Electoral Bond Case: इलेक्टोरल बॉन्ड यानी चुनावी चंदे के मुद्दे पर भारतीय स्टेट बैंक को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान एसबीआई को गुरुवार 21 मार्च तक चुनावी चंदे से जुड़ी हर जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया है।
‘SBI को सबकुछ उजागर करना होगा’: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने इस मुद्दे पर एसबीआई को दो टूक शब्दों में कहा है कि इस मुद्दे पर कुछ भी छुपाया नहीं जाना चाहिए। इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी हर जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए।
कोर्ट ने इसके लिए एसबीआई मैनेजमेंट को वर्क कायदा हलफनामा भी दाखिल करने को कहा है कोर्ट ने कहा है की चुनाव आयोग के पास एसबीआई से जैसे ही जानकारी आती है वह सब उसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड करनी होगी।
#WATCH वकील प्रशांत भूषण ने कहा, "… SBI ने कहा कि हमारे पास सभी ज़रूरी नंबर और बॉन्ड से जुड़ी जानकारी है, हम वे डेटा आपको दे सकते हैं लेकिन हमने इस विषय में ग़लत समझ लिया था, हमें लगा की बॉन्ड के नंबर साझा नहीं करने हैं… इसपर कोर्ट ने कहा कि, हमने आपको कहा था कि आपके पास जो… https://t.co/0Cw7vngviP pic.twitter.com/hJgStCkMXX
— ANI_HindiNews (@AHindinews) March 18, 2024
बैंक ने पूरी जानकारी क्यों नहीं दी:सुप्रीम कोर्ट
सोमवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ ने स्टेट बैंक प्रबंधन से पूछा की आपने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी क्यों नहीं दी।
जबकि कोर्ट के फैसले में स्पष्ट कहा गया था कि इससे इस मुद्दे से जुड़ी पूरी जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए इसमें कुछ भी सिलेक्टिव नहीं होना चाहिए कि आप यह जानकारी देंगे और यह जानकारी नहीं देंगे
हमने पूरी जानकारी के लिए समय मांगा था – एसबीआई
कोर्ट में स्टेट बैंक के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि हमने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी साझा करने के लिए वक्त मांगा था।
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने तो पिछली सुनवाई में एसबीआई को नोटिस जारी कर पूरी जानकारी देने को कहा था।
लेकिन स्टेट बैंक ने उपलब्ध कराई जानकारी में बंद नंबरों का खुलासा नहीं किया हम चाहते हैं कि बैंक पूरे आदेश का पालन करें इलेक्टोरल बॉन्ड के सभी यूनिक नंबर यानि अल्फा न्यूमैरिक नंबर चुनाव आयोग को मुखिया कराए जाएं हम फिर से यह स्पष्ट कर रहे हैं
इलेक्टोरल बॉन्ड की दूसरी लिस्ट जारी
चुनावी बॉन्ड पर नई जानकारी साझा की है। सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से डिजिटल रूप में प्राप्त डेटा को फिर चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।
जिस पर उन्होनें कहा कि “राजनीतिक दलों द्वारा जो डेटा आया उसे सीलबंद लिफाफे में खोले बिना सुप्रीम कोर्ट में जमा किया गया था।’
इलेक्टोरल बॉन्ड की जो दूसरी लिस्ट जारी की गई है. इस लिस्ट में वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान पॉलिटिकल पार्टियों को मिले पैसे की जानकारी दी गई है।
चुनाव आयोग ने डेटा की लिस्ट की जारी
निर्वाचन योग द्वारा जारी की गई लिस्ट में पॉलिटिकल पार्टियों के नाम के साथ उन्हें मिलने वाली फंडिंग की जानकारी दी गई है।
इस लिस्ट में बीजेपी, तृणमूल कांग्रेस (TMC), कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति (BRS), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), सपा (Samajwadi Party),अकाली दल, AIADMK,बीजू जनता दल, युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी और तेलुगु देशम पार्टी (TDP) शामिल हैं.
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम क्या है (Electoral Bond Scheme)
चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है।
इसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।
विवादों में क्यों आई चुनावी बॉन्ड स्कीम ( Electoral Bond Controversy)
2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे पॉलिटिकल पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी।
ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।
बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।
बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया।
इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
चुनावी बॉन्ड खरीदने वाली प्रमुख कंपनियां
चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़ों पर नजर डालें तो पॉलिटिकल पार्टियों को मदद के नाम पर सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड जिन कंपनियों ने खरीदे हैं।
उनमें ग्रासिम इंडस्ट्रीज, मेघा इंजीनियरिंग, पीरामल एंटरप्राइजेज, टोरेंट पावर, भारती एयरटेल, डीएलएफ कमर्शियल डेवलपर्स व वेदांता लिमिटेड, अपोलो टायर्स, लक्ष्मी मित्तल, एडलवाइस, पीवीआर, केवेंटर, सुला वाइन, वेलस्पन, सन फार्मा जैसी कंपनियों के नाम शामिल हैं।
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