Chhattisgarhi Garhkaleva Thali: छत्तीसगढ़ को उसकी भाषा, पहनावे और लोककलाओं के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां की पारंपरिक थाली भी उतनी ही खास और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है। राजधानी रायपुर में महंत घासीदास संग्रहालय परिसर में स्थित ‘गढ़कलेवा’ नामक भोजनालय, छत्तीसगढ़ी भोजन का ऐसा ठिकाना बन चुका है, जहां लोग न केवल स्वाद, बल्कि परंपरा से भी जुड़ते हैं।
गढ़कलेवा थाली: स्वाद, सेहत और यादों की थाली

गढ़कलेवा में सबसे लोकप्रिय व्यंजन है “छत्तीसगढ़ी स्पेशल थाली” जिसे स्थानीय लोग ‘गढ़कलेवा थाली’ भी कहते हैं। इस थाली में 10 से 15 पारंपरिक व्यंजन एक साथ परोसे जाते हैं, जिनमें से अधिकांश अब गांवों में भी मुश्किल से देखने को मिलते हैं। इस थाली की खास बात यह है कि यह न सिर्फ स्वाद में भरपूर है, बल्कि सेहत के लिहाज से भी बेहतरीन मानी जाती है।
थाली की खास डिशेज, जो अब बन गईं दुर्लभ
इस थाली (Chhattisgarhi Garhkaleva Thali) में लाईबड़ी, बिजौरी जैसे व्यंजन शामिल होते हैं, जो पुराने समय में छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में रोजाना बनाए जाते थे। इसके अलावा छाछ भी इस थाली का अभिन्न हिस्सा है, जो शरीर को ठंडक देने के साथ-साथ पाचन में भी मदद करता है।
मीठे में पुरानी यादें: अरसा, खुरमी और पूरन लड्डू

मिठास की बात करें तो अरसा, खुरमी, पूरन लड्डू और पीड़िया जैसी पारंपरिक मिठाइयां इस थाली की शोभा बढ़ाती हैं। ये वो व्यंजन हैं जो अब त्योहारों और पारिवारिक आयोजनों में भी मुश्किल से दिखते हैं। गढ़कलेवा इन्हें फिर से जीवंत कर रहा है और लोगों को उनके बचपन की यादों से जोड़ रहा है।
पोषण से भरपूर पूरी थाली
गढ़कलेवा थाली (Chhattisgarhi Garhkaleva Thali) में सिर्फ मिठास ही नहीं, बल्कि संतुलित भोजन का पूरा ख्याल रखा गया है। मसालेदार सब्जियों के साथ खट्टा, सीजनल भाजी, दाल, रोटी, चौसेला, पापड़ और चावल – ये सब मिलकर एक संपूर्ण और सेहतमंद भोजन तैयार करते हैं। खाने के बाद लोगों को घर जैसा स्वाद महसूस होता है।
महिलाओं का सशक्तिकरण भी है यह पहल
गढ़कलेवा का संचालन महिलाओं के स्व-सहायता समूह द्वारा किया जाता है। समूह की सचिव मंजू अरजरिया के मुताबिक, रोजाना लगभग 80 थालियों की मांग रहती है। केवल 158 रुपए में इतने व्यंजनों और पौष्टिक भोजन का स्वाद मिलना लोगों के लिए किसी सौगात से कम नहीं।
सैलानियों की भी पहली पसंद
गढ़कलेवा थाली (Gadhkaleva Thali)अब सिर्फ रायपुरवासियों तक सीमित नहीं रही। दूसरे राज्यों और शहरों से आने वाले पर्यटक भी इस पारंपरिक थाली का स्वाद लेने के लिए यहां पहुंचते हैं। यह भोजनालय छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जीवंत बनाए रखने का एक अहम केंद्र बन गया है, जो नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम कर रहा है।