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मध्यप्रदेश को वो काला दिन, दिग्विजय सिंह ने 24 साल बादी मांगी थी माफी

मध्यप्रदेश को वो काला दिन, दिग्विजय सिंह ने 24 साल बादी मांगी थी माफी Digvijay apologizes after 24 years for 24 deaths in Multai shootout vkj

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deepak
मध्यप्रदेश को वो काला दिन, दिग्विजय सिंह ने 24 साल बादी मांगी थी माफी

Multai Bullet Case : मध्य प्रदेश की राजनीति के लिए एक ऐसा भी दिन आया था जिसे काला दिन माना जाता है। हम बात कर रहे है। बैतूल के मुलताई कांड की, जब किसानों पर कहर बनकर बरसे थे पुलिस वाले। किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन पर पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग की थी जिसमें 24 किसानों की मौत हो गई थी। किसानों की मौत ने पूरे देश को झकोर के रख दिया था, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अफसोस तक नहीं जताया, लेकिन 24 मौत पर 24 साल बाद उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी।

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1997 से शुरू हुआ था किसान आंदोलन

दरअसल, साल 1997 में प्रदेश के किसान परेशान थे। सोयाबीन और गेहूं की फसलें खराब हो चुकी थी। बची कुची फसले भी बर्वाद होने लगी। इतना ही नहीं सोयाबीन और गेहूं की फसल बीते 4 सालों से खराब हो रही थी। किसान कर्ज के जाल में फंसते ही जा रहे थें, जिसके चलते किसानों ने जब सरकार से मदद की गुहार लगाई तो दिग्गी सरकार ने उनकी एक ना सुनी। और आखिरकर किसानों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया। किसानों ने 25 दिसंबर 1997 को एक समिति बनाई और सरकार से 5 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजे की मांग की।

75 हजार किसान ने निकाली रैली

किसानों ने एक समिति का गठन किया और 09 जनवरी, 1998 को एक भव्य और विशाल रैली निकाली। किसानों की इस रैली में करीब 75 हजार किसानों ने हिस्सा लिया। जब रैली का सरकार पर असर नहीं पड़ तो किसानों ने 11 जनवरी को बंद आयोजित किया। बंद को भी ऐतिहासिक सफलता मिली। इसके बाद सराकर की आंखे खुली। लेकिन किसानों के हित में नहीं बल्कि आंदोलन को खत्म करने के लिए। अगले दिन सरकार ऐक्शन में आ गई। आंदोलन के नेताओं में शामिल रहे डॉ सुनीलम सोनेगांव से मुलताई की ओर बढ़े तो हजारों किसान उनके साथ हो लिए। जैसे ही किसान मुलताई के गुड़ बाजार पहुंचे तो वहां भागमभाग का माहौल था। महिलाएं, पुरुष यहां-वहां भाग रहे थे। उनमें से कईयों से तो खून निकल रहा था। लोगों ने सुनीलम को बताया कि तहसील पर पुलिस की फायरिंग शुरू हो गई है।

अस्पताल में भी गोलियां बरसा रहे थे पुलिसकर्मी

तहसील पर पुलिसवाले अंधाधुंध फायरिंग कर रहे थे। इतना ही नहीं, वे किसानों पर पत्थर भी फेंक रहे थे। माहौल देखकर लग रहा था कि पुलिस-प्रशासन ने पूरी तैयारी के साथ आंदोलन पर हमला बोला था। सुनीलम और आंदोलन के दूसरे नेता पुलिस से फायरिंग रोकने की गुहार लगा रहे थे, लेकिन इसका कोई असर नहीं हो रहा था। किसान लगातार घायल होकर अस्पताल पहुंच रहे थे। अस्पताल के सभी वॉर्ड में घायल किसानों की कराहें सुनाई पड़ रही थीं। हालत यह थी कि पुलिसवाले अस्पताल पर भी गोलियां बरसा रहे थे।

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सुनीलम की पुलिस ने की पिटाई

पुलिस का अत्याचार यही खत्म नही हुआ। शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया, पुलिस आंदोलन के नेताओं को उठाने में जुट गई। सुनीलम किसानों के साथ अस्पताल में थे। रात में ही कलेक्टर और एसपी सुनीलम को अस्पताल से जेल ले गए और उनकी पिटाई की और बेहोशी की हालत में उन्हें बंदूक के साथ झाड़ियों में फेंक दिया गया। बताया जाता है कि पुलिस उनका एनकाउंटर करना चाहती थी, लेकिन पुलिसवालों की आपसी लड़ाई के चलते उनकी जान बच गई थी।

24 किसानों की हो गई मौत

इस पूरे वाकये में 24 किसानों की मौत हो गई। बताया जाता है कि पुलिस ने 150 राउंड से ज्यादा फायरिंग की थी। इस घटना को कई बार एमपी के जालियांवाला कांड के रूप में याद किया जाता है। कई घर उजड़ गए। पुलिस ने सैकड़ों किसानों पर केस दर्ज किया गया। सुनीलम के खिलाफ सरकार ने 60 से ज्यादा मुकदमे दर्ज किए। उन्हें हथकड़ी से बांधकर कोर्ट में पेश किया गया। जज ने सबसे पहले उनकी हथकड़ियां खुलवाईं। चार महीने जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत मिली थी।

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