मेलबर्न। दुनियाभर में पत्रकारों पर डिजिटल माध्यम से कसे जा रहे शिकंजे के कारण प्रेस की स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न हो रही है। डिजिटल शिकंजा, प्रेस की स्वतंत्रता में बाधा डालता है, पत्रकारों के खिलाफ गलत सूचना फैलाता है या उनके काम को बदनाम करने की कोशिश करता है। खबरों की पहुंच दुनिया की 85 प्रतिशत आबादी तक पहले ही सीमित है और अब प्रेस स्वतंत्रता पर डिजिटल शिकंजे ने हालात और बिगाड़ दिए हैं।संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अनुसार, नए डिजिटल व्यापार मॉडल, निगरानी प्रौद्योगिकियों का विकास, इंटरनेट कंपनियों की पारदर्शिता और बड़े पैमाने पर डेटा संग्रह तथा प्रतिधारण सभी पत्रकारों और उनके स्रोतों के लिए जोखिम पैदा करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनेस्को को प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का काम सौंपा गया है।governments against free press
निरंतर हमले स्वतंत्र प्रेस को खतरे में डालते हैं
एजेंसी ने कहा कि कुछ देशों में नए कानूनों के कारण पत्रकारों पर सेंसरशिप (कभी-कभी इरादतन, कई बार गैर-इरादतन) बढ़ गई है। वे अपने कामों पर एआई (कृत्रिम बुद्धि)-संचालित निगरानी और हमलों का भी विरोध करते हैं। यूनेस्को बेरूत में संचार एवं सूचना के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के अधिकारी जॉर्ज अवार्ड ने कहा, ‘‘सरकार में शामिल और सरकार से इतर ताकतों द्वारा पत्रकारों और मानवाधिकार रक्षकों के खिलाफ मैलवेयर तथा स्पाइवेयर के निरंतर हमले स्वतंत्र प्रेस को खतरे में डालते हैं।’’वर्ष 2020 में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने सदस्य देशों से ‘‘एन्क्रिप्शन और एनोनिमिटी उपकरण जैसी तकनीकों के उपयोग के कारण होने वाले हस्तक्षेप से बचने’’ का आह्वान किया था। तथ्यों की जांच.. दुनिया भर में 2021 तक बीते छह साल में, 455 पत्रकारों की हत्या उनके काम की वजह से की गई। दुनिया में अधिकतर जगह इन घटनाओं में कमी आई है, लेकिन एशिया प्रशांत क्षेत्र में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। पत्रकारों के खिलाफ ऑनलाइन हमले बढ़ रहे हैं और महिलाएं इससे काफी प्रभावित हो रही हैं।governments against free press
महिला पत्रकारों पर यह खतरा और बढ़ा
2021 में 125 देशों के 901 पत्रकारों के सर्वेक्षण में पाया गया कि 73 प्रतिशत महिला पत्रकारों ने किसी न किसी रूप में ऑनलाइन हिंसा का सामना किया।वैश्विक महामारी के दौरान पत्रकारिता पर एक वैश्विक सर्वेक्षण ने उभरते खतरों की पहचान की। इसमें सरकारी निगरानी (सात प्रतिशत), ‘फिशिंग, डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल ऑफ सर्विस (डीडीओएस) या मैलवेयर सहित लक्षित डिजिटल सुरक्षा हमले (चार प्रतिशत), फोसर्ड डेटा हैंडओवर (तीन प्रतिशत) मामले शामिल हैं। ऑनलाइन दुर्व्यवहार, उत्पीड़न, धमकियों या हमले (एक प्रतिशत) के मामले ‘‘काफी अधिक’’ हैं। विचार….हांगकांग बैपटिस्ट यूनिवर्सिटी के मीडिया स्टडीज के प्रोफेसर एवं रिसर्च के लिए एसोसिएट डीन चेरियन जॉर्ज ने कहा, ‘‘ डिजिटल क्रांति ने मीडिया को प्रदर्शनों के अनुकूल बना दिया है, लेकिन सहिष्णु, विविधतापूर्ण विचार रखने वाली जनता के लिए इसका योगदान बेहद कम या नकारात्मक भी प्रतीत होता है।governments against free press
आंगे की राह है मुश्किल
यह दो दशक पहले की उम्मीदों के विपरीत है कि इंटरनेट पूर्व-डिजिटल समाज की तुलना में कहीं अधिक लोकतांत्रिक तथा समावेशी ‘डिजिटल सार्वजनिक क्षेत्र’ बनाने में मदद करेगा।’ नॉटिंघम मलेशिया विश्वविद्यालय में मीडिया, भाषा एवं संस्कृति के स्कूल में सहायक प्रोफेसर गायत्री वेंकटेश्वरन ने कहा, ‘‘ प्रमुख तथ्य यह है कि मीडिया गलत सूचना तथा दुष्प्रचार फैलाने के लिए जिम्मेदार है, लेकिन अध्ययनों से पता चलता है कि झूठी सूचनाएं मुख्य तौर पर राजनेताओं द्वारा फैलाई जाती हैं।’’ इंडोनेशिया में एयरलंगा विश्वविद्यालय में संचार विभाग में सहायक प्रोफेसर दीना सेप्तियानी ने कहा, ‘‘ अतीत में, मास मीडिया एक विशेष एजेंडा के तहत सार्वजनिक चर्चा को प्रभावित कर सकता था, लेकिन अब तकनीक (एल्गोरिदम) के जरिए ऐसा किया जा रहा है…’’governments against free press