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EOS 8 Satellite Launch ISRO successfully launched SSLV D3 rocket from Satish Dhawan Space Center Sriharikota on 16 August Hindi News
EOS 8 Satellite Launch: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 16 अगस्त 2024 की सुबह 9 बजकर 17 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से SSLV-D3 रॉकेट की सफल लॉन्चिंग की गई। इस रॉकेट के अंदर नया अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट EOS-8 लॉन्च किया गया है।
https://twitter.com/isro/status/1824295769907818833
इसके साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने एक छोटा सैटेलाइट SR-0 DEMOSAT भी यात्री सैटेलाइक की तरह ही छोड़ा गया है। दोनों ही सैटेलाइट्स धरती से 475 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक गोलाकार ऑर्बिट में तैनात कर दिए गए हैं।
इसरो प्रमुख ने कहा, जहां चाहते थे वहीं पहुंचा
SSLV-D3 रॉकेट की सफल लॉन्चिंग के बाद इसरो प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ ने कहा कि हमारी लॉन्चिंग सही है। सैटेलाइट सही स्थान पर पहुंच गया है, अब हम यह कह सकते हैं कि एसएसएलवी की तीसरी डिमॉन्सट्रेशन उड़ान सफर रही है।
https://twitter.com/PTI_News/status/1824292938249060771
हम इस रॉरेट की सहायता से टेक्निकल जानकारी इडंस्ट्री के साथ साझा करेंगे। इसकी सहायता से अधिक मात्रा में रॉकेट्स का निर्माण हो सकता है। छोटे सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग अधिक हो सकती है।
क्या होता है SSLV-D3 रॉकेट?
पाठकों के मन में एक यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर SSLV-D3 रॉकेट क्या होता है और यह किस कार्य में आएगा, तो आपको बता दें कि SSLV यानी एक स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल होता है जबकि D3 का मतलब तीसरी डिमॉनस्ट्रेशन फ्लाइट होता है। बता दें कि इस रॉकेट का यूज मिनी, माइक्रो और नैनो सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग के लिए किया जाएगा।
https://TWITTER.com/BansalNewsMPCG/status/1824322750258749772
इसकी मदद से अर्थ की निचली कक्षा में 500 किलो तक के सैटेलाइट्स को 500 किलोमीटर नीचे या फिर 30 किलो के सैटेलाइट्स को सन सिंक्रोनस ऑर्बिट में आसानी से भेज सकते हैं। इस ऑर्बिट की ऊंचाई 500 किलोमीटर ऊपर होती है। जबकि इस लॉन्चिंग में यह 475 किलोमीट र की ऊंचाई पर जाएगा और फिर वहां पर जाकर यह सैटेलाइट को छोड़ देगा।
पृथ्वी को प्राकृतिक आपदाओं से बचाएगा सैटेलाइट
अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट यानी EOS-8 पर्यावरण की मॉनिटरिंग, आपदा प्रबंधन और तकनीकी डेमॉन्स्ट्रेशन का काम करेगा। इसके द्वारा भेजी जाने वाली तस्वीरों से आपदाओं की जानकारी मिलेगी। उदाहरण- जल में आग, ज्वालामुखीय गतिविधियां, GNSS-R के माध्यम से समुद्री सतह पर हवा का विश्लेषण किया जाएगा। मिट्टी की नमी और बाढ़ का पता किया जाएगा। जबकि SiC UV डोजीमीटर से अल्ट्रावायलेट रेडिएशन की जांच की जाएगी, जिससे गगनयान मिशन में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी।
ऊपर चक्कर लगाएगा EOS-8 सैटेलाइट
EOS-8 सैटेलाइट धरती से ऊपर निचली कक्षा में चक्कर लगाएगा। यानी किलोमीटर की ऊंचाई पर यह मौजूद होगा। यहीं से यह सैटेलाइट कई अन्य तकनीकी सहायता भी करेगा।
इसके भीतर कम्यूनिकेशन, बेसबैंड, स्टोरेज और पोजिशनिंग पैकेज मौजूद होता है। यानी एक ही यूनिट कई तरह के कार्य काफी आसानी से कर सकता है। जबकि इसमें 400 जीबी डेटा स्टोरेज की क्षमता होती है।
भारत को क्या होगा फायदा
इस मिशन की आयु एक साल की है। SSLV-D3 की इस लॉन्चिंग के बाद SSLV को पूरी तरह से ऑपरेशनल रॉरेट का दर्जा मिल जाएगा। इससे पहले इस रॉकेट के दो उड़ान हो चुकी हैं। पहली उड़ान SSLV-D1 ने 7 अगस्त 2022 को उड़ान भरी थी। जबकि दूसरी SSLV-D2 ने 10 फरवरी 2023 ने उड़ान भरी थी। इसमें तीन सैटेलाइट भेजे गए थे। EOS-07, Janus-1 और AzaadiSAT-2।
बता दें कि इंटरनेशनल लेवल पर छोटे सैटेलाइट्स काफी मात्रा में आ रहे हैं। जबकि धीरे-धीरे इसका बाजार भी काफी तेजी से बढ़ रहा है। इसलिए इसरो ने यह रॉकेट बनाया है। एक SSLV रॉकेट पर 30 करोड़ रुपए का खर्चा आया है। जबकि PSLV पर 130 से 200 करोड़ रुपए तक का खर्चा आता है।
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