Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary: आज ‘राष्ट्रकवि’ पं. माखनलाल चतुर्वेदी और महात्मा गांधी ‘बापू’ की पुण्यतिथि है। ऐसे में हम आपके लिये लेकर आए हैं ‘राष्ट्रकवि’ और ‘बापू’ से जुड़े अनसुने किस्से।
माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary) का जन्म होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम) जिले के बाबई (अब माखननगर) कस्बे में हुआ था। बापू और माखनलाल से जुड़ा एक रोचक किस्सा माखनलाल चतुर्वेदी की जन्मभूमि से ही जुड़ा हुआ है।
बापू बाबई इसलिए आना चाहते थे क्योंकि वह माखनलाल चतुर्वेदी की जन्मभूमि थी। वहीं उनका बाबई आने का विरोध भी किसी और ने नहीं बल्कि माखनलाल चतुर्वेदी ने ही किया। क्या है वो रोचक किस्सा, आइये आपको उसके बारे में बताते हैं।
जब बापू हरिजन दौरे पर निकले थे
यह बात 1933 की है। जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बापू देश में हरिजन दौरे पर निकले थे। इसी दौरे में वह मध्यप्रदेश भी आए। बैतूल से बापू इटारसी पहुंचे।
बैतूल से लौटने पर हरिजन दौरे में बाबई को भी शामिल करने का विचार बापू के सामने आया। बाबई के लोगों को लगा कि यह तो माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary) की जन्मभूमि है। इसलिए बापू यहां तो आएंगे ही।
माखनलाल ने बाबई वालों को कर दिया नाराज
बाबई वालों को किसी और ने नहीं बल्कि माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary) ने ही निराश कर दिया। बापू के साथ रहने वालों में से एक पं. माखनलाल चतुर्वेदी समेत पंडित रविशंकर शुक्ल, डॉ चंद्रशेखर ने बाबई वालों को निराश किया और कह दिया कि बापू बाबई नहीं जाएंगे।
इटारसी पहुंचकर महात्मा गांधी मिश्रालाल दीपचंद की धर्मशाला में ठहरे। यहां बापू और माखनदादा के बीच हुए संवाद का जिक्र माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली में पढ़ने को मिलता है।
बाबई नहीं जाने देने का ये बताया कारण
इटारसी में अगले दिन जब बापू सुबह उठे तो उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary) से ही पूछा- बाबई यहां से कितनी दूर है। चतुर्वेदी जी ने कहा- करीब 14 से दस मील होगा।
बापू ने बड़े प्यार से उनसे पूछा- तुम मेरे बाबई जाने का विरोध क्यों करते हो। इस पर माखनलाल चतुर्वेदी ने बड़े ही सहज भाव से उत्तर दिया।
उन्होंने कहा कि यहां से होशंगाबाद पहुंचने के बाद वहां से कुछ मील जाकर तवा नदी पड़ती है, उसका पुल नहीं बना है, नदी को पैदल ही पार करना होता है, कभी घुटने भर और कभी कमर भर पानी वहां रहता है, वहां पर बारिश के मौसम के बाद हर साल पुल बनता है, लेकिन अभी बनकर तैयार नहीं हुआ होगा।
तवा नदी से लौटने के बाद माखनलाल ने कही ये बात
इसके बाद बापू ने माखनलाल चतुर्वेदी जी को कहा कि आप जाइए और देख कर आइए की पुल बना है या नहीं। जिसके बाद माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary) मोटर लेकर तवा नदी के पास पहुंच गए।
उन्होंने वहां देखा कि पुल बन रहा था, जो हालत थी उसके बाद उस पर चलकर जाना संभव नहीं था। जिसके बाद माखनलाल जी ने लौटकर बापू से कह दिया कि तवा पुल अभी बना नहीं है, आप बाबई नहीं जा सकते।
भले ही माखनलाल चतुर्वेदी के तर्क संगत पूर्ण हो लेकिन अपनी जन्मभूमि होने के बाद भी उनके कारण बाबई में बापू के नहीं आने पर स्थानीय लोगों को हमेशा निराशा ही लगी।
लोगों का मानना था कि बाबई माखनलाल की जन्मभूमि है इसलिए कम से कम उन्हें तो बापू के बाबई जाने की पैरवी करना चाहिए, लेकिन दुख इस बात का है कि बापू को बाबई ले जाने के बजाय उन्होंने तवा का पुल न बनने की उन्हें रिपोर्ट दी।
बापू ने जब सोहागपुर से होते हुए बाबई का बनाया प्लान
खैर बापू इटारसी से बीना होते हुए सागर चले गए और वहां से जबलपुर। इधर माखनलाल चतुर्वेदी खंडवा वापस लौट आए। करीब चार-पांच दिन बाद बापू ने फिर यह कार्यक्रम बनाया कि वह सोहागपुर से बाबई जाएंगे, क्योंकि इस रास्ते में तवा नदी और उसके पुल जैसी कोई अड़चन नहीं थी।
