हाइलाइट्स
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की सरकार को वॉर्निंग
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कोर्ट के आदेश का पालन करे सरकार
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कर्मचारियों के उच्च वेतनमान का मामला
कर्मचारी उच्च वेतनमान केस: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कर्मचारियों के उच्च वेतनमान से जुड़े मामले में दो टूक कहा कि न्याय पालिका से टकराव से बचने के लिए सरकार जल्द से जल्द गतिरोध दूर करे। हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए कि 31 जुलाई तक पूर्व आदेश के पालन संबंधी रिपोर्ट पेश करें या फिर बताएं क्यों न कड़ी कार्रवाई की जाए।
हाईकोर्ट ने सरकार को दी आखिरी मोहलत
चीफ सेक्रेटरी वीरा राणा ने वर्चुअली हाजिर होकर कोर्ट से कहा कि वर्तमान में विधानसभा का सत्र जारी है, इसलिए कुछ मोहलत दे दी जाए। सीएस के बयान को रिकॉर्ड पर लेकर एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की खंडपीठ ने सरकार को अंतिम मोहलत देते हुए 3 हफ्ते में आदेश पालन के निर्देश दिए। अवमानना मामले में गुरुवार को सुरक्षित रखा और फैसला शुक्रवार को आया।
‘सरकार 7 साल से चुप्पी साधे बैठी’
कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार इस मामले में पिछले सात साल से चुप्पी साधे बैठी है। आश्चर्य का विषय यह है कि चीफ जस्टिस की अनुशंसा के बावजूद सरकार टालमटोल कर रही है। कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि अब भी राज्य निर्णय लेने में और समय लगाएगी तो ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां न्याय पालिका और कार्य पालिका आमने-सामने होंगी, जो न्याय प्रशासन के हित में नहीं है।
सरकार ने 21 मई 2022 को पेश की थी रिपोर्ट
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के कर्मचारियों के उच्च वेतनमान से जुड़े मामले के लिए बनी विशेष कमेटी की रिपोर्ट 21 मई 2022 को सरकार ने सीलबंद लिफाफे में पेश की थी। इसके पहले कोर्ट के आदेशों के परिपालन का रास्ता निकालने एक कमेटी का गठन किया था। कमेटी में हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल, विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव, वित्त विभाग के प्रमुख सचिव और एडीशनल चीफ सेक्रेटरी शामिल थे।
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ये है मामला
गौरतलब है कि हाईकोर्टकर्मी किशन पिल्लई सहित 109 कर्मचारियों ने उच्च वेतनमान और भत्ते देने के लिए 2016 में याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि इस मामले में हाईकोर्ट ने 2017 में राज्य सरकार को आदेश जारी किए थे। पालन नहीं होने पर 2018 में अवमानना याचिका प्रस्तुत की गई। पूर्व में चीफ जस्टिस ने हाईकोर्ट कर्मचारियों के लिए उच्च वेतनमान की सिफारिश की थी।
सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कंपलायंस रिपोर्ट पेश कर बताया कि यदि अनुशंसा को मान लिया जाएगा तो सचिवालय और अन्य विभागों में कार्यरत कर्मियों से भेदभाव होगा। वे भी उच्च वेतनमान की मांग करेंगे। इसलिए कैबिनेट ने अनुशंसा को अस्वीकर कर दिया है।