Women Day: भोपाल रियासत को स्वतंत्र भारत का अंग बनाने में भोपाल विलीनीकरण आंदोलन का योगदान रहा है।
इस आंदोलन के शहीदों पर तो कई बार विमर्श होता है। लेकिन आंदोलन में महिलाओं के योगदान पर चर्चा ही नहीं की जाती।
इसलिए इस (Women Day) महिला दिवस के अवसर पर जाने उन महिलाओं के बारे में जिनके योगदान से भोपाल बना था भारत का हिस्सा।
कहां से शुरू हुआ था आंदोलन
भोपाल विलीनीकरण आन्दोलन का केंद्र भले ही भोपाल रहा हो लेकिन इसकी चिंगारी रियासत के कोने कोने में फैली जिससे जन जागृति की ज्वाला पूरी रियासत में धधक गई।
यही कारण है कि भोपाल शहर की महिलाएं तो आंदोलन में प्रमुख रूप से सक्रिय रही हीं।
सियासत की तहसीलों और ग्रामीण स्तर पर भी महिलाओं की महत्वपूर्ण भागीदारी इस आंदोलन में रही।
आंदोलन में हुए महिलाओं पर अत्याचार
ये ऐसी देशभक्त महिलाए थीं जिनमें भोपाल को स्वतंत्र भारत के साथ मिलाने की उत्कंठा थी
नवाबी शासन विलीनीकरण आंदोलन को कुचलने कई तरह के हथकंडे अपना रहा था।
तिरंगा वंदन, सभाओं, दौरों, प्रदर्शनों पर प्रतिबंध, कर्फ्यू, लाठीचार्ज, गोली चालक, आंदोलनकारियों को जेलों में हंसना।
जेलें भर जाने पर आधी रात में ट्रकों में भर दूर जंगलों में छोड़ आना आदि तो चल ही रहे थे।
महिला आंदोलनकारियों पर कड़कड़ाती ठण्ड में फायर ब्रिगेड द्वारा बर्फ के ठंडे पानी की तेज बौछार के अलावा महिला पुलिस के नाम पर पेशेवर महिलाओं को पुलिस की ड्रेस पहना कर उतार दिया गया था।
ये थी भोपाल में विलीनीकरण आन्दोलन की विरंगनाए
भोपाल में विलीनीकरण आन्दोलन में शांति देवी जैन, कुमारी मोहिनी देवी श्रीवास्तव, बसंती देवी जैन,
कुमारी लीला राय, कुमारी रूकमणि राय, बंसी देवी जैन, कस्तूरी बाई जैन, कुसुम कुमारी जैन चंद्रावती जीजी, रामकली बाई, रामप्यारी बाई, नैना देवी के अतिरिक्त कुछ बालिकाओं के भी नाम सामने आते हैं।
‘नईराह’ की संपादक बनी आंदोलनकारी
मोहिनी देवी श्रीवास्तव के भाई श्री प्रेम श्रीवास्तव भी “नईराह” के संपादक मंडल में सह संपादक व प्रमुख आंदोलनकारी में से थे।
भोपाल की प्रथम महिला सामाजिक संस्था “महिला मंडल” की 1944 में स्थापना से ही वे उसमें सक्रिय रहीं।
रतन कुटी था आंदोलन का केन्द्र
रतन कुटी विलीनीकरण जहां आंदोलन का केंद्र था।
इसके बाद इसके सामने स्थित राय भवन सांस्कृतिक व राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहा।
यहीं एक बाल संस्था बाल समिति भी उक्त बहनों द्वारा संचालित की जाती थी।
भोपाल में अधिकांश पुरुष आंदोलनकारियों के गिरफ्तार व भूमिगत हो जाने के बाद महिला मंडल व बाल समिति की नियमित प्रभातफेरी,
धरने, प्रदर्शन, जुलूस व प्रार्थना सभाओं इत्यादि गतिविधियों द्वारा आंदोलन को सतत गतिमान रखा गया।
राय बहनों द्वारा तो चतुर नारायण मालवीय के प्रधानमंत्री निवास जूनागढ़ हाउस में भी विलीनीकरण आंदोलन में कई दिनों तक धरने भी दिए गये।
महिलाओं ने फूक दी जान
भोपाल जैसी मुस्लिम रियासत में जहां शासन तक पर्दे में रहने करने की परंपरा रही।
संभ्रांत परिवारों की महिलाओं ने परिवार के पुरुष सदस्यों के जेल व भूमिगत चले जाने के बाद आंदोलन की कमान संभाले रखी।
आंदोलन को किसी भी स्टेज में सुस्त नहीं पढ़ने दिया गतिमान रखा।
नाहर परिवार की बहू ने संभाली बागडोर
भोपाल रियासत की तहसील बरेली को भोपाल विलीनीकरण आंदोलन की बारडोली भी कहा जाता है।
क्योंकि भोपाल शहर आंदोलन के केंद्र होने के बावजूद निर्धारित तिथि जनवरी 1949 पूर्व ही आंदोलन के मुखपत्र नईराह में आंदोलन के आह्वान से प्रभावित हो बरेली में आंदोलन का शंखनाद दिसंबर 1948 में ही हो गया था।
वहां स्वर्गीय रतन लाल नाहर का पूरा परिवार ही आंदोलन में कूद पड़ा था।
जिसमें नाहर परिवार की बहू प्रेमकांत नाहर व उनकी सहयोगी कार्यकत्रियां सुशीला देवी सक्सेना चंद्रावती देवी भज्जू बाई इत्यादि ने भोपाल विलीनीकरण आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
भोपाल विलीनीकरण आन्दोलन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी दर्शाता बड़ी संख्या में ऐतिहासिक चित्र भी नई राह में प्रकाशित होते रहे।
लेकिन, भोपाल विलीनीकरण आंदोलन की महिला आंदोलनकारियों की छवि इन सबसे अलग वीरांगनाओं की है !
फिर भी रियासत भोपाल को स्वतंत्र भारत में मिलाने हेतु चले भोपाल विलीनीकरण आंदोलन में महिलाओं के योगदान को पूरी तरह नजरअंदाज किया जाता रहा है।
भोपाल बना भारत का हिस्सा
आखिर भोपाल की अलग हुकूमत खत्म हुई और इस प्रकार नारी – हठ विजयी हो कर रही।
यह एक बार फिर सिद्ध हो गया कि नारियां जिस काम की ठान लें, उसे करा के ही छोड़ती हैं।
लोग नारियों की बातें पुस्तकों में ही पढ़ा करते थे, विलीनीकरण आंदोलन में उन अक्षरों को मूर्तिमान रूप में देखा।