Gadarmal Temple : विदिशा जिले में वैसे तो पुरातत्व विभाग का अकूत भंडार है। पूरे जिले में लगभग 100 पुरातत्व की स्मारक हैं जिनमें से एक ग्वालियर रियासत के ग्राम बडोह पठारी में केंद्र सरकार के अधीन गडरमल मंदिर है। जिसका इतिहास लगभग 1100 वर्ष पुराना है। इस मंदिर के निर्माण के बारे में ऐसी धारणा है कि इसका निर्माण गडरमल नामक एक गडरिया ने करवाया था। इसी कारण से इस मंदिर का नाम गडरमल पड़ा है। प्रतिहार कालीन स्थापत्य कला की यह अनुपम कृति होकर भगवान शिव को समर्पित है।
ढ़ह चुके कई मंदिर
मंदिर को 1923-24 में ग्वालियर ऑर्कियोलॉजिकी सर्वे ने अपने अधीन किया था, इसके बाद यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन आ गया। मंदिर का विशाल आकार और बनावट दूर से आकर्षित करती है। मंदिर के सामने ही खंबों पर टिका एक मंडप भी है। पिलरों पर कुछ हाथियों और देवी देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण दिखाई देती हैं। अवशेषों से यह साफ समझ आता है कि इस भव्य मंदिर के आसपास सात और मंदिर थे, जो अब पूरी तरह ढह चुके हैं। लेकिन मंदिर का शिखर, बनावट और विशालता अब भी लोगों को आकर्षित करती है।
ग्वालियर के तेली मंदिर से तुलना
9वीं सदी का यह मंदिर कालांतर में जैन मंदिर के रूप में परिवर्तित हुआ। यहां हिंदू एवं जैन देवी-देवताओं की दीवारो। पर तराश कर बनाई गई कलाकृतियां हैं। विद्वानों ने इस मंदिर की तुलना ग्वालियर किले में स्थित तेली मंदिर से की है। इस मंदिर का श्रेष्ठ भाग अलंकृत तोरण द्वार था, जिसका अधिकांश भाग अब नष्ट हो चुका है। गडरमल मंदिर प्रांगण में बनाया गया विश्राम गृह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया और जर्जर हालत में बना हुआ है, जिसका कोई उपयोग नहीं होता है। मंदिर का मुख्य द्वार तोरण द्वार के रूप में स्थित है, जिस पर दो शेर विद्यमान हुआ करते थे और इन दोनों शेरों के बारे में किवदंती है कि इन शेरों की नजर जहां पर है वहां पर काफी खजाना गड़ा हुआ है। मुख्य मार्ग से गडरमल मंदिर पहुंच मार्ग नहीं होने के कारण बारिश के मौसम में यहां पर पहुंचना काफी मुश्किल हो जाता है। गडरमल मंदिर के पास एक तालाब बना हुआ है जिसके कारण यहां का दृश्य काफी मनोहर लगता है। सरकार की उपेक्षा के कारण गडरमल मंदिर दिन प्रतिदिन जीर्ण शीर्ण होता जा रहा है।