हाइलाइट्स
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प्रदेश में 11.58 लाख हेक्टेयर पर मूंग की खेती
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32 जिलों में होती है ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल
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24 जून से एमपी में शुरु हुई मूंग की सरकारी खरीदी
Moong Procurement in MP: मध्य प्रदेश में सरकारी मूंग खरीदी शुरु हो गई है। खरीदी के साथ ही किसान संगठन उपार्जन के लिए बनाये नियमों का विरोध कर रहे हैं।
दरअसल इस बार मूंग खरीदी में कई तरह की लिमिटेशन है। जिसकी वजह से मूंग उत्पादक किसानों को थोड़ा बहुत नहीं बल्कि 810 करोड़ तक का नुकसान होने वाला है।
आइये आपको सिलसिलेवार समझाते हैं…क्यों किसान मूंग खरीदी नियमों का लगातार विरोध कर रहा है।
उत्पादन से आधा खरीद रही सरकार
प्रदेश में मूंग का उत्पादन 14 से 18 क्विंटल है, यानी औसतन एक हेक्टेयर में 15 क्विंटल मूंग हुआ है।
वहीं सरकार किसानों से सिर्फ 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही मूंग खरीदेगी।
वहीं एक खाते पर 100 क्विंटल से ज्यादा खरीदी नहीं होगी। यानी इससे ज्यादा मूंग होने पर किसान को उसे मंडी में बेचना होगा।
मंडी में MSP से 1 हजार रुपये कम रेट
मंडी में मूंग के रेट न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP से करीब 1 हजार से 1500 रुपये कम है।
ऐसे में किसान अपनी आधी मूंग यदि व्यापारी को बेचता है तो उसे तगड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा।
यही कारण है कि किसान इस नियम का विरोध कर रहा है। बता दें मूंग का समर्थन मूल्य 8558 प्रति क्विंटल है।
810 करोड़ नुकसान का ये है गणित
प्रदेश में मूंग का रकबा करीब 11.58 लाख हेक्टेयर है। 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन के हिसाब से कुल उत्पादन 1 करोड़, 73 लाख 70 हजार क्विंटल होगा।
सरकार सिर्फ 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मूंग खरीदेगी। यानी कुल उत्पादन में से 92.64 लाख क्विंटल मूंग ही खरीदी। 81.06 लाख क्विंटल मूंग किसान को मंडी में बेचना पड़ेगा।
MSP और मंडी रेट में 1 हजार रुपये प्रति क्विंटल का अंतर है। इस हिसाब से किसानों को 810 करोड़ से अधिक का नुकसान होगा।
किसान संगठनों ने बनाई आंदोलन की रणनीति
किसान को हो रहे आर्थिक नुकसान के कारण मूंग उत्पादक जिलों में किसान संगठन आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं।
एक नियम की वजह से मध्य प्रदेश के हजारों किसानों को मूंग में बड़ा नुकसान हो रहा है। क्या है वो नियम…जाननें लिए पढ़ें खबर#farmers #Mungbean #MPNews @CMMadhyaPradesh @Aidalsinghkbjp @minmpkrishi @ChouhanShivraj @UmangSinghar @jitupatwari @kisanektamorcha
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किसान नेताओं का कहना है कि जब पिछले साल 15 क्विंटल तक मूंग खरीदी गई तो इस बार इसे कम कर क्यों 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर किया गया। इसे वापस 15 क्विंटल किया जाना चाहिए।
मूंग की खेती इसलिए महत्वपूर्ण
गर्मियों की मूंग किसान के लिए अतिरिक्त आय बढ़ाने का माध्यम है। किसान रबी और खरीफ फसल की लगाता था। गर्मी के दो-तीन महीने खेत खाली रहते थे।
गर्मी में नहरों से सिंचाई के लिए पानी मिलने से मूंग का उत्पादन बढ़ाना शुरू किया। इसे तीसरी फसल भी कहा जाता है।
किसानों का मानना है कि रबी और खरीफ की किसी एक फसल में नुकसान होता है, तो मूंग की फसल से उसकी भरपाई हो जाती है।
सरकार के प्रोत्साहन से ही बढ़ा रकबा
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब और हरियाणा सबसे ज्यादा ग्रीष्मकालीन मूंग उत्पादक राज्य हैं।
देशभर में मध्यप्रदेश में नर्मदापुरम जिले में सबसे ज्यादा मूंग पैदा की जाती है। तत्कालीन शिवराज सरकार ने मूंग उत्पादन को प्रोत्साहित किया।
नतीजा, पिछले चार साल में मूंग का रकबा 50 फीसदी बढ़ गया।
इस मामले में कृषि विभाग और सरकार का पक्ष जानने के लिए कृषि मंत्री और आयुक्त से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो सका।
आयुक्त कृषि एम. सेलवेन्द्रन को मैसेज भी किया, लेकिन खबर लिखे जाने तक कोई रिप्लाई नहीं आया।
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सरकार की मरहम लगाने की कोशिश
किसानों के लगातार हो रहे विरोध के बाद केंद्र सरकार ने ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की खरीद के लिए प्रति किसान एक दिन में एक खाते से 25 क्विंटल से लिमिट बढ़ाकर 40 क्विंटल कर दिया है।
इसके आदेश 9 जुलाई को केंद्र सरकार की ओर से जारी किए गए। दरअसल एक दिन में एक खाते से कम मूंग की खरीदी होने पर किसान को दोबारा मंडी आना पड़ रहा था।
इससे ट्रांसपोर्ट चार्ज बढ़ जा रहा था। इस आदेश के जरिए किसानों को थोड़ा ही सही लेकिन राहत का मरहम लगाने की कोशिश की गई है।
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इन जिलों में हो रही मूंग की खरीदी
मूंग की सरकारी खरीद नर्मदापुरम, नरसिंहपुर, रायसेन, हरदा, सीहोर, जबलपुर, देवास, सागर, गुना, खंडवा, खरगोन, कटनी, दमोह, विदिशा, बड़वानी, मुरैना, बैतूल, श्योपुरकला, भिंड, भोपाल, सिवनी, छिंदवाड़ा, बुरहानपुर, छतरपुर, उमरिया, धार, राजगढ़, मंडला, शिवपुरी, अशोकनगर, इंदौर और बालाघाट जिले में हो रही है।