Effects of Green Crackers: दिल्ली और मुंबई में बढ़ता प्रदूषण चिंता बढ़ा रहा है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में ही नहीं, पूरे देश में पटाखे प्रतिबंधित रहेंगे. इससे पहले 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बेरियम वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था. 2019 में कोर्ट ने सिर्फ ग्रीन पटाखों को जलाने की बात कही थी. ऐसे में सवाल है कि ग्रीन पटाखे आखिर कितने ग्रीन है, क्या ये प्रदूषण नहीं फैलाते.
ग्रीन पटाखों को 2018 में नेशनल एंवॉयर्नमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने तैयार किया. यह काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च का हिस्सा है.
कितने इकोफ्रेंडली हैं ग्रीन पटाखे?
इन्हें इकोफ्रेंडली पटाखे भी कहा जाता है, इसकी भी एक वजह है. दरअसल ये सामान्य पटाखे के मुकाबले कम आवाज करते हैं. कम वायु प्रदूषण फैलाते हैं. नतीजा ये पर्यावरण को उतना नुकसान नहीं पहुंचाते. ऐसा होता क्यों है अब इसे समझ लेते हैं.
3 तरह के होते हैं ग्रीन पटाखे
ग्रीन पटाखों को 3 कैटेगरी में तैयार किया गया है. इन्हें SWAS, SAFAL और STAR कहते हैं. तीनों में फर्क क्या है अब इसे भी समझते हैं.
SWAS: इसका पूरा नाम हे सेफर वाटर रिलीजर. इसमें सल्फर और पोटेशियम नाइट्रेट नहीं होता. जब यह फटता है तो पानी के बारीक कण रिलीज करता है.
STAR: इसे सेफ थर्माइट क्रैकर कहते हैं. इसमें पोट्रेशियम नाइट्रेट और सल्फर नहीं होता. यह धीमी आवाज करता है और हवा में बहुत ज्यादा कम PM पार्टिकल छोड़ता है.
SAFAL: इसे सेफ मिनिमम एल्युमिनियम कहते हैं. इसे तैयार करने के लिए एल्युमिनियम की जगह मैग्नीशियम का इस्तेमाल किया गया है.
कैसे इको-फ्रेंडली होते हैं ग्रीन पटाखे?
आम पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखा से पीएम लेवल 30 फीसदी कम रहता है. एक फुलझड़ी जलने से पीएम 2.5 की मात्रा 5000 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर बढ़ती है. जबकि ग्रीन पटाखे का इस्तेमाल करते हैं, इसमें 30 फीसदी तक की कमी आ जाती है. इस तरह ये पटाखें वायु प्रदूषण और शोर को कम करने में मदद करते हैं.
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