भोपाल। कोरोना आने के बाद इस दुनिया की शक्ल पहले जैसी नहीं रही। हमारी संस्कृति से लेकर कई अहम चीजों को कोरोना ने पूरी तरह से बदल दिया है। कोरोना से पहले हर साल सावन आते ही पूरे देश में कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) का मौसम बना रहता था। करीब सवा करोड़ शिव भक्त नंगे पैर सैकड़ों किमी की यात्रा (pilgrimage ) करते थे। हालांकि कोरोना के आने के बाद पिछले साल कांवड़ यात्रा नहीं हो पाई थी। वहीं अब कोरोना का कहर थमने के बाद एक बार फिर कांवड की सुगवुगाहट शुरू हो गई है। उप्र सरकार ने इस साल कांवड़ यात्रा को अनुमति दे दी है। वहीं उत्तराखंड सरकार (Uttarakhand govt) ने कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को अनुमति नहीं दी है। हर साल (Kanwar Yatra for 2021) सावन के माह में शुरू होने वाली यह कांवड़ यात्रा वास्तव में क्या है और इसका क्या महत्व है। यह यात्रा कब और कैसे शुरू हुई थी। इन सब सलावों के जवाब आपको इस खबर में मिलने वाले हैं।
क्या होती है कांवड़ यात्रा?
दरअसल हिंदू पंचांग के अनुसार यह पवित्र धार्मिक यात्रा (religious practice) सावन के महीने में शुरू होती है। ग्रागेरियन कलेंडर के अनुसार जुलाई में यह यात्रा शुरू की जाती है। इस साल यह यात्रा 22 जुलाई से प्रस्तावित है। इस कांवड़ यात्रा में पूरे देश से करीब हर साल सवा करोड़ लोग भाग लेते हैं। इस यात्रा का संबंध शिव और पानी की पूजा से है। दरअसल पूरे देश के शिव भक्त सावन (Shravan) माह शुरू होते ही अपने घरों से निकलकर हरिद्वार, गोमुख और गंगोत्री पहुंचते हैं। श्रद्धालु ( devotees) पूरी यात्रा पैदल करते हैं।
इतना ही नहीं कई शिव भक्त तो इस दौरान नंगे पैर यात्रा करते हैं। अपने कंधों पर टंगी कांवड़ में भक्त हरिद्वार, गोमुख और गंगोत्री (Ganga) से गंगाजल भरते हैं। इसके बाद पूरे 13 दिनों तक नंगे पैर यात्रा करते हुए श्रावण माह की त्रयोदशी को निकटतम शिव मंदिरों में पहुंचते हैं। यहां गंगा के जल से शिव का अभिषेक किया जाता है। इस यात्रा में भक्त भगवान शिव और जल दोनों की पूजा की जाती है। दुनिया की बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक मानी जाने वाली कांवड़ यात्रा में जल और भगवान शिव की आराधना की जाती है। इस दौरान कांवड़ियों के साथ अन्य लोग भी इस यात्रा में भाग लेते हैं। कई लोग रास्ते में जा रहे कांवड़ियों को खाना-पीना और अन्य सुविधाएं देकर इस यात्रा में भागीदार बनते हैं और पुण्य कमाते हैं।
कब से शुरू हुई कांवड़ यात्रा?
कांवड़ यात्रा ( Kanwar Yatra) का जिक्र भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में भी देखने को मिलता है। इसकी कहानी त्रेतायुग से जुड़ी है। हजारों साल पहले त्रेतायुग में जब समुद्रमंथन (Samudramanthan) हुआ था तो उसमें जहर निकला था। इस जहर के निकलने के बाद पूरी दुनिया में त्राहिमाम मच गया था। धरती समेत स्वर्ग में भी उथल-पुथल मच गई थी। इसके बाद भगवान शंकर ने दुनिया को इस संकट से बचाने के लिए विष का प्याला पी लिया था। इस विष को शंकर ने अपने कंठ में उतार लिया था। जिसके बाद भगवान शिव के शरीर में नकारात्मक ऊर्जाएं उत्पन्न हो गईं थी। इन नकारात्मक ऊर्जाओं को खत्म करने के लिए उस समय के सबसे विद्वान और प्रकांड पंडित दशानन रानण ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की थी। रावण ने मां गंगा के जल को भरकर भगवान शिव का अभिषेक किया था।
इस अभिषेक के बाद शिव (Lord Shiva) के शरीर में उत्पन्न हुई नकारात्मक ऊर्जाओं (negative energy from the poison) को समाप्त किया गया था। इसके बाद से ही शिव की आराधना और गंगा के जल के महत्व की पूजा के लिए यह यात्रा आयोजित की जाती है। 19वीं सदी में अंग्रेजों और दुनिया के लेखकों ने अपनी किताबों में कांवड़ यात्रा का जिक्र जरूर किया है। लेकिन साल 1960 तक भारत में कांवड़ यात्रा का ज्यादा प्रचलन नहीं था। कुछ साधु और श्रृद्धालुओं के साथ धनी मारवाड़ी सेठ नंगे पैर चलकर हरिद्वार या बिहार में सुल्तानगंज तक जाते थे और वहां से गंगाजल (The holy water) लेकर लौटते थे, जिससे शिव का अभिषेक किया जाता था। हालांकि साल 1980 आते-आते भारत में कांवड़ यात्रा काफी प्रचलित हो गई। अब यह दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक है। हर साल पूरे देश से करीब सवा करोड़ भक्त इस कांवड़ यात्रा में भाग लेते हैं।
कोरोना का कांवड़ यात्रा पर क्या रहेगा असर?
पिछले साल कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के कारण कांवड़ यात्रा को रोक दिया गया था। इस साल 22 जुलाई से यह यात्रा शुरू की जानी है। उप्र सरकार ने इस साल कांवड़ यात्रा को अनुमति दे दी है। हालांकि उत्तराखंड सरकार ने इस साल कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी है। अभी तक अन्य राज्यों ने इसका फैसला नहीं लिया है। अब जल्द ही इस साल की कांवड़ यात्रा पर सरकार फैसला करेगी। हालांकि कई राज्यों में इसकी सुगबुगाहट देखने को मिल रही है। वहीं उप्र सरकार (UP Government) की अनुमति के बाद कांवड़िए तैयारी में जुट गए हैं। वहीं लगातार कोरोना की तीसरी लहर का संकट भी मंडरा रहा है। तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए फूंक-फूंक कर कदम रखे जा रहे हैं।