Green Crackers: दीपावली आने से पहले चंडीगढ़ में पटाखे छोड़ने पर रोक लगा दी गई है। दिवाली पर लोक केवल रात 8 से 10 बजे तक ही पटाखे चला सकेंगे। लेकिन जिला प्रशासन ने लोगों को केवल ग्रीन पटाखे (Green Crackers) जाने की ही अनुमति दी है। प्रशासन ने लोगों से नियमों को मानने की अपील की है। प्रशासन ने चंडीगढ़ में लिथियम, बेरियम और जहरीले रसायनों वाले पटाखे फोड़ने पर पूरी तरह से बैन लगा दिया है। हालांकि प्रशासन ने कुछ जगाहों पर पटाखे बेचने की अनुमति दी है। लेकिन क्या आप जानते है कि ग्रीन पटाखे (Green Crackers) क्या होते है और ये पटाखे सामान्य पटाखे से कितने अलग होते है? आइए जानते है।
क्या होते हैं ग्रीन पटाखे?
ग्रीन पटाखे (Green Crackers) समान्य पटाखों से कम प्रदूषणकारी होते है। ग्रीन पटाखों (Green Crackers) को बनाने में कच्चे माल का इस्तेमाल किया जाता है। ग्रीन पटाखों (Green Crackers) से निकलने वाली धूल दब जाती है, जिसकी चलते हवा में पटाखों के कण कम उत्सर्जित होते हैं। जबकि सामान्य पटाखे करीब 160 डेसिबल ध्वनि पैदा करते है, लेकिन ग्रीन पटाखे (Green Crackers) 110-125 डेसिबल तक सिमट जाते हैं।
क्या कम प्रदूषक होते हैं पटाखे?
ग्रीन पटाखे (Green Crackers) बनाने में भी एल्युमीनियम, बेरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन जैसे प्रदूषणकारी रसायनों का इस्तेमाल होता है। इन तत्वों का इस्तेमाल कम मात्रा में किया जाता है, जिससे पटाखों से होने वाला उत्सर्जन 30 प्रतिशत तक कम हो जाता है। कुछ ग्रीन पटाखे (Green Crackers) ऐसे भी होते हैं, जिनमें इनका इस्तेमाल बिलकुल भी नहीं होता है। ग्रीन पटाखों (Green Crackers) से प्रदूषण नहीं फैलता, यह कहना गलत होगा। प्रदूषण फैलता है लेकिन सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखे (Green Crackers) , कम प्रदूषण फैलाते हैं।