जगदलपुर| Chhattisgarh News: पूरे देश में जहां एक तरफ रक्षा बंधन के पर्व को लेकर हर्ष और उल्लाश का माहौल है. वहीँ दूसरी तरफ बस्तर के इलाके में इसे लेकर मतभिन्नता की स्थिति बनी हुई है.
आदिवासी परंपरा में राखी जैसे पर्व का कोई स्थान नहीं है और न ही इतिहास में कहीं इसका उल्लेख मिलता है। यही वजह है कि समाज राखी त्योहार का बहिष्कार करने की अपील कर रहा है।
आदिवासी समाज ने पर्व को न मनाने का किया आह्वान
समाज का नेतृत्व कर रहे लोगों का कहना हैं कि रक्षाबंधन पर्व आदिवासियों की परंपरा में नहीं है। इसे लेकर पिछले 2-3 सालों से लोगों को जागरुक करने का प्रयास समाज के द्वारा किया जा रहा है।
हालांकि, फिलहाल आदिवासी समाज ने केवल इस पर्व को न मनाने का आह्वान किया है। बस्तर के गांवों में इस पर्व को लेकर आदिवासियों को अलग करने की कोशिश हो रही है।
समाज को बाटने की कोशिश पर रासुका का है प्रावधान
कानून के जानकारों के अनुसार, इस तरह से समाज को बांटने की कोशिश करने वालों पर रासुका(NSA) लगाए जाने का प्रावधान है। ऐसे बयान देने वालों के खिलाफ प्रशासन-शासन को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए ताकि समाज में गलत संदेश न जाए। हालांकि, फिलहाल अर्थदंड या किसी तरह की सजा तय नहीं की गई है।
आदिवासी बहनों ने भाइयों को गुपचुप तरीके से बांधी राखी
देश में जहां रक्षा बंधन पर्व को लेकर खुशी देखी जा रही है, वहीं बस्तर में इसे लेकर मतभिन्नता जैसी स्थिति बनी है। कतिपय इलाकों में आदिवासी बहनों ने डर की वजह से अपने भाइयों को गुपचुप तरीके से राखी बांधी है।
इधर, सोशल मीडिया के जरिए गांवों में लाऊड स्पीकर के जरिए हल्बी बोली में प्रचार कर पर्व न मनाने की अपील भी की जा रही है।
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