स्वतंत्रता संग्राम: भारत को आज़ाद हुए 75 साल पूरे हो गए हैं। 15 अगस्त 1947 को हमें ब्रिटिश शासन के 200 सालों के राज से आज़ादी मिली थी। भारत के स्वाधीनता संग्राम का इतिहास अनेक नायकों और वीर योद्धाओं की कहानियों से भरा हुआ है, जिनकी वीरता, साहस, त्याग और बलिदान ने भारत को आज़ादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारियों और आंदोलनकारियों के साथ, कवियों और लेखकों ने भी अहम योगदान दिया। ये लेखक और कवि ही थे, जिनकी लिखी आजादी की कविताएं, जनता में देशभक्ति की लौ जलाने का ज़रिया बनीं।
देशभक्ति की भावना जगाने वाली कविताएं और साहित्य, ब्रिटिश हुकूमत के लिए खतरे की घंटी थी। उन्हें अंदेशा होने लगा था कि ऐसी कविताओं और गीतों का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। उन्हें डर था कि राष्ट्र प्रेम से भरी ऐसी रचनाएं लोगों को एकजुट कर उनके खिलाफ कर सकती हैं।
रवींद्रनाथ टैगोर, जोश मलिहाबादी, मुहम्मद इकबाल, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, मोहम्मद अली जौहर और काजी नजरूल इस्लाम जैसे कवियों और लेखकों की रचनाएं आज भी हमारे दिल में एक नया जोश भर देती हैं।
लेकिन ऐसे कई गुमनाम रचनाकार भी हैं, जिनके नाम इतिहास के पन्नों में तो दर्ज़ नहीं हैं, लेकिन उनकी रचना का एक-एक शब्द सीधा दिल तक पहुंचता है और शायद इसी वजह से अंग्रेज़ों ने अपने शासनकाल के दौरान इन कविताओं पर प्रतिबंध लगा दिया था।
तो चलिए जानें ऐसी ही कुछ कविताएं जिन पर लगाई गई थी पाबंदी-
देश भक्ति
ज़ुल्म ढावो तुम
यहां तुम्हारा गुज़र नहीं
हिम्मत करो हिम्मत करो
ये वो गीत हैं जिस पर अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगा दिया। कई कवियों की लिखी आजादी की कविताएं लोगों में जागरूकता फैलाने की एक कोशिश रहीं।
वे लोगों को ब्रिटिश सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचार और अन्याय के बारे में आगाह करते रहे। इसके साथ ही वे लोगों को अपने अधिकारों के बारे में भी जागरूक करते रहे।
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