जानकारी मिलने पर ट्रेन से माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary) भी खंडवा से गाडरवारा पहुंच गए। गाडरवारा से मेल ट्रेन से माखनलाल चतुर्वेदी बापू के साथ लौटकर सोहागपुर आ गए।
माखनलाल के विरोध की थी ये असल वजह
श्रीकांत जोशी की पुस्तक में इस बात का विस्तृत उल्लेख भी मिलता है। इस पुस्तक के अनुसार माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary) बापू को बाबई लेकर जाने से अत्यंत दुखी थे और उनका मानना था कि बाबई ले जाकर बापू के साथ अन्याय किया जा रहा है। इसके पीछे माखनलाल चतुर्वेदी तीन कारणों को मानते थे। पहला बाबई से हरिजन कार्य में कोई बड़ी सहायता की आशा नहीं थी।
दूसरा कारण बाबई जैसे छोटे स्थानों से बापू को देशभर में नहीं ले जाया जा सकता था, बाबई जैसे छोटे स्थानों को छोड़कर ही बापू का दौरा साधा जा सकता था और तीसरा कारण बाबई में हरिजनों की ऐसी कोई संपूर्ण देश का ध्यान खींचने वाली उलझी हुई समस्या नहीं थी। इसलिए बापू का वहां जाना अनिवार्य नहीं था।
बापू को बाबई लाने धरना तक दिया
बापू के इटारसी से बाबई आने का दौरा जब रद्द हुआ तो इस बस्ती की कई लोगों की भावनाएं बेहद आहत हुई। सारी रूपरेखा फिर से बनाई गई।
जिसमें यह तय हुआ कि बापू लौटते समय सोहागपुर से होते हुए बाबई आएंगे, लेकिन जब यह आभास हुआ कि माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary) बापू के दौरे को फिर निरस्त करवा सकते हैं तो उससे बाबई के प्यारेलाल गुरु (स्वतंत्रता संग्राम सैनानी) बागरा रोड के शुरुआत में ही स्थित एक पीपल के पेड़ के नीचे अनशन पर बैठ गए।
जब उन्हें इस बात की जानकारी लगी कि बापू इस बार हर हाल में बाबई आएंगे, तब उन्होंने अपना अनशन तोड़ा। बाबई बस्ती में आज भी वह पीपल का पेड़ मौजूद है।
बापू हुए बाबई के लिए रवाना
इधर सोहागपुर पर उतरकर ठहरने के स्थान पर थोड़ा रुकने के बाद बापू ने सोहागपुर की सार्वजनिक सभा में भाषण दिया और रात को बाबई के लिए रवाना हुए। उस समय मोटर में बापू के साथ माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary) भी बैठे थे।
माखनलाल चतुर्वेदी का सोचना था कि बाबई ले जाकर लोग बापू का निरर्थक कष्ट दे रहे हैं। हालांकि जब बाबई के स्कूल के पास मोटर ने बस्ती में प्रवेश किया तो बापू ऐसे जाग गए मानो वह मोटर में सोए ही नहीं थे।
जब वहां की सभा में बापू ने भाषण दिया तब तो मानो सब अचंभित रह गए। रात में 9.30 बजे सरदार बुद्ध सिंह की मोटर में महात्मा जी सोहागपुर वापस लौट आए।
बाबई में बापू द्वारा दिए गए भाषण का अंश
भाइयों और बहनों…मैं तारीख 30 को जब इटारसी आया तब लोगों ने मुझसे नदी के बारे में कहा कि रास्ता खराब है। खराब रास्ता सुनकर मेरा शरीर कमजोर होने से बाबई आने का प्रोग्राम बदल दिया।
बदल तो दिया मगर मेरा मन यहीं लगा हुआ था। मुझे इरादा बदलने की दिलगिरी थी। बाबई माखनलाल (Makhanlal Chaturvedi Death Anniversary) की जन्मभूमि होते हुए भी उन्होंने मेरे शरीर की हालत देखकर मुझे रोका, किंतु उनकी जन्मभूमि और आप सब लोगों के स्थान को देखने का मेरा मन तो बाबई में लगा था। मुझे डॉक्टर ने मना किया, दोस्तों ने भी समझाया परंतु उनका कहना ना मानते हुए भी मैं यहां आया।
बापू के दौरे के बाद समाचार पत्रों में छपे भाषण के अंश
बाबई में बापू ने अपने भाषण में कहा कि यह बात तो आप जान ले कि मैं यहां पैसे लेने नहीं आया, मैं तो आप भाइयों के प्रेम के कारण आया। पैसा तो मैं देशभर में से थोड़ा-थोड़ा इकट्ठा कर ही लूंगा।
भाई प्यारेलाल गुरु ने आग्रह किया कि मुझे बाबई आना चाहिए। हरिजन का काम करने वाले भाई जान लें कि कष्टों में भी हमें तो शांति, अहिंसा और नम्रता का ही पालन करना है।
आपने अपने मानपत्र में मंदिर ना खुलने पर दुख प्रकट किया, परंतु मुझे खेद नहीं है। मंदिर तो समय आने पर खुल जाएंगे, किंतु अभी तो हमें लोगों में से छुआछूत को मिटाना है।
मैं तो मानता हूं कि यदि हिंदुओं में से छुआछूत का कलंक दूर ना होगा तो हमारा नाश हो जाएगा, अगर हरिजन मंदिर में नहीं आते तो याद रखो कि उस मंदिर में भगवान का वास नहीं है।