रायपुर। हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को साहित्य में उनके योगदान के लिए 2023 के प्रतिष्ठित पेन/नाबोकोव पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के निवासी शुक्ल को हिंदी भाषा के अग्रणी समकालीन लेखकों में से एक माना जाता है। शुक्ल छत्तीसगढ़ के उन लेखकों में से एक हैं जिन्होंने राज्य के नाम को देश-दुनिया तक पहुंचाया है। उनके पारिजनों ने बताया कि शुक्ल स्वास्थ्य कारणों से यह पुरस्कार लेने अमेरिका नहीं जा पाए।
उन्हें यह पुरस्कार अमेरिका में दो मार्च को दिये जाने का कार्यक्रम है। हिंदी साहित्य में 86 वर्षीय इस लेखक ने अपनी विशिष्ट शैली के कारण पिछले चार दशक से भी अधिक समय में अपनी एक खास पहचान बनाई। ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में खिड़की रहती है’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ नामक उपन्यास त्रयी के माध्यम से शुक्ल ने हिंदी साहित्य में उपन्यास विधा के लिए एक नयी जमीन तैयार की।
शुक्ल पहले भारतीय एशियाई मूल के लेखक हैं जिन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किए जाने का निर्णय लिया गया है। इस पुरस्कार में विनोद कुमार शुक्ल को 50 हजार डॉलर की राशि प्रदान की जाएगी जो भारतीय मुद्रा में लगभग 41 लाख रुपए की राशि होगी। इस पुरस्कार को पाने के बारे प्रतिक्रिया पूछे जाने पर शुक्ल ने भाषा से कहा, ‘मैंने इसे बहुत सामान्य तौर पर लिया है। कोई चीज मिल जाती है तो मिल जाती है। मिल गई, लेखन के पहचान में। मैंने स्वीकार कर लिया।
जब उनसे पूछा गया कि यह कितने सम्मान की बात हो सकती है तो उन्होंने कहा कि अपने लिखने के बारे में लेखक बहुत ज्यादा कुछ कहता नहीं है। उसका काम लिखने का है वह लिखता है। उसको जो बताना होता है उसकी जो अभिव्यक्ति होती है उसे अभिव्यक्त करने की वह अधिकतम कोशिश करता है। उसने क्या लिखा है, कैसा लिखा है वह पाठक बताते हैं। एक जनवरी वर्ष 1937 को राजनांदगांव में जन्में शुक्ल अपने लेखन कार्य की शुरुआत को लेकर कहते हैं कि लेखन का एक रचनात्मक तरीका है वह अपने आप बन जाता है।
अपनी लेखन प्रक्रिया के बारे में वह कहते हैं, अकेलापन मेरे स्वभाव का हिस्सा था। उस अकेलेपन के स्वभाव में मैं लिखने की कोशिश करता था। मेरा ज्यादा लोगों से मेलजोल नहीं होता था, बस मैं लिखता था। शुक्ल अपने लेखन मे अपनी मां के प्रभाव को याद करते हुए कहते हैं कि मेरी मां बंगाल से थीं। नाना व्यवसाय के सिलसिले में कानपुर से बंगाल पहुंच गए थे। मां पर बंगाल के लेखकों का प्रभाव था। जब वह ब्याह के बाद नांदगांव (शुक्ल के पैतृक स्थान) आई तब बंगाल का साहित्य संस्कार के रूप में मां के साथ यहां आ गया। मुझे लिखने का शौक था, मैं लिखता था और मां सहायता करती थी। मां ने बहुत कुछ दिया है मेरे लेखन को।’
मिलने वाले पुरस्कारों को लेकर वह कहते हैं कि पुरस्कार मिलने से कुछ उत्साह तो होता है। किताबें प्रकाशित होती है, जिसकी रायल्टी बहुत कम मिलती है। वह नहीं के बराबर होती है। लेखक का उससे गुजारा नहीं होता है। जो इकट्ठी थोड़ी बहुत पूंजी के नाम से कुछ पुरस्कार होते हैं वह मिल जाते हैं तो वही लेखक की पूंजी होती है। और उसे अच्छा लगता है कि कुछ रूपया इकठ्ठा मिल गया। वैसे ही अच्छा मुझे भी लगता है।’शुक्ल खुद के लेखन को लेकर कहते हैं, लिखना सांस लेने की तरह है मेरे लिए।