नई दिल्ली। अक्टूबर महीने की शुरुआत में एक बड़ी घटना हुई। 1 अक्टूबर को चीन ने अपना राष्ट्रीय दिवस मनाया और करीब 100 जहाज ताइवान की सीमा के ऊपर से उड़ा दिए। ताइवान ने इसका कड़े शब्दों में विरोध जताया। जल्दी ही यह खबर वैश्विक पटल पर छा गई।
ताइवान के राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने फॉरेन अफेयर्स पत्रिका में अपनी बात रखते हुए चीन के इस कदम की निंदा की। उन्होंने चीन को चेतावनी देते हुए कहा कि चीन अगर ताइवान पर नियंत्रण करने की मंशा रखता है तो परिणाम काफी बुरे हो सकते हैं। वेन के इस बयान के बाद पूरी दुनिया की नजर एक बार फिर चीन और ताइवान के ऊपर टिक गई है। ऐसे में यह जानने की कोशिश करते हैं कि दोनों देशों के बीच विवाद की असली वजह क्या है और दोनों देशों के बीच अमेरिका क्यों चर्चा में बना हुआ है।
क्या है ताइवान का इतिहास?
दोनों देशों के बीच विवाद को समझने से पहले हम जानने की कोशिश करते हैं कि ताइवान का इतिहास क्या है। दरअसल ताइवान पहले फोरमोसा के नाम से जाना जाता था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब जापान ने चीन के हाथों ताइवान को सौंपने का विचार किया, लेकिन साल 1949 में जब च्यांग और उनकी पार्टी- कुओमिन्तांग ने माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों के हाथों हार का सामना करना पड़ा तो शेक चीन के पास के ही देश ताइवान भाग गए। ताइवान चीन सागर में आने वाले एक आएयरलेंड है। यह यह ईस्ट चाइना सी में स्थित है। जब चीन पर जापान ने हमला किया था तो सबसे पहले ताइवान पर विजय पाई थी। इसके बाद चीन की तरफ आक्रमण बढ़ाया था।
ताइवान और चीन के बीच विवाद की वजह
ताइवान दक्षिण चीन सागर में एक महत्वपूर्ण देश माना जाता है। इसकी सीमा ताइवान के उत्तर में फिलीपींस की सीमा लगती है। दक्षिण में साउथ कोरिया की सीमा है। साथ ही उत्तर-पश्चिम में जापान की सीमाएं हैं। ईस्ट एशिया में सीमाओं की दृष्टि से ताइवान एक महत्वपूर्ण देश है। 1949 के बाद कई सालों तक दोनों देशों के बीच काफी कड़वे संबंध रहे। 1980 के दशक के बाद दोनों देशों के संबंधों में सुधार की झलक दिखी। इसी समय चीन ने ताइवान के सामने ‘वन कंट्री टू सिस्टम’ का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव के तहत चीन ने कहा कि अगर ताइवान चीन को हिस्सा मान लेता है तो उसे स्वायत्ता प्रदान कर दी जाएगी। हालांकि इस प्रस्ताव को ताइवान ने मानने से इंकार कर दिया। इसके बाद साल 2000 में ताइवान में चेन श्वाय बियान नए राष्ट्रपति के तौर पर चुने गए। बियान ने ताइवान के स्वतंत्र होने का समर्थन किया। इसी बात को लेकर चीन ताइवान से खफा है। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच संबंध बिगड़े हुए हैं।
अमेरिका का भी है कनेक्शन
दरअसल ताइवान का अमेरिका सबसे अच्छा दोस्त माना जाता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से ही चीन और ताइवान के अच्छे संबंध रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के कार्यकाल में कार्यकाल में अमेरिका ने साल 1979 में चीन से रिश्ते बेहतर करने के लिए ताइवान से राजनायिक संबंध तोड़ लिए। साथ ही ‘ताइवान रिलेशन एक्ट’ भी अमेरिकी संसद में पास किया। इसके एक्ट के तहत यह निर्णय लिया गया कि अमेरिका, ताइवान को सैन्य हथियार प्रोवाइड कराएगा। साथ ही अगर कोई देश ताइवान की तरफ कड़ा रुख अपनाएगा तो अमेरिका इस मुद्दे को गंभीरता से लेगा। इसके बाद से अमेरिका दोनों देशों के बीच संतुलित संबंध रखने के प्रयास करता रहा।
अमेरिका के ताइवान से कैसे रिश्ते?
साल 1996 में चीन ने ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव कराने में अड़चन डालने की कोशिश भी की। साथ ही अपनी मिसाइलों का परीक्षण भी किया। इसके जवाब में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने ताइवान का समर्थन किया और बड़े पैमाने पर अमरीकी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया। अमेरिका के इस कदम से यह जताने की कोशिश की कि ताइवान के सुरक्षा के मामले में अमेरिका किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा। इसके बाद से ही चीन और ताइवान के बीच लगातार संबंध खराब चल रहे हैं। चीन ताइवान को वन नेशन पॉलिसी के तहत चीन का हिस्सा मानता है, वहीं ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश बताता है।