रायपुर से गौरव शुक्ला की रिपोर्ट।
रायपुर। Kankali Mata Mandir: आमतौर पर मंदिरों में रोज पूजा-अर्चना और आरती होती है। शास्त्रोक्त मान्यता भी है कि मंदिरों में प्रतिदिन पूजा होनी चाहिए।
लेकिन प्रदेश की राजधानी रायपुर में आदिशक्ति के एक रूप ‘कंकाली माता’ का एक ऐसा मंदिर है, जो साल में केवल एक दिन के लिए खुलता है और यहां केवल एक दिन ही देवी की पूजा होती है।
आईए जानते हैं इस अनोखे मंदिर की अनूठी परंपरा, जो सदियों से बदस्तूर चली आ रही है।
कंकाली मठ नाम से प्रसिद्ध है मंदिर
रायपुर का यह मंदिर कंकाली मठ नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर में वर्ष में एकबार पूजा होने की रीति यहां प्राचीन काल से है।
वर्तमान मंदिर लगभग चार सौ वर्षों से भी ज्यादा प्राचीन है। इस मंदिर की खासियत है कि यहां वर्ष में केवल एक दिन ही पूजा होती है।
केवल विजयादशमी को खुलते हैं मंदिर के पट
इस मंदिर का पट केवल एक दिन दुर्गा पूजा के दसवें दिन यानी विजयादशमी को खुलता है। तब विधि-विधान से शस्त्र-पूजन के साथ कंकाली माता की पूजा होती है।
कहते हैं कि विजयदशमी के दिन शस्त्रों की पूजा करने के बाद कंकाली माता स्वयं प्रकट होती है और लोगों की मनोकामना को पूर्ण करती हैं।
नागा साधुओं से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
मंदिर के जानकार बताते हैं कि वर्षों पहले इस मंदिर की देखरेख का जिम्मा नागा साधुओं के पास हुआ करता था। लेकिन 1980 में नागा साधुओं ने इस मंदिर को मंहत शंकर गिरी के हवाले कर दी।
यहां इतिहास को जानने कहते हैं कि इसके बाद कंकाली मठ के महंत शंकर गिरी ने इसी मंदिर के प्रांगण में जीवित समाधि ले ली थी।
केवल यही नहीं, उनके अलावा इस मंदिर प्रागंण में मठ की देखरेख करने वाले छह अन्य लोगों की भी समाधि है।
ग्यारह पीढ़ियों से देखरेख कर रहा है गिरी परिवार
पिछले ग्यारह पीढ़ियों से इस मंदिर की देखरेख का जिम्मा गिरी परिवार के पास है। उनका कहना है कि मठ का दरवाजा यदि साल और किसी दिन खोला जाएगा तो माता नाराज हो जाऐंगी।
इसलिए वर्षों पुरानी इस परंपरा का निर्वहन करने में वे कोई कोताही नहीं बरतते हैं।
पूर्व महंत को हुआ था माता का स्वप्न-दर्शन
मंदिर के कुछ भक्त बताते हैं कि मंदिर के पूर्व महंत को माता ने स्वप्न में साक्षात दर्शन दिया था।
स्वप्न-दर्शन में माता ने मंदिर निर्माण स्थल के रुप में कंकाली तालाब का निर्माण करने कर मंदिर स्थापित करने को कहा था।
सदियों से अक्षुण्ण है यह नियम
प्राचीन काल से चली आ रही इस मान्यता का पालन करते हुए गिरी परिवार को सदियों बीत गए हैं। और पंरपराएं आज भी वैसी ही चली आ रही हैं। वे केवल एक दिन के लिए देवी माता की पूजा विजयादशमी को करते चले आ रहे हैं।
वैसे भी आस्था और धार्मिक रिवाज और परंपराओं में नियम का विशेष महत्व होता है। ये अनूठे और अक्षुण्ण नियम और रूढियां ही उसे ख़ास बनाती हैं। और, ये परंपराएं ही वो आकर्षण हैं, जो लोगों को बरबस यहां खींच कर ले आती हैं।
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