हाइलाइट्स
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आदिवासियों के बीच धर्मांतरण और राष्ट्रवाद हावी
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कांग्रेस का 8 में से 5 विधानसभा सीट पर कब्जा
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आदिवासी सीट, जाति समीकरण का असर नहीं
Kanker Lok Sabha Seat: छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में सबसे अहम सीट कांकेर भी है। यहां दूसरे चरण में 26 अप्रैल 2024 को मतदान होगा। यहां चुनाव मैदान में बीजेपी ने भोजराज नाग को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने बिरेश ठाकुर को टिकट दिया है।
अनुसूचित जनजाति की इस सीट पर आदिवासी समाज के बीच धर्म और वर्ग बड़ी चुनौती बना हुआ है। क्योंकि दोनों ही प्रत्याशी आदिवासी समुदाय से ही आते हैं। हालांकि यहां पर धर्म हावी है।
जहां बीजेपी इसको भुनाने की कोशिश में लगी हुई है। बीते कुछ सालों में भी आदिवासियों के बीच धर्मांतरण का मुद्दा गर्माया हुआ है।
कांकेर लोकसभा में 8 सीटें
कांकेर लोकसभा (Kanker Lok Sabha Seat) क्षेत्र में 8 विधानसभा सीटें आती हैं। इन आठ सीटों में से छह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।
इन विधानसभा सीटों में गुंडरदेही, संजारी बालोद, सिहावा (एसटी), डोंडी लोहारा (एसटी), अंतागढ़ (एसटी), भानुप्रतापपुर (एसटी), कांकेर (एसटी) और केशकाल (एसटी) हैं।
कांकेर जिला 1998 में अस्तित्व में आया
बता दें कि बस्तर जिले का हिस्सा कांकेर (Kanker Lok Sabha Seat) रहा है। इसके बाद यह जिला वर्ष-1998 में अस्तित्व में आया। वर्ष-1996 तक इस निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस का प्रभाव था।
इसके बाद जब कांकेर जिला 1998 में बना तो यहां बीजेपी प्रमुख पार्टी बनकर सामने आई।
बीजेपी का गढ़ बनी कांकेर सीट
आजादी के बाद से ही बस्तर और इसके बाद कांकेर सीट (Kanker Lok Sabha Seat) पर भी कांग्रेस का प्रभाव रहा है। जहां से कांग्रेस के अरविंद नेताम पांच बार सांसद रहे।
वे इंदिरा गांधी और नरसिम्हा राव सरकार में भी मंत्री रहे। उनके पिता विधायक थे। 1996 में उनकी पत्नी छबीला नेताम भी कांग्रेस से सांसद रहीं। इसके बाद वर्ष-1998 से यह लोकसभा सीट (Kanker Lok Sabha Seat) बीजेपी के कब्जे में आई।
बस यहीं से बीजेपी ने इसे अपना गढ़ बना लिया और छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से 2019 तक बीजेपी का कब्जा है। सभी लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की है।
कांग्रेस का पांच विधानसभा सीट पर कब्जा
कांकेर लोकसभा (Kanker Lok Sabha Seat) क्षेत्र में 8 विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें से पांच सीट पर कांग्रेस पार्टी का कब्जा है। इसके अलावा तीन सीट पर बीजेपी ने अपनी जीत दर्ज की है।
बता दें कि कांकेर सीट (Kanker Lok Sabha Seat) पर 11 लाख 60 हजार 243 मतदाता के लगभग हैं। इनमें से करीब 51 फीसदी आवादी आदिवासी है। जबकि 44 फीसदी ओबीसी वोटर हैं। इसके अलावा 5 फीसदी वोटर सामान्य वर्ग के हैं।
कांकेर जिला बनने के बाद का चुनावी इतिहास
1998 में कांकेर के बीजेपी प्रत्याशी सोहन पोटाई जीते।
1999 में बीजेपी के सोहन पोटाई फिर से सांसद बने।
2004 में बीजेपी के सोहन पोटाई को तीसरी बार चुना।
2009 में बीजेपी के सोहन पोटाई चौथी बार सांसद बने।
2014 में बीजेपी के विक्रम उसेंडी सांसद बने।
2019 में बीजेपी के मोहन मंडावी को जनता ने सांसद चुना।
धर्म के मुद्दे पर काम कर रही बीजेपी
छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बाद से कांकेर लोकसभा सीट (Kanker Lok Sabha Seat) पर बीजेपी प्रत्याशी ने ही जीत हासिल की है। इसका सबसे बड़ा कारण धर्म को माना जा रहा है।
वहीं धर्मांतरण का मुद्दा कांकेर (Kanker Lok Sabha Seat) और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कई साल पुराना है। यहां बीजेपी ने धर्मांतरण कर चुके लोगों को वापस हिंदू धर्म में लाने का प्रयास किया है।
इसके साथ ही अब डी-लिस्टिंग का मुद्दा यहां गरम है। इसी के साथ ही धर्म और नरेंद्र मोदी का फैक्टर यहां काम कर रहा है। हालांकि यहां पर कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशियों के बीच कड़ी टक्कर है।
धर्मांतरण और धर्म बीजेपी की ताकत
बीजेपी ने भोजराज नाग को कांकेर सीट से टिकट दिया है। वहीं कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में छह हजार मतों से पराजित होने वाले बिरेश ठाकुर पर दांव खेला है। झंडे बैनर से लेकर प्रचार के दूसरे संसाधनों तक में भोजराज एकतरफा तौर पर बढ़त बनाए दिखाई देते हैं। घर वापसी और धर्मांतरण जैसे मुद्दों को उठाने के कारण भोजराज की चर्चा है। लोगों के बीच उनकी पहचान भी गहरी है। इसी वजह से वह संघ और दूसरे हिंदू संगठनों में पैठ रखते हैं। क्षेत्र में धर्म और धर्मांतरण के मुद्दे से बीजेपी मजबूत स्थिति में है।
यहां कमजोर बीजेपी
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी कांकेर की 8 सीटों में से पांच सीटें हार गई। बीजेपी यहां से मात्र तीन ही सीटें जीत पाई हैं। ऐसे में अब बीजेपी के पास कांकेर लोकसभा क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ रखने के लिए अधिक मेहनत करना पड़ रही है। बीजेपी प्रत्याशी यहां मोदी की गारंटी और राष्ट्रवाद, राम मंदिर निर्माण के भरोसे ही है।
पांच सीटें जीतने से कांग्रेस मजबूत
कांकेर लोकसभा (Kanker Lok Sabha Seat) क्षेत्र में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने यहां पर 5 सीटों पर जीत हासिल की है। जबकि बीजेपी यहां मात्र तीन सीटों पर ही अपनी जीत दर्ज कर पाई है।
कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार के दौरान इस क्षेत्र में काफी काम किए हैं। जिसका फायदा उन्हें विधानसभा में मिला है। कांग्रेस इसे लोकसभा चुनाव में भी लेना चाहती है।
कांग्रेस की यहां कमजोरी
कांकेर लोकसभा सीट (Kanker Lok Sabha Seat) में प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के अलावा स्थानीय व छोटे दल के प्रत्याशी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
कांग्रेस का कोर वोटर जो पार्टी से नाराज हैं, वह इन स्थानीय दलों पर भरोसा जता सकता है। इसके अलावा प्रचार में भी बिरेश ठाकुर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे हैं।
आर्थिक रूप से कमजोर बिरेश ठाकुर की पहुंच बैनर, पोस्टर व अन्य माध्यम से लोगों तक नहीं हो पा रही है।