Paryushan Parv Fasting Importance: पर्युषण पर्व दिगंबर जैन धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है। यह आत्मशुद्धि, तपस्या और आत्मनिरीक्षण का पर्व है, जो हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। पर्युषण के दौरान जैन अनुयायी उपवास, प्रार्थना, और ध्यान के माध्यम से आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं।
इस पर्व का मुख्य उद्देश्य अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और क्षमा के सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारना है। दिगंबर जैन पर्युषण के 10 दिनों को “दशलक्षण पर्व” के रूप में मनाते हैं, जिसमें दस धर्मों (उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, आदि) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
यह पर्व आत्मिक उन्नति, समर्पण और समग्र जीवन में शांति और संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
पर्युषण के दौरान होने वाले नियम
पर्युषण पर्व के दौरान जैन अनुयायी आत्मशुद्धि और तपस्या के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार के अन्न और जल का त्याग करते हैं। इसमें उपवास और संयम का पालन विशेष रूप से किया जाता है। त्याग के कई स्तर होते हैं, जिनमें कुछ प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं.
पर्युषण का निर्जल उपवास
दिगंबर जैन धर्म में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण और कठिन तपस्या मानी जाती है। पर्युषण के दौरान जैन अनुयायी आत्मशुद्धि, संयम और तपस्या के मार्ग पर चलकर मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। निर्जल उपवास का अर्थ है बिना पानी पिए उपवास रखना, जो इस पर्व की कठोर तपस्या में से एक है।
एकासन
एक प्रकार का साधना और तपस्या है जो दिगंबर जैन धर्म में विशेष महत्व रखता है, विशेष रूप से पर्युषण पर्व के दौरान। “एकासन” का मतलब होता है “एक ही आसन” पर बैठना या केवल एक आसन पर भोजन करना।
इस साधना के दौरान, अनुयायी एक विशेष आसन पर बैठकर भोजन करते हैं, जिससे उनका ध्यान भटकता नहीं है और आत्मा की शुद्धि और आत्म-नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित होता है।
वियासन
पर्युषण पर्व के दौरान एक महत्वपूर्ण तपस्या है, जिसमें अनुयायी विशेष समय पर भोजन करने का व्रत रखते हैं। इस व्रत के अंतर्गत, व्यक्ति केवल एक समय पर भोजन करता है और किसी भी प्रकार का स्नैक या अतिरिक्त भोजन नहीं करता है। वियासन का मुख्य उद्देश्य आत्म-नियंत्रण, संयम और धार्मिक अनुशासन को बढ़ावा देना है।
पर्युषण में व्रत से शरीर को लाभ
आज के समय में, पर्युषण के दौरान युवा लोग अक्सर “अन्न जल छोड़ने” जैसे व्रत और तपस्या को अपना रहें हैं। यह एक प्रकार की उपवास की प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अन्न और पानी दोनों का सेवन नहीं करता। इस प्रथा के पीछे धार्मिक और आध्यात्मिक कारणों के साथ-साथ इसके वैज्ञानिक लाभ भी हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, अन्न जल छोड़ने के निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:
डिटॉक्सिफिकेशन : उपवास के दौरान शरीर को आराम मिलता है और यह विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने की प्रक्रिया में मदद करता है। जब शरीर अन्न और जल के बिना होता है, तो वह खुद को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
मेटाबोलिज़्म को सुधारना: उपवास से शरीर का मेटाबोलिज़्म बेहतर हो सकता है। यह शरीर को ऊर्जा का इस्तेमाल करने के तरीके को बदल देता है और इसमें वसा के जलने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है।
पाचन तंत्र को आराम देना: अन्न जल छोड़ने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और इसके कार्यकुशलता में सुधार होता है। यह पाचन संबंधी समस्याओं को कम करने में मदद कर सकता है।
मानसिक स्पष्टता और आत्म-नियंत्रण: उपवास मानसिक स्पष्टता और आत्म-नियंत्रण को बढ़ावा देता है। यह मस्तिष्क को सक्रिय करता है और मानसिक शांति प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।
ऊर्जा स्तर में सुधार: उपवास के दौरान शरीर की ऊर्जा का उपयोग आंतरिक तंत्रों को सुधारने में किया जाता है, जिससे लंबे समय में ऊर्जा स्तर में सुधार हो सकता है।
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