Bio CNG Plant : देश के सबसे स्वच्छ शहर का खिताब लगातार जीतने वाला इंदौर जल्द ही एक बड़ी उपलब्धी हासिल करने जा रहा है। इंदौर में देश का सबसे बड़ा बायो CNG प्लांट बन रहा है, जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 19 फरवरी को करने वाले है। इंदौर में बनाए जा रहे सीएनजी प्लान से इंदौर शहर की करबी 400 से अधिक बसों को चलाया जाएगा। तो आज हम आपकों बताने जा रहे है कि आखिर कैस बन रहा है यह प्लांट और इस प्लांट में कौन सी मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। आखिर कैसे बनती है बायो सीएनजी…
स्वच्छ्ता के क्षेत्र में देश का सिरमौर इंदौर अब पूरे देश के लिए उदाहरण बनेगा। प्रधानमंत्री श्री @narendramodi 19 फरवरी को इंदौर के गोबर-धन प्लांट का लोकार्पण करेंगे। इस अवसर पर @GovernorMP श्री मंगुभाई पटेल तथा केंद्रीय मंत्री श्री @HardeepSPuri भी शामिल होंगे।#GobarDhanInMP pic.twitter.com/TEYlplzfl2
— Chief Minister, MP (@CMMadhyaPradesh) February 18, 2022
इंदौर ने किया पीएम मोदी के सपने को साकार
मध्यप्रदेश के इंदौर ने पीएम मोदी के स्वच्छ भारत सपने को साकार किया है। इंदौर ने कचरे से ऊर्जा बनाने की सोच को बढ़ावा दिया है। इंदौर नगर निगम के एक अधिकारी के अनुसार शहर में प्रस्तावित बायो सीएनजी प्लांट की स्थापना के बाद नगर निगम को कोई वित्तीय भार वहन नहीं करना पड़ेगा। यह प्लांट आईआईएसएली कंपनी नई दिल्ली द्वारा बनाया जा रहा है। इस प्लांट में रोजाना 550 एमटी गीले कचरे से करीब 17500 किलेग्राम बायो सीएनजी और 100 टन आर्गेनिक कम्पोस्ट का उत्पादन किया जाएगा। खास बात यह है कि यह प्लांट जीरो इनर्ट मॉडल पर बनाया जा रहा है, जिससे किसी भी प्रकार का वेस्ट नहीं निकलेगा। प्लांट से बनाई जाने वाली सीएनजी में से 50 प्रतिशत गैस से नगर निगम की बसों को चलाया जाएगा। बाकी बची गैस उद्योग एवं वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को बेची जाएगी। नगम अधिकारी के अनुसार बायो सीएनजी प्लांट से रोजाना करबी 550 टन गीले कचरे का निपटान किया जाएगा। इसके अलावा प्लांट से कार्बन क्रेेडिट अर्जित कर करीब 8 करोड़ रूपये की राशि प्राप्त होगी।
गैस बनाने के लिए कचरे का इस्तेमाल कैसे होगा
बायो गौस बनाने से पहले जैविक कचरे को पृथकीकरण प्रक्रिया से गुजरना होता है। इसके लिए प्लांट में अत्याधुनिक मशीनों की जरूरत होती है। जैविक कचरे को एक गहरे बंकर से ग्रेब क्रेन की मदद से प्रसंस्करण उपकरण तक पहुंचाया जाता है। फिर जैविक कचरे में से अजैविक एवं फायबरस पदार्थों अलग-अलग किया जाता है, जो बड़े स्क्रीन द्वारा किया जाता है। इसके बाद 120 एमएम से कम गीले कचरे को सेपरेशन हैमर मिल में भेजा जाता हैं। सेपरेशन हैमर स्वचालित मशीन हैं जो गीले कचरे को फीड में बदल देता हैं। सेपरेशन हैमर मिल में अजैविक पदार्थों को स्वचालित पद्धति द्वारा अलग किया जाता है। इसके बाद हैमर मिल द्वारा तैयार मटेरियल को पूर्व अपघटन टैंकों में भेजा जाता है। जहां इसका करीब 2 दिनों तक अपघटन होता है।
बायो मिथेनेशन प्रक्रिया
जैविक कचरे को बगैर ऑक्सीजन में 25 दिनों तक गुजरना पड़ता है। जिसे बायो मिथेनेशन प्रक्रिया कहते है। इस प्रक्रिया में सूक्ष्म जीवों का काफी योगदान होता है। इस प्रक्रिया में सूक्ष्म जीव एक नियंत्रित तापमान पर जैविक अपघटन की प्रक्रिया को पूरा करते है। इस प्रक्रिया से उत्पादित होने वाली ऊर्जा बायो गैस का उत्पादन करती है। इस ऊर्जा को डायजेस्टर टैंकों में इकट्ठा किया जाता है, जहां से इसे पाइपलाइन द्वारा स्टोरेज गुब्बारों में एकत्रित किया जाता है। गुब्बारों में एकत्रित की गई बायो गैस में मीथेन गैस की 50 प्रतिशत से अधिक मात्रा होती है। इसके बाद गुब्बारों में एकत्रित गैस को उन्नयन प्लांट में भेजा जाता है, जहां पर इसका शुद्धिकरण किया जाता है। गैस शुद्धिकरण के बाद इस गैस को बायो सीएनजी कहा जाता है।