राजस्थान में बसपा के 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय पर न्यायालय सात जनवरी को करेगा सुनवाई

नयी दिल्ली, चार जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय राजस्थान में बसपा के छह विधायकों के कांग्रेस में विलय के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ बसपा और भाजपा के विधायक मदन दिलावर की अपीलों पर सात जनवरी को सुनवाई करेगा। उच्च न्यायालय ने इस आदेश में विधान सभा अध्यक्ष से कहा था कि सत्तारूढ़ कांग्रेस मे बसपा के छह विधायकों के ‘विलय’ के खिलाफ दायर अयोग्यता की याचिका पर तीन महीने के भीतर निर्णय किया जाये।
न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने इन अपील को आगे सुनवाई के लिये बृहस्पतिवार को सूचीबद्ध किया है।
उच्च न्यायालय ने 24 अगस्त को राजस्थान विधान सभा के अध्यक्ष से कहा था कि बसपा के छह विधायकों के कांग्रेस में विलय के खिलाफ दिलावर की अयोग्यता याचिका पर तीन महीने के भीतर निर्णय किया जाये।
उच्च न्यायालय ने दिलावर की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुये 22 जुलाई को उनकी अयोग्यता याचिका अस्वीकार करने का अध्यक्ष का पिछले साल मार्च का आदेश निरस्त कर दिया था।
उच्च न्यायालय ने इस मामले में बसपा की याचिका खारिज करते हुये उसे अध्यक्ष के यहां अयोग्यता याचिका दायर करने की छूट प्रदान की थी।
दिलावर ने बसपा के विधायकों के विलय को चुनौती देते हुये उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि विधान सभा अध्यक्ष के आदेश के अमल पर रोक लगाई जाये।
इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने विधान सभा अध्यक्ष के आदेश पर रोक लगाने के लिये दिलावर की याचिका को निरर्थक बताते हुये उसका निस्तारण कर दिया था क्योंकि उच्च न्यायालय ने इसी मुद्दे पर अपना आदेश पारित कर दिया था।
राजस्थान विधान सभा के लिये 2018 में हुये चुनाव में ये छह विधायक बसपा के टिकट पर जीते थे लेकिन बाद में सितंबर, 2019 में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये थे। इन विधायकों में संदीप यादव, वाजिब अली, दीपचंद खेरिया, लखन मीना, जोगेन्द्र अवाना और राजेन्द्र गुधा शामिल हैं।
इन विधायकों ने 16 सितंबर, 2019 को कांग्रेस में विलय का आवेदन किया था और अध्यक्ष ने 18 सितंबर, 2019 को इस संबंध में आदेश दे दिये थे।
दिलावर ने इसे चुनौती देते हुये कहा था कि अध्यक्ष ने इन छह विधायकों के कांग्रेस में विलय को गलत अनुमति दी है।
राजस्थान की 200 सदस्यीय विधान सभा में सत्तारूढ़ कांग्रेस में बसपा के इन विधायकों के विलय से गहलोत सरकार की स्थिति मजबूत हो गयी थी और उसके सदस्यों की संख्या 100 से ज्यादा हो गयी थी।
भाषा अनूप अनूप प्रशांत
प्रशांत