नयी दिल्ली, छह जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दो नाबालिग बच्चों सहित चार व्यक्तियों की हत्या के मामले में मौत की सजा पाने वाले व्यक्ति को बरी कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि इस नाबालिग की गवाही पर विश्वास करना सुरक्षित नहीं है क्योंकि घटना के समय वह सिर्फ पांच साल का था।
न्यायमूर्ति उदय यू ललित, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने रिकार्ड से कुछ विसंगतियों का जिक्र किया और कहा कि नाबालिग बच्चा, जोकि एक पीड़ित का पुत्र है, की गवाही पर भरोसा करना मुश्किल है और उसके बयान के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस आरोपी को 2008 की इस घटना के सिलसिले में मौत की सजा सुनाई गयी थी।
पीठ ने इसके साथ ही इस मामले में उम्र कैद की सजा भुगत रहे दो अन्य आरोपियों को भी संदेह का लाभ देते हुये बरी कर दिया। इन सभी को निचली अदालत ने दोषी ठहराते हुये सजा सुनाई थी जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था।
पीठ ने इन तीनों आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 396 के तहत डकैती और हत्या करने के अपराध में दोषी ठहराने के अदालत के आदेशों को निरस्त कर दिया।
निचली अदालत ने इस मामले में जुलाई 2015 में हरी ओम को मौत की सजा और दो अन्य आरोपियों को उम्र कैद की सुनाई थी जिसकी पुष्टि उच्च न्यायालय ने मार्च 2017 में कर दी थी। लेकिन उसने निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराये गये तीन अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था।
भाषा अनूप
अनूप पवनेश
पवनेश