Golden blood: मानव शरीर के संचालन के लिए करीब पांच लिटर रक्त की आवश्यक्ता होती है। आमतौर पर तो हम सभी में A, B, AB, O+ और निगेटिव जैसे कई बल्ड ग्रुप्स के बारे में सुना होगा। लेकिन एक ब्लड ग्रुप ऐसा भी है जिसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते। हम बात कर रहे हैं ‘गोल्डन ब्लड’ (Golden blood) की । ये ब्लड ग्रुप काफी कम लोगों में पाया जाता है। आइए जानते हैं इस गोल्डन ब्लड के बारे में….
किसे कहते हैं गोल्डन ब्लड ग्रुप
गोल्डन ब्लड का असली नाम आरएच नल ब्लड (Rh Null Blood) है। इस ब्लड को काफी रेयर माना जाता है, इसलिए वैज्ञानिक इसे गोल्डन ब्लड कहते हैं। इस ब्लड ग्रुप को काफी बेशकीमती माना जाता है। क्योंकि इसे किसी भी ब्लड ग्रुप में चढ़ाया जा सकता है। आसानी से यह किसी भी ब्लड ग्रुप के साथ मैच हो जाता है। हालांकि, यह सिर्फ उन्हीं लोगों के शरीर में पाया जाता है, जिनका Rh फैक्टर null होता है, यानी Rh-null
Rh फैक्टर क्या है?
बता दें कि Rh Factor लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर पाया जाने वाला एक विशेष प्रोटीन है। अगर यह प्रोटीन RBC में मौजूद है तो बल्ड Rh+ Positive होता है। इसके उलट अगर प्रोटीन उपस्थित नहीं है तो बल्ड Rh- Negative होगा। इस प्रोटीन को RhD एंटीजन भी कहते हैं। लेकिन इस खास ब्लड ग्रुप वाले लोगों में Rh फैक्टर ना ही पॉजिटिव होता है और ना ही निगेटिव यानी वो Null होता है।
इसमें एंटीजन नहीं पाया जाता है
हालांकि, इस ब्लड ग्रुप के बारे में ज्यादा लोगों को जानकारी नहीं है। आमतौर पर बाकी ब्लड ग्रुप में एंटीजन पाया जाता है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि गोल्डन ब्लड ग्रुप में किसी भी तरह का एंटीजन नहीं पाया जाता है। जिन लोगों के शरीर में यह खून होता है, उन्हें एनीमिया की शिकायत हो सकती है। जैसे ही डॉक्टरों को पता चलता है कि वह व्यक्ति गोल्डन ब्लड ग्रुप का है तो उसे आयरन युक्त चीजों का अधिक से अधिक सेवन करने की सलाह दी जाती है। ताकि वो एनीमिया का शिकार न हो।
अबतक 43 लोगों में ही पाया गया है
जैसा कि मैंने आपको पहले ही बताया कि यह ब्लड काफी कम लोगों में ही पाया जाता है। बिगथिंक की एक रिसर्च के मुताबिक साल 2018 तक यह गोल्डन ब्लड दुनियाभर में केवल 43 लोगों में ही पाया गया था। इनमें- ब्राजील, कोलंबिया, जापान, आयरलैंड और अमेरिका के लोग शामिल हैं। गौरतलब है कि इन लोगों का खून तो किसी को भी चढ़ाया जा सकता है, लेकिन इनको अगर ब्लड की जरूरत होती है तो इन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि इन्हें किसी और ग्रुप का ब्लड नहीं चढ़ाया जा सकता।
इनके खून को किसी और को नहीं दिया जाता
इनका डोनर ढूंढना भी मश्किल है। इसलिए इस खून के साथ जीने वाले लोग समय-समय पर अपने खून का दान करते रहते हैं। ताकि वह ब्लड बैंक में जमा रहे। इस खून को किसी और को नहीं दिया जाता, जरूरत पड़ने पर उन्हें खूद ही यह खून दिया जाता है। ताकि उन्हें डोनर खोजने की जरूरत न पड़े। पहली बार इस ब्लड ग्रुप की पहचान साल 1961 में की गई थी। एक ऑस्ट्रेलियाई महिला में यह मिला था।