समय भले ही बदल गया हो, सरकारी दफ्तरों को आधूनिक तकनीकियों से लैंस कर दिया गया, लेकिन आज भी सरकारी दफ्तरों में शिकायती कागजों के पुलिंदे आपको देखने को मिल जाएंगे। बात यह भी है कि आजकल शिकायती आवेदनों को भले ही कम्प्यूटरों में एपलोड कर एकत्रित किया जाने लगा है। लेकिन आज भी कंप्यूटर के वायर चूहे कूतर देते है। लेकिन आज हम यह बात इसलिए कर रहे है, क्योंकि एक वक्त ऐसा भी था जब सरकारी कार्यालयों, कोषालयों के रिकॉर्ड रूम बिल्लीयों को तैनात किया जाता था। जी हां सरकार दफ्तरों के रिकॉर्ड रूमों में बिल्लीयों को तैनात किया जाता था। इसके लिए बकायदा सरकार की ओर से उनके खान पान के लिए फंड जारी किया जाता था। एक तरह से बिल्लियों को सरकारी नौकरी दी जाती थी।
सरकार क्यों पालती थी बिल्लियां
सरकारी विभागों के रिकॉर्ड रूमों में जमा दस्तावेजों, फाइलों की सुरक्षा के लिए बिल्ली पालने का चलन था। उस दौर में सरकार की ओर से बिल्लियों को दूध पिलाने कि लिए 1 रूपये जारी किए जाते थे। बाद में 1 रूपये से बढ़ाकर 5 रूपये कर दिया गया था। इतना ही नहीं बिल्लियों के रहने और उनकी सुरक्षा की पूरी व्यवस्था सरकार उठाती थी। दरअसल, सरकारी दफ्तरों में बिल्लियों को शिकायती आवेदनों, दस्तावेजों को चूहों से बचाने के लिए बिल्लियों को पाला जाता था। हालांकि 1981-82 से बिल्लियों को पालना बंद कर दिया गया था।
अब कीटनाशक करते है चूहों का काम तमाम
सेवा निवृत्ती एक अधिकारी के अनुसार बिल्लियों को पालने के लिए सरकार की ओर से राशि जारी की जाती थी। जारी राशि से बकायदा बिल्ली को दूध पिला कर दफ्तर में रखा जाता था। ताकि चूहों से फाइल को बचाया जा सके। लेकिन साल 1981- 82 में बिल्लियों को दफ्तरों में पालना बंद कर दिया गया था। अब सरकारी दफ्तरों के रिकॉर्ड रूमों में कीटनाशक या रासायनिक दवाओं का उपयोग करके चूहों से दस्तावेजों की सुरक्षा की जाती है। लेकिन एक ऐसा भी वक्ता था जब बिल्लियां सरकारी दफ्तारों के रिकॉर्ड रूमों की सुरक्षा में तैनात रहती थी।