमगाम विधानसभा सीट से मैदान में उतारा, जहां से उन्होंने भारी अंतर से जीत हासिल की।राज्य और केंद्रीय स्तर पर भाजपा का सबसे बड़ा कदम जिसने समुदाय को खुश किया, वह ‘‘उच्च जातियों’’ के बीच गरीबों (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग या ईडब्ल्यूएस) को नौकरियों और शिक्षा में 10 प्रतिशत कोटा देना रहा।
2017 के चुनाव समुदाय के लिए ओबीसी का दर्जा हासिल करने के लिए शुरू किए गए हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाले कोटा आंदोलन की छाया में लड़े गए थे।2017 के चुनावों में 182 में से 150 सीटें जीतने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने के बावजूद, भाजपा को सिर्फ 99 सीटें मिलीं थीं। पाटीदार कोटा आंदोलन और भाजपा के खिलाफ हार्दिक पटेल के अभियान की बदौलत विपक्षी कांग्रेस तब 77 सीटों पर विजयी हुई थी।समुदाय के अनुमान के अनुसार, गुजरात में लगभग 40 सीटें ऐसी हैं जहां पाटीदार मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ये सीटें राज्य के ग्रामीण और शहरी इलाकों में फैली हुई हैं।
हालांकि पटेल समुदाय गुजरात की आबादी का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा है लेकिन 2017 में 44 पाटीदार विधायक चुने गए जो गुजरात में चुनावी राजनीति पर उनके प्रभाव को दिखाता है।सौराष्ट्र क्षेत्र में पाटीदार मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या वाली कुछ सीटों में मोरबी, टंकारा, गोंडल, धोराजी, अमरेली, सावरकुंडला, जेतपुर, राजकोट पूर्व, राजकोट पश्चिम और राजकोट दक्षिण शामिल हैं।जबकि उत्तरी गुजरात में विजापुर, विसनगर, मेहसाणा और उंझा सीटों में पाटीदार मतदाताओं की काफी संख्या है, अहमदाबाद शहर की कम से कम पांच सीटों – घाटलोडिया, साबरमती, मणिनगर, निकोल और नरोदा – को भी पटेल बहुल क्षेत्र माना जाता है।
दक्षिण गुजरात में, सूरत जिले की कई सीटों को पाटीदारों का गढ़ माना जाता है, जिनमें वराछा, कामरेज, कटारगाम और सूरत उत्तर शामिल हैं।2022 के चुनावों के लिए भाजपा ने 41 पाटीदारों को टिकट दिया था, जो कांग्रेस की संख्या से एक अधिक था। आप ने भी समुदाय से बड़ी संख्या में सदस्यों को टिकट दिया था।
समुदाय को खुश रखने के लिए, भगवा संगठन ने यह भी घोषणा की थी कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को इस पद पर बनाए रखा जाएगा।चुनावों से पहले, जामनगर स्थित सिदसर उमियाधाम ट्रस्ट, जो कड़वा पाटीदार संप्रदाय का प्रतिनिधित्व करता है, ने मांग की थी कि भाजपा कम से कम 50 पाटीदार उम्मीदवारों को मैदान में उतारे।