पैसे नहीं दे पाने पर अस्पताल प्रबंधन ने शव को ही बना लिया बंदी, गरीब किसान ने खड़ी फसल बेचकर मुक्त कराया शव

पैसे नहीं दे पाने पर अस्पताल प्रबंधन ने शव को ही बना लिया बंदी, गरीब किसान ने खड़ी फसल बेचकर मुक्त कराया शव

अजय नामदेव, शहडोल। प्रदेश के शहडोल जिले के एक निजी अस्पताल में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है। जहां एक निजी अस्पताल संचालक को इलाज के दौरान मरीज की मौत के बाद पैसा देने में देरी करने पर मरीज के शव को ही बंधक बना लिया। इससे मजबूर किसान ने अपनी खड़ी फसल बेचकर पत्नी के शव को अस्पताल से मुक्त कराना पड़ा। जबकि किसान के पास आयुष्मान कार्ड भी था। जिसके तहत निःशुल्क इलाज कराने का प्रवधान है। लेकिन अस्पताल में आयुष्मान योजना के तहत इलाज करने से अस्पताल प्रबंधक ने माना कर दिया। जिसकी शिकायत मरीज के परिजनों ने पुलिस से की। पुलिस ने अस्पताल प्रबंधक समेत 1 अन्य के खिलाफ 420 समेत अन्य धाराओं के तहत मामला कायम कर लिया है। मामला अनुपपूर जिले के जैतहरी का है। यहां के निवासी किसान संतोष राठौर की पत्नी पुष्पा राठौर को बीते 9 सितंबर के दिन जहरीले पदार्थ के सेवन से हालात ज्यादा बिगड़ने पर अनुपपूर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां हालत ज्यादा बिगड़ने पर 13 सितंबर को शहडोल जिले के देवन्ता अस्पताल में उपचार के लिये भर्ती कराया गया। उपचार के दौरान लागातार अस्पताल प्रबंधक द्वारा पैसों की मांग की जाती रही। पैसा देने के दौरान इलाज चलता रहा लेकिन 22 सितम्बर को हालात ज्यादा बिगड़ने पर डॉक्टर द्वारा 64 हजार रुपए की मांग की गई।

खड़ी फसल बेचकर मुक्त कराए शव

इस दौरान संतोष की पत्नी की मौत ही गई। पैसों की व्यवस्था नहीं होने पर पत्नी का शव देने से वेदांता अस्पताल द्वारा मना कर दिया गया। जिससे मजबूर होकर किसान ने खड़ी फसल बेचकर पत्नी का शव मुक्त कराया। अब मामले की शिकायत कोतवाली में की गई है। शिकायत के आधार पर पुलिस ने देवांता अस्पताल के डॉक्टर वीके त्रिपाठी व डॉ ब्रजेश पांडे के खिलाफ धारा 420, 384, 294 के तहत मामला कायम कर लिया है। बता दें कि प्रदेश सरकार आयुष्मान कार्ड धारियों को निर्धारित राशि के तहत निःशुल्क इलाज कराने का प्रावधान है। पुष्पा राठौर का आयुष्मान कार्ड धारी होने के बाबजूद वेदांता अस्पताल द्वारा निःशुल्क इलाज कराने से मना कर दिया। जिससे विवस होकर किसान को खड़ी फसल बेचकर इलाज कराया और शव को अस्पताल प्रबंधन से मुक्त कराया।

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