दरियादिली: बाघिन को पकड़ने में खर्च किए 50 लाख, 15 महीने बाद किया गया सफल रेस्क्यू

नई दिल्ली। कभी आपने सोचा है कि एक वन्य जीव को पकड़ने में सरकार कीतना खर्च कर सकती है। आप कहेंगे ज्यादा से ज्यादा लाख-दो लाख। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बाघिन को पकड़ने में 50 लाख रूपये से ज्यादा का खर्च किया है। दरअसल, यूपी के बरेली में बंद पड़ी एक रबर फैक्ट्री में पिछले 15 महीने से एक बाघिन ने ठिकाना बनाया हुआ था। जिसे आखिरकार वन्य विभाग की टीम ने एक साल से ज्यादा समय के बाद पकड़ लिया है।
CCTV से रखी जा रही थी निगरानी
इस बाघिन का नाम है ‘शर्मीली’। जिसे पकड़ने के लिए वन विभाग की टीम ने रबर फैक्टरी परिसर में छह सीसीटीवी कैमरे लगाए थे। ताकि बाघिन के मूवमेंट का पता चल सके। जब भी वन विभाग के टीम को शर्मीली CCTV में दिखाई देती थी, पूरी टीम उसे पकड़ने में लग जाती थी। हालांकि काफी कोशिशों के बाद भी टीम उन्हें पकड़ नहीं पा रही थी। ऐसे में दो सप्ताह पहले पीलीभीत टाइगर रिजर्व से तीन विशेषज्ञों को बाघिन को पकड़ने कि लिए बुलाया गया था।
15 महीने से टैंक में रह रही थी बाघिन
टीम ने बाघिन को पकड़ने के लिए रेस्क्यू प्लान जारी किया। कैमरों की मदद से पता चला कि बाघिन एक 12 फीट उंचे व 25 फीट लंबे टैंक में रह रही है। ऐसे में विशेषज्ञों ने टैंक के चारों तरफ जाल लगा दिए और टैंक के दरवाजे पर पिंजरा रख दिया। जैसे ही बाघिन मेन दरवाजे पर आई, उसे पिंजरे में बंद कर दिया गया। और इस तरीके से एक साल से भी ज्यादा समय के बाद शर्मीली का रेस्क्यू किया गया।
सुरक्षा का रखा जा रहा था ख्याल
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बाघिन के व्यवहार के कारण ही उसका नाम ‘शर्मीली’ रखा गया है। वो रबर फैक्ट्री से बाहर निकल ही नहीं रही थी। उसे पकड़ने के लिए एक साल से अधिक समय से प्रयास चल रहा था। साथ ही वो सुरक्षित रहे इसका भी ख्याल रखा जा रहा था। ऐसे में पिछले एक साल से उसे पकड़ने की कोशिश में पचास लाख रूपये से ऊपर का खर्च हो गया। बाघिन को अब पकड़ लिया गया है और उसे जल्द ही किशनपुर सेंचुरी में भेज दिया जाएगा।