(रिपोर्ट- अंकित श्रीवास्तव- गोरखपुर)
Gorakhpur Doctors Shortage: सरकारी अस्पताल असहाय और गरीब मरीजों के लिए किसी मंदिर से कम नहीं होता है। दूर-दराज से ज्यादातर गरीब मरीज अपना इलाज कराने सरकारी अस्पताल की ओर ही अपना रुख करते हैं। लेकिन गोरखपुर का जिला महिला अस्पताल बेहोशक डॉक्टर की कमी के चलते परेशानियों से जूझ रहा है।
बंसल न्यूज़ ने जब मरीजों की समस्याओं की पड़ताल की तो पता चला कि दिन में तो सिजेरियन प्रसव हो जा रहे हैं लेकिन रात के समय में बेहोशक की कोई ठोस व्यवस्था नहीं होने से मरीजों को या तो बीआरडी मेडिकल कॉलेज या फिर निजी अस्पतालों में जाकर प्रसव कराना पड़ रहा है।
रोज 10 से 12 मरीजों के सर्जरी की होती है जरूरत
गोरखपुर जिला महिला अस्पताल में रोज 300 से 400 की ओपीडी होती है जिसमें गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की संख्या ज्यादा होती है। अगर बात की जाए तो इनमें से 10 से 12 मरीजों को रोज सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है, यहां पर 10 डॉक्टर सर्जरी करने वाले तो मौजूद है पर बेहोशी (एनेस्थीसिया) के डॉक्टरों की यहां पर कमी है।
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जिला महिला अस्पताल में 6 फरवरी से एनेस्थीसिया के अपने कोई डॉक्टर नहीं
जिला महिला अस्पताल में दिसंबर में डॉक्टर एके सिंह यहाँ से सीएमओ बनकर गैर जनपद चले गए। वहीं दूसरी तरफ 6 फरवरी को मुनव्वर अंसारी भी जिला महिला अस्पताल से चले गए। उसके बाद से ही जिला महिला अस्पताल में बेहोशी का अपना कोई डॉक्टर नहीं है। ऐसे में समस्याओं को देखते हुए सीएमओ ने टीवी अस्पताल से डॉक्टर निखिल चौधरी को यहां अटैच कर दिया। जबकि दूसरी तरफ सेवानिवृत्त डॉ. संजय वर्मा को अतिरिक्त सेवाओं के लिए बुलाया गया है। यह दोनों बेहोशी के डॉक्टर 6 घंटे और तीन-तीन दिन अपनी ड्यूटी देते हैं। ऐसे में अगर कोई इमरजेंसी मरीज आ जाता है तो उसे मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया जाता है।
जिला महिला अस्पताल में बेहोशक के कुल पद है इतने
जिला महिला अस्पताल में बेहोशी के डॉक्टर के 5 पद हैं, अगर बात की जाए तो डीडब्ल्यूएच में 2 पोस्ट और एमसीएच में बेहोशक डॉक्टर के 3 पोस्ट है। जो की ये पद कुछ समय से खाली चल रहे हैं। जिला महिला अस्पताल 24 घंटे 7 दिन चलता है, इसमें मरीजो का आना-जाना लगा रहता है इस अस्पताल में रोज 10 से 12 सर्जरी के केस आते हैं जिनका दारो-मदार केवल 2 बेहोशी (एनेस्थीसिया) के डॉक्टरो के कंधे पर है, यह डॉक्टर भी हफ्ते में 3 दिन 1 डॉक्टर और 3 दिन दूसरे डॉक्टर 10 से 2 अपनी ड्यूटी करते हैं और फिर चले जाते हैं, अगर रात में या डॉक्टर के जाने के बाद अगर कोई सर्जरी का केस आता है, तो उस मरीज को रेफर कर दिया जाता है।
गोरखपुर जिला महिला अस्पताल को ANQAS समेत मिल चुके हैं कई अवार्ड
जिला महिला अस्पताल को ANQAS और लक्ष्य मुस्कान अवार्ड लगातार 3 साल से मिल रहा है वही कायाकल्प अवार्ड की बात करें तो वह भी 5 साल से मिल रहा है, जो अस्पताल प्रदेश में अच्छे होते हैं सरकार उन अस्पतालों को यह अवार्ड देती है।
गोरखपुर सीएमओ कुछ भी कहने से बचते रहे
जिला अस्पताल के सीएमओ डॉ. आशुतोष कुमार दुबे से बात की गई तो वह जिला महिला अस्पताल में बेहोशी (एनेस्थीसिया) के डॉक्टरों की खाली पड़े पदों के बारे में कुछ भी कहने से बचते रहे, हालांकि सूत्रों की माने तो जिला अस्पताल के सीएमओ आशुतोष दुबे ने इस पूरे मामले को पत्राचार के माध्यम से उच्च अधिकारियों के संज्ञान में डाल दिया है। सूत्रों यह भी बता रहे है कि पत्राचार के बाद बेहोशक डॉक्टर सदाम हुसैन की जिला महिला अस्पताल में नियुक्ति तो हो गई है पर अभी उन्होंने कार्यभार ग्रहण नही किया है।
उठ रहे हैं ये सवाल
सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर गर्भवती महिला को तत्काल रात में सर्जरी की आवश्यकता पड़ जाएगी तो बेहोशक डॉक्टर के बिना उसकी सर्जरी कैसे होगी? अगर सर्जरी के अभाव में उसे कुछ हो जाता है, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? यह कुछ सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब मिलना अभी बाकी है।