रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के पहाड़ी इलाकों में स्थित छोटे झरनों आदि की ‘जियो मैपिंग’ कराने का बृहस्पतिवार को अधिकारियों को निर्देश दिया जिससे इनके पानी की क्षमता को बढ़ाकर उसका समुचित उपयोग किया जा सके। मुख्यमंत्री ने यहां एक बैठक में इस आशय का निर्देश अधिकारियों को दिया।
उन्होंने जल संवर्धन योजना के तहत बनने वाले कुओं का भी ‘जियो मैपिंग’ कराने को कहा। मुख्यमंत्री ने छोटे झरने के पानी की क्षमता बढ़ाने और उसके समुचित इस्तेमाल के लिए कार्य योजना बनाने का अधिकारियों को दिशा निर्देश दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वह किसानों और मजदूरों समेत सभी वर्ग के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं। सोरेन ने कहा कि राज्य सरकार का ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर विशेष जोर है।
उन्होंने कहा कि इस दृष्टिकोण से मनरेगा से जुड़ी योजनाएं झारखंड के लिए काफी मायने रखती हैं। उन्होंने कहा कि इन योजनाओं में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इसकी निगरानी होनी चाहिए।
जियो मैपिंग क्या होती है ?
जियो मैपिंग (Geographic Mapping) एक तकनीकी प्रक्रिया है जिसमें भूगोलीय डेटा को विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके मानचित्रित किया जाता है। इसका उपयोग भूगोलीय फीचर्स, यातायात साधारित नेटवर्क, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन, और नक्शे बनाने में किया जाता है।
जियो मैपिंग ज्ञान, पर्यटन, संगठनों का प्रबंधन, और स्थानीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह जानकारी को मानचित्रित करके, स्थानीय जनता और अन्य संबंधित हितधारकों के लिए सुगम और सुरक्षित पहुंच सुनिश्चित करती है।
जियो मैपिंग का उपयोग
जियो मैपिंग का उपयोग आजकल विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे विकास के लिए किया जा रहा है, जैसे कि नगरीय प्रबंधन, वन्यजीवी संरक्षण, भूवैज्ञानिक अध्ययन, और पर्यटन योजनाएं। इससे न केवल विकास की प्रक्रिया में आवश्यक जानकारी प्राप्त होती है, बल्कि पर्यावरणीय प्रभावों की गहराई और विपणन की दिशा में निर्णय लेने में भी मदद मिलती है।
सोरेन का चुआं और छोटे झरनों की जियो मैपिंग एक खास अवधारणा है जिसमें जल प्रवाह को विस्तृततर रूप से परिभाषित किया जाता है। यह जल स्रोतों की पहचान, उनके पानी की गतिविधियों का मानचित्रण, और उच्चायांत्रिकी योजनाओं में जल संसाधनों का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होती है। इससे अनुमानित पानी की आपूर्ति, जलमार्ग, और जलस्रोतों के प्रभाव का मापन किया जा सकता है।
यह विशेष तकनीकी प्रक्रिया उच्चतम स्थानांक पर आधारित जलमार्ग विकास योजनाओं के निर्माण में मदद करती है और नदी, झील, और छोटे झरनों के पानी की चालानों की जांच करने के लिए उपयोगी होती है। इससे जलमार्ग की प्रभावी योजनाओं की गठन, पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन, और नदी एकीकरण के लिए सही निर्णय लेने में मदद मिलती है।
स्रोतों का पता लगाने में करती है मदद
जियो मैपिंग जलमार्ग की बेहतर समझ, उच्चतम प्राकृतिक स्थल, और जल प्रदूषण के स्रोतों का पता लगाने में मदद करती है। यह इनफ्रास्ट्रक्चर विकास, जल संसाधन नियोजन, और पानी के प्रबंधन के क्षेत्र में नकारात्मक प्रभावों को मापने में भी उपयोगी साबित होती है।
जियो मैपिंग प्रोसेस में विभिन्न तकनीकी उपकरणों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि एक्रोसाटेलाइट, रडार टेक्नोलॉजी, और एरियल फोटोग्राफी। ये उपकरण भूगोलीय डेटा को संकलित करते हैं और तत्वों के बीच संबंधों को विश्लेषित करते हैं ताकि मानवीय प्रभाव को समझा जा सके।
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