dhuniwale dadaji: महान संत धूनीवाले दादाजी का आज निर्वाण दिवस है। देश और दुनिया के कई लोग उनमें अपनी आस्था रखते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी उन्हें याद करते हुए नमन किया। मध्य प्रदेश के लोग उन्हें शिर्डी के साईं बाबा की तरह पूजते हैं। उनका समाधि स्थल खंडवा शहर में है।
उनका असली नाम
उनका असली नाम स्वामी केशवानंदजी महाराज था। लेकिन लोग उन्हें भक्ति से धूनीवाले दादाजी बुलाते थे। इसके पीछे कारण यह था कि वे प्रतिदिन पवित्र अग्नि (धूनी) के सामने बैठकर ध्यान लगाते थे। इस कारण से ही लोग उन्हें धूनीवाले दादाजी के नाम से स्मरण करने लगे। लोग उन्हें शिव का अवतार मानकर पूजते हैं। कहा जाता है कि उनके दरबार में जो भी जाता है बिन मांगी दुआएं भी पूरी हो जाती हैं।
मुख्य दरबार खंडवा में है
वैसे तो उनका दरबार देश में कई जगहों पर है। लेकिन मुख्य दरबार उनके समाधि स्थल पर बनाया गया है। दादाजी के नाम पर देश-विदेश में 35-40 धाम मौजूद हैं। कहा जाता है कि इन स्थानों पर दादाजी के समय से अब तक निरंतर धूनी जल रही है। लेकिन दादाजी ने खंडवा शहर में समाधि ली थी। ऐसे में यही पर उनका मुख्य दरबार बनाया गया है। खंडवा को ‘दादाजी की नगरी’ भी कहते हैं।
उनका जन्म
दादाजी का जन्म मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक छोटे से गांव साईं खेड़ा में हुआ था। स्थानीय लोग कहते हैं कि वे पेड़ से प्रकट हुए थे। साईं खेड़ा में उन्होंने कई चमत्कार किए। वर्षों तक वहां चमत्कार दिखाने के बाद वे सन 1930 में खंडवा आ गए। उन्होंने यहां कई चमत्कार दिखाए और अंत में यहीं पर समाधि भी ले ली। मान्यताओं के अनुसार उन्होंने सबसे पहले साईं खेड़ा में धुनि प्रज्वलित की थी उसके बाद जब वे खंडवा आए तो उनहोंने यहां भी अनपे हाथों से धुनी माई को प्रज्वलित किया।
चमत्कार से सोने में बदल जाता था चना
स्थानीय लोगों के अनुसार वे इस धुनी माई में चने डालते थे और उनके चमत्कार से वो सोने-चांदी में बदल जाता था। आज खंडवा में उनका विश्व प्रसिद्ध दरबार है जो करीब 14 एकड़ में फैला हुआ है। इस दरबार को उनके शिष्य हरिहरानंद जी ने बनवाया था। जिन्हें लोग छोटे दादाजी के नाम से भी जानते हैं। मान्यताओं के अनुसार छोटे दादाजी राजस्थान के रहने वाले थे।
उनके प्रिय शिष्य
उनका प्रारंभिक नाम भंवरलाल था। एक बार भंवरलाल दादाजी से मिलने खंडवा आए। मिलने के बाद भंवरलाल दादाजी से इतने आकर्षित हुए कि उन्होंने उसी समय अपना सारा जीवन उनके चरणों में समर्पित कर दिया। वे धूनीवाले दादाजी के सेवा में लग गए। एक दिन उनकी सेवा से प्रसन्न होकर बड़े दादाजी ने उन्हें अपना परम प्रिय शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया और उनका नाम बदलकर ‘हरिहरानंद’ रख दिया। दादाजी की समाधि के बाद उन्हें उत्तराधिकारी बनाया गया और लोग उन्हें छोटे दादा जी के नाम से जानने लगे।
एक ही जगह पर है दोनों की समाधि
बड़े दादाजी के दरबार को उन्होंने ही बनवाया था और खुद ही संचालित करते थे। हालांकि उनके समाधि लेने के बाद अब इस जगह को ट्रस्ट के द्वारा चलाया जाता है। प्रत्येक वर्ष गुरू पूर्णिमा के दिन यहां लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं। बड़े और छोटे दादाजी की समाधि को आस पास में ही बनाया गया है। ताकि भक्त एक साथ दोनों के दर्शन कर सकें।
यहां कैसे पहुंच सकते हैं
आप यहां तीन तरीके से पहुंच सकते हैं। रेलमार्ग, खड़क मार्ग और वायुमार्ग। धूनीवाले दादाजी का मंदिर खंडवा रेलवे स्टेशन से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से आप ऑटोरिक्शा आदि से मंदिर तक जा सकते हैं।
सड़क मार्ग-
सड़क मार्ग की बात करें तो धूनीवाले दादाजी का मंदिर मध्य प्रदेश के दो बड़े शहर इंदौर से 135 किलोमीटर की दूर पर एवं भोपाल से 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जहां से आप सड़क मार्ग के जरिए आसानी से आ जा सकते हैं।
वायुमार्ग-
यदि आप यहां वायुमार्ग से जाना चाहते हैं तो आपको इंदौर एयरपोर्ट उतरना होगा। इसके बाद वहां से आप सड़क मार्ग के जरिए या रेलमार्ग के जरिए खंडवा पहुंच सकते हैं।