नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने कहा है कि हालांकि मध्य प्रदेश तरल कचरा प्रबंधन में कमियों के लिए 3,000 करोड़ रुपये अदा करने के लिए जिम्मेदार है, लेकिन राज्य ने अपशिष्ट जल शोधन के लिए पहले ही 9,000 करोड़ रुपये से अधिक का प्रावधान कर दिया है, इसलिए मुआवजा लेने का कोई मामला नहीं बनता है।
हालांकि, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने राज्य को अपशिष्ट जल प्रबंधन की दिशा में छह महीने के अंदर सार्थक प्रगति करने का निर्देश दिया। अधिकरण ने राज्य के मुख्य सचिव को छह मासिक प्रगति रिपोर्ट भी दाखिल करने क निर्देश दिया। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूति ए.के. गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मुख्य सचिव की रिपोर्ट के अनुसार अपशिष्ट जल उत्पादन और शोधन में प्रति दिन करीब 150 करोड़ लीटर का अंतर है। पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथील वेल भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि कचरा प्रबंधन पर पर्यावरण नियमों के अनुपालन को शीर्ष प्राथमिकता देनी होगी। एनजीटी ने कहा कि यह उपयुक्त समय है, जब राज्य सरकार को कानून एवं नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना चाहिए तथा अपने स्तर पर और निगरानी करने को अपनाना चाहिए।
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